राधा वल्लभ श्री हरिवंश राधा वल्लभ श्री हरिवंश वृंदावन श्वरी तव व पदारविंदम प्रेमा मृत मकरंद रसो पूर्णम हद पितम मधु स्मरताप मग्रमस माश्या परम शीतल मा श्रय जे जन चरणन के रस पागे जे जन चरणन के रस पागे न लोक तिन त्रण सम त्यागे तीन लोक तिन त्रण सम त्यागे जी जन चरणन के पागे
जो श्री प्रियालाल के श्री चरणारविंद (Radha Charanaravinda ki Mahima)के अनुराग को प्राप्त हो गए जिनका मन प्रिया लाल के प्रेम में पग गया प्रेम में रंग गया प्रेम स्वाद मिल गया उनको पूरी त्रिभुवन की संपदा त्रण के समान लगती है|
यह अंतर की वृत्ति है कहीं उसकी कोई ममता महत्व बुद्धि आसक्ति किंचन मात्र नहीं रह जाती क्योंकि अनंत ब्रह्मांड का ऐश्वर्य श्री भगवान ने एक निमिष मात्र के समय में रचा|
ऐसे श्री भगवान अपनी प्रभुता और महिमा का विस्मरण करके जिन प्रियाज के सामने दैन्य और अधीन है ऐसे गोरे चरणारविंद का रस जिसे मिला प्रेम रस वह त्रिभुवन को त्रण के समान मानकर त्याग देता है कहीं भी उसकी आसक्ति नहीं होती यह आसक्ति कृपा बल से टूटती है नहीं कम हो जाती है पर पूर्ण नष्ट नहीं होती , पूर्ण कृपा से ही यह नष्ट होती है |
जा के बल मैं सबसों तोरी लोक वेद कुल कानी मेरी महारानी श्री राधा रानी जा के बल में श्री जी के बल से ही लोका कीत वेदात त्रिगुणा त स्थिति प्राप्त होती है |
श्री जी का बल उसी को प्राप्त होता है जो केवल श्री जी को अपना मानकर पूर्ण महत्व पूर्ण ममत्व राधा नाम राधा चरणारविंद श्री राधा जुग चरण निवास जस बर्नो हरिवंश विलास श्री हरिवंश गाई हो कहां निवास है |
अपने वृंदावन वासियों का श्री राधा जुग चरण (Radha Charanaravinda ki Mahima) निवास श्री प्यारी जू के जुगल चर में अर्थात जुगल चरणारविंद (Radha Charanaravinda ki Mahima) की दासता में श्री भूरी सखी जी कह र हैं जे जन श्री चरणन के रस पागे तो तीन लोक तीन ण सम त्यागे जैसे छोटा बच्चा खिलौनों में अत्यंत आसक्त होकर खेलता है लेकिन जब वही बड़ा हो जाता है तो उन्हीं पूर्व के खिलौनों को देखकर हसता है कि मैं इनसे खेलता था
ऐसे ही अज्ञान की दशा में हम विविध शरीर विविध पदार्थ विविध वस्तु स्थान पद प्रतिष्ठा में खेल रहे हैं लेकिन जब हमारे हृदय में ज्ञान का प्रकाश होगा|
इन्हीं सब बातों को सोचकर हंसी आएगी कि ऐसी स्थिति थी निम्न नीच भोगों में मैं अपने मन को रंजन करा रहा था इनमें आनंद खोज रहा था निश्चित निश्चित ऐसा ज्ञान जब प्रकट होता है तो संपूर्ण आसक्ति का नाश हो जाता है |
यह कृपा से प्रकाशित होता है जिनकी चरण कृपा ते पाई चरण कृपा ते पाई इसमें कोई साधन बल विशेष कार्य नहीं करता है |
केल कुंज सुख खाने महान सुख की खानी प्रिया प्रीतम की रस केली का अधिकार देखने का श्री जी के चरणों की कृपा से ही मिलता है , जिनकी चरण कृपा ते पाई केल कुंज सुख का मेरे बल श्री वृंदावन रानी कैसा बल है जाहि निरंतर सेवत (Radha Charanaravinda ki Mahima)मोहन बन विनोद सुख दनी परम सुख प्रदान करने वाले प्रभु वृंदावन की नौ निवत निकुंज में जिनकी सेवा की याचना जिनकी दासिया से करते हैं ऐसी हमारी स्वामिनी जो हमारा बल है उन्हीं की चरण कृपा से सब कुछ प्राप्त हो जाता है |
भरी सखी जी कहती जे जन चरणन के रस पागे तीन लोक तिन त्रण सम त्यागे जे जन चरणन के रस पागे जहां देखो आप वही श्री हरि का प्रताप ही मिलेगा जहां देखो बड़े-बड़े महापुरुष सब हरि हरि हरि राम बोलो बनवारी बोलो मुरारी बोलो कृष्ण बोलो हरि बोलो राम बोलो जहां स्वयं हरि जिनका प्रताप गान करते हैं , महिमा गान करते व वृंदावन धाम में वृंदावन शवरी हमारी श्यामा जू है जो बहुत एकांत की रहस्यमय प्रेम है |
