Bhagwan Kaha Rahte Hain | Where does God live? | भगवान कहाँ रहते हैं | Premanand Ji Maharaj ka satsang

Bhagwan Kaha Rahte Hain संत वाणी:- यदि नाम जप करते हुए कर्म किया जाए और उसे प्रभु को समर्पित कर दिया जाए वही कल्याण कर सकता है उसी को कर्म योग कहते हैं |

अगर नाम जप नहीं और प्रभु को समर्पित नहीं किया गया तो नस कर्म मप अचत भाव वर्जित न शोभते ज्ञान मलम निरंजनम पुन शाश्वत भद्र मशवरे चार पितम कर्म य दप कारण न शोभते ज्ञान मलम निरंजनम यदि नाम जप नहीं है भगवत भक्ति नहीं है तो तुम्हें ज्ञान हो गया है |

निरंजन का व शोभा कोप्राप्त नहीं होता है जितने परम शुद्ध ज्ञानी है वह भगवान का भजन करते मिलेंगे चाहे नकाद हो चाहे भगवान शंकर हो चाहे शुक्राचार्य हो परमहंस सुखदेव जी या परम ज्ञानी जनक जी महाराज ये जिनको ना पूर्ण ज्ञान है और ना पूर्ण ज्ञानी है ये खंडन मंडन की बातें होती रहती है|

Bhagwan Kaha Rahte Hain

न शोभते ज्ञान मलम निरंजनम माया तीत त्रिगुणा तीत परब्रह्म का ज्ञान भी व सुशोभित नहीं होता जिसमें भगवत चर्चा ना सुनी जाए भगवान का नाम जप ना किया जाए ष कर्म मप भाव वर्जित यदि निष्काम कर्म किया जाए उसमें भगवत भावना नहीं है नाम जप नहीं तो वह कर्म भी कल्याण नहीं कर सकता कुतः पुना सश्वत भद्र ईश्वरम|

फिर और साधन ये जो अमंगल कारी है संसार के भोगों के इनसे क्या कल्याण हो जाएगा यह जो कामना कृत कर्म कर्म कृत कामना यह तो बंधन कारी है जो निष्काम कर्म भी है यदि वो भगवत अर्पित ना किए जाए तो लाभ नहीं मिलेगा इसका भाव समझिए अगर ज्ञान है और भजन नहीं तो ज्ञान किसी काम का नहीं गोस्वामी जी ने इसी श्लोक को सरल भाषा में लिखा है |

जोग कु जोग ज्ञान अ ज्ञान जहां नहीं राम प्रेम प्रधान सो सब धर्म कम जरी जाऊ जहा ना राम पद पंकज भाऊ वो जो कु जोग है वह ज्ञान अज्ञान है जिसमें भगवान के चरणों में प्रेम ना हो उनका नाम जप ना हो उनका गुण कीर्तन ना हो वो कर्म धर्म सवाग लग जाए जो भगवान के चरणों में भावना प्रकट करे व यहां कह रहे हैं |

न शोभते ज्ञान मलम निरंजनम माया तीत विशुद्ध जो त्रिगुणा त ज्ञान है यदि भगवान के चरणों में भक्ति नहीं नाम जप नहीं भजन नहीं तो वो ज्ञान किस काम का वो ष कर्म कर्म भी किस काम का जो अचित भावना विहीन भगवत भावना विहीन भगवान को अर्पण नहीं किया गया|

फिर वो काम कर्म जो बंधन कारक है उनकी तो चर्चा ही क्या है एक बार देवर्ष नारद जी ने देखा भगवान बहुत प्रसन्न है तो भगवान से कहा क्वाम बससी देवेश मया पस्तु पार्थिव विष्णु देवम तदा प्रा मद भक्ति परितोष प्रभु यदि मेरी भक्ति से प्रसन्न हो तो मैं आपसे एक प्रश्न करता हूं क्वा तुम बससी देवेश आप कहां रहते हो मया पृष्ट स्तु पर्थ हे देवेश्वर यद्यपि मैं अपने संतुष्ट के लिए पूछ रहा हूं आप वैसे कहां रहते हैं |

आप बता दीजिए भगवान ने कहा नाहम बसाम वैकुंठे योगी नाम हृदय नव मद भक्ता यत्र गायति तत्र तिष्ठ मि नारद तेशाम पूजा दि कम गंध पुष्पा कयते नर तेन प्रीति पराम यामीन तथा मत प्रप जना मत पुराण कथा सतवा मत भक्ता नाम च गायम निंदन नरा मस्ते मवे भवंति हे नारद ना मैं बैकुंठ में रहता हूं और ना योगियों के हृदय में रहता हूं |

यह मेरे प्रसिद्ध स्थान बताए गए हैं रहने के पर मैं यहां नहीं रहता मैं वही रहता हूं जहां मेरा भक्त नाम का कीर्तन करता मेरी चर्चा करता मेरे गुणों का गान करता है यदि मनुष्य गंध पुष्पा के द्वारा मेरे भक्तों का पूजन करते हैं |

तो मुझे इतनी प्रसन्नता होती है कि जो एक मेरी पूजा करे तो मैं उतना प्रसन्न नहीं होता जितना मैं अपने भक्त के पूजन से होता हूं वो मूर्ख जो मेरी चर्चा करने वालों का मेरे नाम कीर्तन करने वालों की निंदा करते हु मेरे द्वेष के पात्रे नहीं जानते कि जहां मेरी चर्चा होती है नाम गुण कीर्तन होता है वहीं मैं वास करता हूं|

Bhagwan Kaha Rahte Hain

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