ekantik Vartalap & Darshan 408 23-12-2023 ekantik Vartalap एकांतिक वार्तालाप & दर्शन By Shri Premanand Ji Maharaj

ekantik Vartalap & Darshan 408: अंकित शर्मा जी ग्रेट न राधा वल्लभ श्री ह श्री हरिवंश महाराज जी नवत प्रणाम गुरुदेव आपको पिछले एक साल से य के माध्यम से सुन रहा हूं महाराज जी मैं मुझे बहुत ज्यादा जल्दी क्रोध आ जाता और अपना विवेक खो देता हूं और गाली देने लग जाता हूं जिसके कारण नरक के द्वार पर खड़ा हूं महाराज जी मुझे बचा लो मैं कैसे क्या करूं?

Pujya Shri Premanand Ji Maharaj: अभी नाम जप में बच्चा बहुत सामर्थ है अगर हम नाम जप करें और थोड़ा विवेकवानी बने हम क्रोध क्यों करते हैं क्या हम में कमी नहीं है

तो हम अपनी कमियों को कभी क्या गुस्सा करके देखा आप विचार करके देखना अगर हम अपनी कमियों को गुस्सा कर देखे होते तो कमी रही नहीं जाती क्या मन पर कभी गुस्सा हुई क्या आप अपने ऊपर कभी गुस्सा हुए कि दुष्ट कितने जन्म हो गए विमुख होते हुए सब में भगवान को देखना था लेकिन आज भी तू शत्रु और मित्र आज भी तू हित और अहित आज भी अनुकूलता प्रतिकूलता मान अपमान देख रहा है

कभी आप अपने पर तो गुस्सा हुए नहीं आपने अपनी गलतियों को एक दो नहीं हजारों गलतियों को आपने क्षमा किया तो वो क्षमा बाहर क्यों नहीं करते आप अगर किसी से त्रुटि दिखाई दे रही यद्यपि शास्त्री सिद्धांत क्रोध हमारे अंदर की कमी से आता है कामा सं जायते क्रोधा क्रोधा स्मृति विभ्रम स्मृति भंसा बुद्धि नाश हो बुद्धि नाशा प्रणति जैसा आपने कहा मैं गाली भगता हूं मैं गुस्सा हो जाता हूं

अपने पर शासन नहीं रहता है उसका मूल है काम जब हम कामना करते हैं कि यह आदमी ऐसे चले यह ऐसा बोले हमारा ऐसा सिद्धांत है आपको ऐसा करना पड़ेगा और जब कामना करते हैं उस कामना में बाधा पड़ती है तो क्रोध आ जाता है

अगर कामना की पूर्ति होती है तो लोभ जागृत हो जाता है अनुकूलता में फस जाता है फसना दोनों में है है स्मृति दोनों ही नष्ट करते हैं या क्रोध प्रकट हो जाए या लोभ प्रकट हो जाए तो हमें इस बात पर ध्यान देना है कि धर्म सिद्धांत हमारे लिए है या उनके लिए है

सत्संग हमारे लिए या उनके लिए साधक सत्संग अपने लिए सुनता है शास्त्र सिद्धांत अपने लिए पढ़ता है कि ऐसी स्थिति में मुझे क्या करना चाहिए हम क्या है दूसरों पर ज्ञान थोपते हैं

कि तुमको ऐसा चलना चाहिए अपनी अनुकूलता के लिए वह अज्ञानी ही है हमें जो ज्ञान प्राप्त हुआ है जो सत्संग प्राप्त हुआ है वह अपने अंदर विकार ना पावे आ गया तो उसका समन कैसे करें इसके लिए ये हमें गाली ना दे ये कोई प्रतिकूल ना हो पूरी सृष्टि में कोई हमसे ऐसा बर्ताव न करे असंभव तुम क्या चीज हो बड़े-बड़े महात्माओं को सामने से गालियां दी जाती हैं अपमान होता है