इसीलिए राज दरबार के जैसे राजा का प्रभाव सब जानते हैं लेकिन राजा एक प्रेमी भी है उसका प्रेम व्यवस्था का स्वरूप ये कोई प्रेमी जन ही जानते हैं , तो प्रभु का प्रताप बल रूप गुण वैभव ईश्वर समग्र भगवान की भगवता इस ब्रह्मऋषि महर्षि भक्त जन दास जन सखा जन सुहृद जन
यह सब जानते हैं यथावत भगवान जितना जना हैं लेकिन भगवान इतने प्रेमी हैं उनका प्रेम का स्वरूप कितना प्रबल है ये जब कृपा होती तब जान पाते जैसे सखा जन जान पाए कि चात चरण मोहन लाल कुंवरी राधे पलंग पढ़ी सुंदरी नौ बाल
ये अपने ऊपर अतु की कृपा हो गई है , अतु की कृपा कोई हेतु नहीं है ऐसी महामहिम श्री स्वामिनी ज के चरणों का आश्रय मिल गया यह बहुत गर्व का विषय है कि हमें महारानी जू के चरणों (Radha Charanaravinda ki Mahima)तक श्री हरि ने कृपा करके पहुंचा दिया जो उनके हृदय का गुप्त धन है राधा नाम |
राधा चरण (Radha Charanaravinda ki Mahima)अरविंद छिन छिन दर्शन को मन लोभा तिनको धूरी स्वर्ग की शोभा हमारी स्वामिनी ज के ऐसे महा आकर्षण कारी श्री चरणारविंद है कि लाल जन चरणों को अपने हृदय से लगाते हैं , माथे से लगाते हैं नेत्रों से लगाते हैं |
कबो कर गई नैन लावत कबो छु आवत भाल कभी कभी ने और कभी हृदयर पितम मधुपति स्मर ताप कभी हृदयर पितम हृदय से ऐसे लगाते हैं यह कैसे जानेंगे राज प्रताप जानने वाले प्रभु की भगवता को जानने वाले उनके इस प्रेम स्वरूप को कैसे जानेंगे वो चरणारविंद (Radha Charanaravinda ki Mahima)की शोभा जब उपासक के हृदय मानस नेत्रों में झलक लगती है तो उसे सब स्वर्गा आदि सुख धूल धूसर नजर आते हैं
पंकज चरण छटा अति भावे हियरा टूक टूक हुए जावे जिस समय गोरे चरणारविंद (Radha Charanaravinda ki Mahima) प्रकाशित होते हैं उस समय उपासक के हृदय की दशा बदल जाती है | प्रेम विकल बढ़ती है क्योंकि इनसे प्रेम रस धारा प्रवाहित होती है प्रेम रस धारा गोरे चरणारविंद से ही प्रकाशित होती है|
सत प्रेम सिंध मकरंद र सोग धारा या यत पाद पद्म नख चंद्र मणि टाया विस्प जतम किम गोप वधु स्व दर्शी जिसके हृदय में चरणों का प्रकाश हो जाता उसका हृदय टूक टूक प्रेम विकल हो जाता है | लीला ललित सदा सुधि आवे तिनको कछु ना देखी सुहावे प्यारी जू के चरणारविंद (Radha Charanaravinda ki Mahima)की छटा जिसके हृदय में प्रकाशित हो गई तो दिव्य लीला दर्शन का सेवा का अधिकार प्राप्त कर लेता है |
इन्हीं चरणों के प्रताप से यार को तही अधिकारी कृपा करें श्री राधा प्यारी जब ललित चरणारविंद लाड़ली जू के हृदय में प्रकाशित हो जाते हैं तो उस उपासक को लीला में प्रवेश का अधिकार प्राप्त हो जाता है|
फिर बोले उसे कुछ अच्छा नहीं लगता त्रिभुवन का पद या मो सुख कुछ भी नहीं जुगल मिलन की आशा धारे काह और ना कबहु निहारे एक मात्र युगल सरकार के मिलन की आशा दो भाव एक तो युगल सरकार हमें मिल जाए एक युगल सरकार मिले रहे सखियों को कब सुख होता है|
श्री आचार्य चरण महाप्रभु हरिवंश चंद्र ज कह रहे हैं जय श्री हित हरिवंश उचित होचाहत श्याम कंठ की माल मैं उचित यही चाहता हूं कि आप सदैव श्याम सुंदर के कंठ की माला बनी रहे तेरो ई ध्यान राधिका प्यारी गोवर्धन धर लालही कनक लता स क्यों ना विराजत अरु जीी श्याम तमाल ही
हमारी चाह है कि जैसे श्याम तमाल में कनक की बिल विराजमान हो ऐसे प्रियाज आप लाल जू से विराजमान हो तो लाल ललना मिली हियो शरावत मोर आज अति राजत दंपति जब यह दोनों मिले होते हैं सब सखिया ही है | माला भी सखिया है कुंडल भी सखिया है कंकन भी सखिया है पोशाक भी सखिया ही बनी हुई है|
यह अंतर की बात कह रहा हूं वहां कोई पोशाक नहीं कोई माला नहीं यह सब प्राणों को समर्पित करने वाले रसिक जन यही श्री जी की माला बनते हैं य श्री जी की कंचुकी बनते हैं|
यही श्री जी की ओढ़नी बनते हैं यही लाल जू के कुंडल बनते हैं यही लाल जू की माला बनते हैं और कोई नहीं परम सुख प्रदान करने वाली सखियों का बहुत सेवा सुख है वही छत्र बनती वही चवरिया बनती ये अंतर की बात है वहां कोई और सैया नहीं सखिया ही अपने हृदय को बिछाते स्वयं सखिया ही सैया बनती हैं प्रिया प्रीतम और सहचर यही वैभव है|
वृंदावन का सब सखिया खग मृग लता पशु पंछी सब सखिया बनी हुई चंद्र सूर्य सब सखिया बनी हुई है यह अंतर की बात है य बुद्धि गत आप इसे नहीं समझ सकते
जब तक अंतर में प्रवेश नहीं होगा तब तक के सब पैंग बड़ी झूले की गल बैया दिए युगल सरकार झूल रहे अब लाती सुकुमार डरतलांग बार-बार पुलकित होकर प्यारे ज के गले से लग रही अबला सुकुमार रत मन वर डोर झको प्यारी जो डरती है क्योंकि पैंग बढ़ी हु जेही गले से लगी तो सखियों ने लीला कर दी|
अरु जी विमल माल कंकन सो लडली जू के कंकन को फसाओ लाल जू की माला से कुंडल सो कच डोर केस बांधने की डोरी कुंडल में अब हिल भी नहीं सकते युगल सरकार मिलित रूप अरु जीी विमल माल कंकन सो कुंडल सो कच डोर बे पथ जुत क्यों बने विवेचन बढ़यो न थोर|
यह रूप देखकर सखियों के हृदय में अद्भुत आनंद उस आनंद में क्या आखिरी पंक्ति दे अशीष हरिवंश प्रसंत करि अंचल की छोर निरखी निरखी फूलत ललिता आदिक विवि मुख चंद्र चकोर द अशीष हरिवंश प्रशंसक करि अंचल की छोर यह रूप देख कर के आशीष हृदय से निकलता है ऐसे ही चिरंजीवी रहो युगल सरकार ऐसे ही खेलते रहो ऐसे ही रंग करो निवा वृंदा विपिन कुटी अभिराम हो बलि जाऊ नागरी श्याम |
जुगल मिलन की आशा धारे काहु और न कबहु निहारे रात दिन एक मात्र प्रिया प्रीतम के प्रेम रस सेवा सुख में पगी हुई सखिया निस देस जानत नाही सजनी एक रस भीज रहे गोप गोपन आदि दुर्लभ ते सुख दिन प्रति|
हमारे ऐसे युगल मित्र हैं हमारे ऐसे युगल स्वामी है हमारे ऐसे युगल सरकार प्राण है जीवन है प्यार की मूर्ति अभी जानते नहीं कि कितना व प्यार करते हैं अपने जनों से दासी वत्सला करर हे राधा और सामर्थ तो पूछो मत परम सामर्थ्य जिनके भी त्रिभुवन में व लाल जू के एक अंश से है गरुण जी से पूछा देवराज इंद्र ने जब अमृत कलस ले जा रहे हे महावीर आज त्रिभुवन में तुम्हारे समान कोई बलशाली मुझे नहीं दिखाई दे रहा |
क्योंकि हमारे दिव्यास्त्र भी काम नहीं कर रहे आप में कितनी सामर्थ आप अपना परिचय बता सकते हैं तो उने कहा कि पूरे त्रिभुवन को पंखे के एक कोने में रखकर आराम से उड़ सकता हूं मैं हरि का वाहन हूं अनंत ब्रह्मांड का भार लेकर हम पर विराजमान होते हैं| मैं आराम से उड़ लेता हूं वह गरुण जी महाराज को एक बार ऐसा हुआ अहम स्फर हो गया भगवत लीला के लिए समस्त बलशाली हों में महा बलशाली हरि को अपने पंखों में बैठा ल के आराम से उड़ता हूं भगवान अपने भक्त के हृदय की बात जानकर उस गर्व के अंकुर को ही मसल देते हैं|
भगवान को अच्छा नहीं लगता है जन का अभिमान | जन की दैन्य भगवान को बहुत प्यारी लगती है अगर भक्त में कहीं अभिमान आ जाए तो भगवान को पसंद तो एक कर कमल प्रकट हुआ गरुण जी के ऊपर ऐसे रखा झप से ऐसे छोटी चिड़िया की तरह समुद्र में गिर गए सहने की ताकत नहीं रही तब विनय की हे हरि तो कहा ये किसी और का हाथ नहीं मेरा ही हाथ है तुम मेरे हाथ का वजन नहीं सह सकते मेरा तो जाने दो मैं अपना वजन अपने संकल्प से तुम्हारे ऊपर जो बैठता हूं, तुम्हारे ऊपर वजन नहीं रखता |
अगर मैं अपना वजन रख दो तो तुम मेरे हाथ को भी नहीं सह सकते हो महा बलशाली परम ज्ञानियों में गुरु श्री गरुण जी महाराज गरुण महा ज्ञानी गुण राशि महा बलशाली तो जितना ज्ञान जितना वैराग्य जितना बल जित सबके समुद्र है|
श्री लाल ऐसे समग्र ऐश्वर्य वैभव ज्ञान वैराग्य प्रेम सबके समुद्र होते हुए भी वह अपने हृदय के मूर्तिमान रूप जो प्रेम का है वो प्यारी के अधीन हो ऐसी प्यारी जो हमारी स्वामिनी जो है |
ऐसे युगल सर हमारे प्रिय मित्र हित मित्र है य कितना अब हम किसकी तरफ देखें आंख उठा कर के ना काहो स बोलव ना कोई व्यवहार ऐसी अपनी कुंवर किशोरी को जियत निहार निहारी सोच सोच काटे दिन राती दुख सो फटत छिने छिन छाती कल एक ऐसे ही भाव आ गया|
प्रिया तुम कितनी भोरी हो हम जैसे छली और कपट हों के बाहरी ऐसे ही दिखावटी प्रेम को सच मान कर के आप इतनी कृपा करती हो आप कितनी भोली हो | सच्ची बात है कि हमारा दांव लग गया कि ऐसी सामर्थ साली ऐसी भोरी स्वभाव की प्रिया जो हमारी हो गई कि हमारे छल कपट भरे थोड़े से भी अपनेपन को सच्चा प्रेम मान कर के राई के सं भजन को मानत मेर समान कितनी भोरी है|
हमारी स्वामिनी जो सोच सोच काटे दिन राती दुख सो फटत छिने छिन छाती यद्यपि आप हमारी स्वामिनी पर मैं आपको सुख नहीं पहुंचा सकता आपसे सुख की चाह रखता हूं कहने को केवल हम सेवक है वास्तविक हम आपसे सुख की चाह रखते हैं स्वामीनी ऐसा कर दो स्वामीनी यह बात संभाल दो प्रिया जू ऐसा कर दो|
जब यह हम सोचते हैं तो हमारी छाती फटती है कि कितनी कृपालु सुकुमारी प्रियाज से मैं अपना कार्य कराना चाहता हूं उनकी सेवा का सुख ना लेकर उनसे सेवा करवाना|
जब यह सोचते हैं तो हृदय फटता है कहां हमारी स्वामिनी कितनी भूरी करुणामय कहां मैं छली कपटी केवल दिखाता हूं कि आपसे प्रेम है , वास्तविक प्रेम तो आप करती हैं प्रिया जो सोच सोची काटे दिन राती दुख सो फटत छिने छिन छाती भाव तभी व समरण हुआ जब प्रभु ने नहीं तो विकल बढ़ जा एकदम भाव आया बहुत चतुर शिरोमणि भी है भोरी ही एकदम नहीं है अति नागरी वृषभानु किशोरी बहुत प्रवीण है स्वामी रूप रास अति चतुर शिरोमणि अति चतुर शिरोमणि अंग अंग सुकुमारी आवत श्री वृष भानु री दंड मिलना अच्छा लगता है क्षमा करना अच्छा नहीं लगता|
आप भोलेपन से क्षमा करती जा रही हो और मेरा मन उद्दंडता करता जा रहा है आप हमारी उद्दंडता को क्षमा कर नहीं स्वामिनी आप बहुत भोरी हो आप इसे दंड दीजिए जिससे इसका सुधार हो जाए ऐसेन की जो जूठन पाओ तो अपनो सौभाग मना जो रात दिन जुगल मिलन की आशा में किसी और की तरफ नेत्र उठा के भी नहीं देखते|
ऐसे रसियो की जठन पाओ ऐसे रसिक कृपा जो करें तो हम से सेवक निस्तर जूठन ले पावे सदा बड़ी सामर्थ्य रस को के उच्छिष्ट में क्योंकि प्रियालाल की अनन्य रस से भरा हुआ छट जब जाता है तो अनंत जन्मों की बहिर्मुखी है इष्ट निष्ठा जागृत हो जाती है ऐसेन की जो जूठन पावो तो अपनो सौभाग्य मनाओ विषय पंक में बढत भोरी करो कृपा अब सहज किशोर हे करुणामय आप अपनी कृपा से मुझे विषय रूपी दलदल से निकालो मैं विषय दलदल में धस जा रहा हूं हे स्वामिनी हे कृपामई आप सहज करुणा करने वाली है इस विषय दलदल से निकालकर अपने चरणों का मुझे प्रेम प्रदान करो |
श्रीपाद प्रबोधनंद जी महाराज कह रहे हैं धन्य है जो इन वाणि हों के श्रवण कथन का हमको सौभाग्य दिया गया ठीक वही जो अभी सुन रहे हैं बरी सखी से उसी का क्रम वर्णन करते हुए श्रीपाद प्रबोधा अंद जी कह रहे हैं कह धन्य लोके मुमुक्षु धन्य है इस लोक में जो मुक्त होना चाहता मोक्ष प्राप्त करना चाहता है धन्य है फिर कह रहे उससे बढ़कर धन्य हरि भजन परो जो हरि भजन करके अपना परम कल्याण चाहता है |
श्रीपाद प्रबोधनंद जी महाराज कह रहे हैं धन्य है जो इन वाणि हों के श्रवण कथन का हमको सौभाग्य दिया गया ठीक वही जो अभी सुन रहे हैं बरी सखी से उसी का क्रम वर्णन करते हुए श्रीपाद प्रबोधा अंद जी कह रहे हैं कह धन्य लोके मुमुक्षु धन्य है इस लोक में जो मुक्त होना चाहता मोक्ष प्राप्त करना चाहता है धन्य है फिर कह रहे उससे बढ़कर धन्य हरि भजन परो जो हरि भजन करके अपना परम कल्याण चाहता है |
एक है ज्ञान के द्वारा मुमुक्षु मोक्ष प्राप्त करना धन्य है उसका जीवन उससे धन्य वह हुआ जो हरि भजन करके हरि आश्रय लेकर हरिदास बन कर के अपना कल्याण चाहता है यहां कल्याण शब्द का है धन्य धन्य सततो स कृष्ण पादा बरती धन्य है धन्य है धन्य है उसको जो भजन करता है |
केवल श्री कृष्ण प्रेम प्राप्त करने के लिए मुझ कल्याण हो मोक्ष हो मुझे से कोई मत मुझे प्रभु श्री कृष्ण से प्रेम हो जाए धन्य य कृष्ण पादाम बुज रती परमो रुक्मिणी प्रियो कौन से श्री कृष्ण रुक्मिणी पति द्वारिकाधीश श्री कृष्ण से जिनकी रति धन्य धन्य है फिर उनसे धन्य है यशोदे प्रियो तः यशोदा के प्रिय लाड़ले श्री कृष्ण नंद नंदन फिर उससे धन्या धन्य वो है जो सुबल सुतो जो सखाव के प्यारे श्री कृष्ण अर्थात सखा भाव वात्सल्य भाव सखा भाव बहुत सुंदर वर्णन कर रहे हैं |
धन्य लोके मुमुक्षु शांत भाव हरि भजन परो धन्य धन्य सततो स धनयो य कृष्ण पादाम रति परमो रुक्मिणी प्रियो तः हरि भजन परायण अपना कल्याण चाहने के लिए भगवान का दासत दस भाव अब इसमें प्रियता आई भगवान द्वारिकाधीश और मैं उनका दास प्रियता आ गई मुमुक्षा में प्रियता नहीं अपना परम कल्याण की केवल बात वह हरि भजन करता है |
कल्याण के लिए लेकिन इसमें प्रियता आ गई मेरे स्वामी उससे ज्यादा प्रियता आई यशोदे प्रियता वात्सल्य दुलार करते हुए यशोदा मैया जैसा लाला को सुख पहुंचा रहे से प्यार कर रहे उस लाला से प्यार गोपाल जी से उससे भी सुबल सुद तो वो धन्या अति धन्य है जो भगवान को सखा भाव से हैं|
जो सखाव के प्राण प्रिय नंद नंदन है श्री कृष्ण चंद है वह धन्या अति धन्य है जो सखा भाव से बचते हैं फिर उससे भी अति धन्य है गोपी कांत प्रियोतः जो गोपी वल्लभ भगवान श्री कृष्ण की आराधना करते हैं फिर कह रहे
आखिरी है श्रीमद वृंदावन शवर श्रीमद वृंदावन शव्य तिरस विवसा आराध का सर्व मूर धनी श्री वृंदावन स्वरी के रस में विवस ऐसे श्री कृष्ण चंद्र जी की जो आराधना करते हैं कैसे रस घन मोहन मूर्ति विचित्र केली महोत्सव सल सितम राधा चरण लोत रुचिर श खंडम हरिम वंदे श्रीमद वृंदावन स्वर ति रस विवसा राधक दो भाव जो श्री वृंदावन स्वरी के रस में विवस होकर आराधना में तत्पर हो धन्या अति धन्य या जो वृंदावन स्वरी के रस में विवस श्री लाल ज महाराज है ऐसे युगल आराधना में जो तत्पर वह सर्वोपरि धन्या धन्य है |
श्रीपाद क्रम वर्णन करके य सर्वोपरि उपासना श्री वृंदावन शवरी की चरण आश्रित वृति निरंतर उनकी सेवा उनके नाम में मगन बड़ा सुंदर शोभा का वर्णन करते हुए सेवा का वर्णन करते हैं|
श्रीमद वृंदा कानने रत्न बल्ली वृक्ष चित्र रानंद पुष्प किरण स्वर्ण स्थल दं कदम छाया न चक्षु की गौर नीले विशाल कदम वृक्ष है रत्नों की सुंदर मणियों से सुंदर चबूतरा बना हुआ है चारों तरफ ज्योति में कांति प्रकाशित हो रही है |
उस कदंब वृक्ष से बड़े सुंदर सुंदर सुगंधित पुष्प आसपास की संपूर्ण स्वर्ण स्थल दं मानो स्वर्ण भूमि एकदम कांति वान विशाल कदंब की छाया और मैं अपने नेत्रों से देख रहा हूं कि युगल सरकार गौर नीले श्री स्वामिनी जी और श्री लाल जी महाराज उस कदंब के चबूतरे पर पुष्पों की सैया पर विराजमान है और सखिया प्रे ंद प्रसादा भरण व पसंग नवा भीर बाला माला अलंकार कस्तूर नवीन अवस्था है|
नौ किशोर अवस्था सखियों की और सब प्रिया प्रीतम की प्रसादी धारण किए हुए पृष्ठ द्वंद दोनों प्रीतम हमारे दो दो प्रीतम बरत दो प्रीतम कुंज प्रे द्वंद प्रसादा भरण व पसंग नवा भीर बाला माला अलंकार कस्तूर गुरु घृण सद गंध तांबूल वस्त्र शी प्रिया लाल के प्रसादी वस्त्र धारण की प्रसादी माला धारण की हुए है|
नवीन नवीन आभूषण प्रसादी धारण किए हुए हैं नवीन अवस्था सब सखियों की है एक एक सखी दासी ऐसी सुंदर है लक्ष्मी कोटि विलक्षण लसल लीला किशोरी सतई राराम ब्रज मंडले मधुरम राधा विधानम परम स्वामिनी ज की सखिया ऐसी सुंदर कि करोड़ करोड़ लक्ष्मि हों को आश्चर्य चकित कर द श्री जी की लाल जू की सब प्रसादी वस्त्र माला आदि धारण किए हुए |
अलंकार कस्तूरी अगुर कुमकुम मनो मद गंध तांबूल वस्त्र यह सब धारण किए हुए हैं और कितनी सुंदर शोभा है विशाल कदंब वृक्ष आसपास कदंब की कुंज सुंदर रत्न जट चबूतरा उस पर फूलों की सैया पर युगल सरकार विराजमान चबूतरे के नीचे समस्त सखियां कोई सेवा सोज लिए हुए है तो कोई य सब श्री जी की प्रसादी पोषक वस्त्र भूषण गंध माला तांबूल आदि वाद्य संगीत नृत अनुपम कलया लाल अंती स तृष्णा स तृष्णा प्रेम कभी पूर्ण नहीं होता |
प्रेम में कभी पूर्णिमा नहीं आती इसकी प्यास बढ़ती ही रहती है प्यारी जी को रूप मानो प्यास ही को रूप है जैसे जैसे पान करें वैसे वैसे प्यास बढ़ती चली जाती है प्रेम की कैसा सुंदर शोभा स्वरूप भावना करो आसपास कदंब कुंज है |
विशाल कदंब का वृक्ष कैसी सुंदर शोभा हरि त्रिलोक को भी आश्चर्य चकित कर देने वाली पत्ते की ऐसी दिव्य कांति सुंदर सुंदर कदम के पुष्प जिस पर भरे मनरा रहे अद्भुत सौरव मत कर देने वाली सुंदर रत्न जट चबूतरे पर पुष्पों की सैया उस पर प्रिया प्रीतम विराजमान पार्श्व में सखिया चवन डला रे छत्र तना हुआ है |
चबूतरे के नीचे सखियों की अपार भीड़ है सब प्रियालाल की पोषक वस्त्र आभूषण यह सब प्रसादी धारण किए हुए पान की बीड़ी पाए हुए कोई वाद कोई सुंदर वाद्य बजार बाजत मृद मृदंग कोई संगीत वीणा वेणु अद्भुत अद्भुत संगीत मुख चंग कठ तार बीण बण नपुर धुन धुमक खग मृग दशा विषारी सखिया नृत्य कर रहे|
वाद्य संगीत नृत्य नुपल लाल अंती स तृष्णा तृष्णा भरे नेत्रों से प्यास भरे नेत्रों से युगल सरकार के रूप रस का पान करती हुई कोई संगीत बजा रही ताल मृदंग उंग बजाव प्रफुल हुए सखी सारी प्रफुल्लित होक के ताल मृदंग पंग ण बण नप ध्वनि साथ में ठुमक रही नृत्य कर रही |
सखिया वाद्य संगीत नृत्य अनुपम कलया अनुपम अनुपम कला का प्रदर्शन कर रही कोई अद्भुत आलाप ले रही कोई अद्भुत समा बांधे हुए संगीत बज रहे लाल अंती स तृष्णा लाड़ली लाल को ऐसे देख रही मानो नेत्रों से पान कर रहे है राधा कृष्णा व खंड स्वरस विल सित कुंज विथ मु पती ऐसे शी प्रिया प्रीतम कुंज कुंज में जा जाकर सुख वर्ष कर रहे |
मैं ऐसे प्रिया प्रीतम की शरणापुर चाहिए काश चंदन घर्षण किसी कुंज में पहुंचे तो देखा सखि सेवा परायण है कोई काच चंदन घर्षण बहुत सौभाग्य कोई मृदु मृदु चंदन घर्षण मृदु मृदु इसलिए शीघ्रता पूर्वक घर्षण करोगे तो मोटा हो जाएगा तो पत्रावली ठीक नहीं बनेगी दाना नहीं होना चाहिए |
एकदम घिसा हुआ चंदन मृदु मृदु चंदन घर्षण काश्त चंदन घर्षण सघु शरणम कश्चित सत जो ग्रंथन कोई तो कुमकुम तैयार कर रही कोई चंदन घर्षण कर रही है कोई सत जो ग्रंथि सुंदर सुंदर ग्रंथि लगाकर माला रही है का चित केल निकुंज मंडन परा का चित दहन तीर जलम कोई सुंदर केल निकुंज को सुसज्जित कर रहे हैं |
सजा रहे प्रिया प्रीतम यहां आकर विराजमान होंगे तो कोई मृदु मृदु जल अलग अलग पात्र यह मीठा जल है यह अमुक का रस है यह अमुक जल है ऐसे कोई काश्त दिव्य दुकल कुंचन संग्रहण कासना अकारम नव मन पानम विधि व्यज चरम कासन कोई नवीन नवीन अलंकार सजा कर रखे |
ये नथ श्री जी की ये बणी में यह कुंडल यह हार ऐसे कोई कोई खानपान की सुंदर सामग्रियां और कोई व्यग्र चित होकर देख रही अभी आए नहीं प्रिया प्रीतम अभी आए नहीं बहुत देर लग रही अभी आए नहीं श्यामा श्याम व्यग्र चित होक के ताम बुलो तम वि टि काद करण कोई महा सौभाग्यशाली सखी अपने हाथ से सुंदर पान की बीड़ी की रचना करके रखती है |
काश चिन नि विटो नवा कोई नवीन नवीन अवस्था की जो सचिया है नर तन गीत वाद्य सुकला माग संपाद का एक एक संगीत की स्वामिनी सबको तैयार कर जही श्यामा से हम पधारे बस संगीत शुरू तो नृत्य गीत वाद की उत्तम उत्तम कलाओं की विद्या का प्रदर्शन करने के लिए सब पंक्ति बंद खड़ी हो गई है |
और अंदर कोई स्नाना भंग विध चका चरता स्नान की सब सामग्री तैयार किए हुए देख रहे कब पधारे प्रिया प्रीतम तो कोई पंखा वजन समजना सदा अपने अपने चर पंखे सब लेकर तैयार है का सनि सेवाना मुदिता का समस्ते का कोई कोई सब सेवाओं का निरीक्षण कर रहे हैं |
वो कोई कोई में प्रधान अष्ट सखिया होती अपनी अपनी सेवा की सब ठीक है सब तैयारी है क्योंकि प्रिया प्रीतम पधारने वाले हैं ऐसे श्रीपाद कह रहे का चित स्वापी युग्म चेत दृश स्तब्ध स्व कृते स्थिता इतने में देखा कि प्रिया प्रीतम पधार रहे |
जय हो जय हो पुष्पों के पावणे पर रहे और सखिया जय जयकार कर सब भूल गई कि मुझे क्या करना चाहिए स्तब स्व कृते स्थिता जितनी शिक्षा दी गई थी कि प्रिया प्रीतम पधारे ऐसा ऐसा ऐसा सब भूल गई व रूप माधुरी देखकर स्तब स्व कृते स्थिता जो उनको कृत कर ले थे व स्थिता यह रूप माधुरी ऐसा प्राया हर प्रेमी को हुआ है |
फिर छपवा न्याली प्रवर्तित दैत काच सुखेला परा कोई सखी कार्य में प्रवत करने के लिए बावरी प्रिया प्रीतम पधार रहे अब कोई संगीत में जो प्रवीण है वाद्य बजाने लगी कोई नृत्य करने लगी कोई गान करने लगी कोई युगल किशोर के अनुकूल होकर के मार्ग में आगे लिए जा रही हैं |
स्नान ग्रह की तरफ ऐसे अद्भुत सुख की वृत्तियां जो सखियों के हृदय में है व महान वृंदावन में प्रिया प्रीतम की सेवा सुख का लाभ ले रही एकम चित्र श्रीखंड चूम परम श्री वेणी सोभा भूतम एकने सुंदर मोर पिक्ष से युक्त लाल जू को स्नान कराकर फिर शृंगार करा र भाल पर मुकुट धारण कराया |
एक श्री शोभ अदभुतम प्रियाज की सुंदर वेणी की रचना की चमत्कार मई प्रियाज की अदभुत णी जिस जो लाल जू को लुभ मान कर लेती है लाल जू प्रार्थना करते कि आज मैं ण गुत ऐसी वक्ष चंदन चित्र में कम परम जो ब्रह्मा सवाद के लिए भी दुर्लभ है पत्रावली रचित कुच कपोले कोई पत्रावली की रचना कर रही |
चित्रम स्त कंच कम एक रत्न विचित्र पीत व सनम जंत वस्त्रो परी एक सखी पीतांबर धारण करा रही है तो दूसरी नीलांबर धारण करा रही कोई कंचुकी धारण करा रही है कोई जघन प्रदेश के आभूषण धारण करा रही राजरतन सुचित्र सोण वसने नान संशो भित बहु रत्न में विचित्र दुपट्टा पीतांबर नीचे ऊपर लाल वस्त्र का दुपट्टा लाल जू को धारण करा रही \
थम दिव्य विचित्र वेश मधुरम तद गौर नीलम मिथ विचित्र वेश से प्रिया प्रीतम का श्रृंगार करती प्रेमा वेश सब सखियों को प्रेमा आवेश हो रहा है प्रिया प्रीतम के सौंदर्य रूप माधुर्य श्रृंगार सेवा करके प्रेमावे स हसत किशोर मिथुन दिव्या विचित्र छटा सखिया प्रेमावे मेरे युगल सरकार दोनों परस्पर सेवा सुख स्वीकार करके मुस्कुरा रहे उनकी मुस्कुराहट उनकी प्रसन्नता देखकर अपने आराध्य देव को प्रसन्न देखकर जो दास को सुख होता है वह दास हृदय जानता है दूसरा नहीं जानता हसत किशोर मिथुन दिवा चित्र छटा जब मुस्कुरा देते हैं तो दिशाएं प्रकाशित हो रही है |
अरे ईश्वर के ईश्वर बिहारी बिहारी जो है श्रंगार करके सखि आप विराजमान की जब मुस्कुरा रहे सखियों की तरफ हंस रहे दोनों बात कर रहे तो दंत पंक्तियों से तेज प्रकाशित हो रहा है कांचन पुर नाद रत्न मुरली गीतेल समोह अच्छी वृंदावन चि घन स्थिर चरम रंगे महा श्रीमति अपने प्राणा रा युगल का श्रंगार करके फिर सखियां शुरू करती हैं |
कोई वंशी वादन सखियां कोई मृदंग कोई ढोल मंजीर विविध बात देख सात बजे तो वृंदावन के पक्षियों का कलरव मानो राग रागिनी मूर्तिमान होकर ऐसा नहीं कि चेपे सात संगीत के ऐसा मनोहर गूंज उठो प्रिया प्रीतम विराजमान सिंहासन पर सब सखिया मनोहर संगीत मनोहर वृंदावन के पक्षियों का कलर कैसी शो इसी शोभा में तो रसिक जन डूबे रहते हैं |
अन वाली मुख शब्द के मणिमय मिलन मृदंग धन ऐसी मृदु मृदंग बाती है कि आनंद प्रेम की उगन हो जाए बाजत मर्द [ मदंगोपाल लाम प्रियाज की सखिया रंग जमगा रंग जमा हुआ है अखिल ब्रह्मांड के ईश्वर प्रभु विराजमान उनकी हृदय का मूर्तिमान प्रेम प्रियाज दिव्य वृंदावन नौ निवत निकुंज अदभुत संगीत फिर नृत्य फिर गायन और फिर प्रोत सार यव प्रविष्ट वज जव निका मुत कीर पुष्पांजलि सब सखिया हाथों में पुष्प लेकर युगल सरकार को पुष्पांजलि समर्पित करती|
अत्यार सुनत हस्तक महा चर्या दग भंगम नेत्रों का कटाक्ष भृकुटि का संचालन ग्रवा की मुड़न कर कमल चरण कमल ऐसा नृत्य सखियों का बाद में प्रियाज बुला बुला के किसी को पान की बड़ी किसी को प्रसादी माला अदभुत सुख की वर्षा करती है |
तुंगा नंग रस उत्सवम भजते में प्राण द्वयं कहा कृति ऐसे मैं अपने प्राणों के प्राण से युगल सरकार का कब भजन कर पाऊंगी कि मैं ऐसी उनकी सेवा करके उनको रिझाऊ श्रीपाद प्रभु नंद जी महाराज ऐसी आकांक्षा करते हैं वही आकांक्षा हम सबकी है कि हम अपनी प्यारी जू और प्यारे जू को ऐसे रिझा पाऊ|