बड़े-बड़े देश भक्तों के विरोधी लोग हुए हैं क्या-क्या वर्णन किया जाए लेकिन अपनी क्षमता बढ़ानी है अद्विता सर्व भूता नाम मैत्र करुण एव च निर्मम निरह कारा सम दुखा सुखा क्मी क्षमावाणी मुझे व प्रिय भगवान कह रहे हैं किसी भी जीव के अंदर हमको दोष दर्शन नहीं करना सच्ची पूछो यदि हम हरा चश्मा लगाए तो हरा हमको दिखाई दे रहा है

हमारे अंदर गड़बड़ी है दूसरों के अंदर नहीं हमें यह मानना है तभी हम मुक्त होंगे जब सच्ची मानो आपके अंदर की कमियां दूर हो जाएंगी तो आपको सब में जैसे गोस्वामी जी देख रहे हैं ना जड़ चेतन जग जीव जत सकल राम मैं जानी मेरे प्रभु सब में है

अब जब निज प्रभु में देखे जगत तो केसन करें विरोध अब सब में हमारा प्रीतम रमा है तो हम झगड़ा किससे करेंगे क्रोध किससे करेंगे मतलब अगर हम पूरा फाइनल में सवाल को हल करें तो हासिल लगाना भूल गए जो हासिल था वह जोड़ना भूल गए सब में प्रभु है ये हम भूल गए अब अपना तुम पुत्र हो तुम्हारा यह कर्तव्य तुम पत्नी हो तुम्हारा यह कर्तव्य लेकिन तुम क्या हो तुम क्या हो तुम्हारा कर्तव्य क्या है

अगर इस समय उसके ऐसे आचरण हो रहे जिससे तुम्हें गुस्सा आता है अब तुम्हारा कर्तव्य क्या है अपने कर्तव्य को भूल जाने वाला साधक नहीं होता दूसरे कर्तव्य को देखने वाला साधक नहीं होता साधक अपने कर्तव्य को देखता है हर परिस्थिति में कि इस समय मेरा कर्तव्य क्या है

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अगर नहीं समझ में आता तो गुरुजनों से पूछे जाके कि ऐसी परिस्थिति में मेरा तो सबसे पह पहला क्रोध से बचने का उपाय दोनों दांत मिला लो और मौन हो जाओ नहीं बो और नाम जप करने लगो हट जाओ उस समय नहीं तो वो वेग है

क्रोध का जैसे काम का वेग होता है ऐसे क्रोध का वेग होता है अब क्रोध का वेग है दुरु क्ति गाली जो आप कहते कि देते हैं कठोर वचन और फिर जब इसका और बल बढ़ेगा तो हिंसा अधर्मा चरण प्रहार यह सब शुरू हो जाता है क्रोध का बहुत बड़ा स्वरूप है

मतलब पूरा नाश कर सकता है पूरा नाश कर सकता है क्रोध का ऐसा है भाई भाई को मार सकता है पुत्र पिता को मार सकता है पिता पुत्र को मार सकता है पति पत्नी को मार सकती है पत्नी पति को मब क्रोधा वेश आ जाए तो कुछ भी हो सकता है

इसी का समन करना है समन हो जाएगा मौन और नाम जप अगर नाम जप नहीं हो रहा तो मौन रह नहीं सकते कि अच्छा रुक जा हम थोड़ी देर चुप है तो तू समझ रहा है बत बड़ा हो गया बहुत बलवान है

अब लेता जा अब वो क्रोधा वेश एकदम फूट पड़ेगा नाम जप राधा राधा राधा राधा उस समय विचार नहीं काम करेगा नाम जप करो मौन रहो और हट जाओ अपनी हार मत देखो कि मैं हार गया ये कल से और हमें परेशान करेगा नहीं नहीं नहीं तुम अगर हार गए हो तो कोई देख रहा है

वो ऐसा हराएगा उसे चिंता मत करो तुम चुप रहो बस तुम चुप रहो वो जीत जाएगा जो चुप रहा वो जीत जाएगा और जो यह समझा कि देखा डाउन हुआ ना उसको डाउन करने वाला कोई और है बहुत बढ़िया डाउन कर देगा सहन करने वाले के अंदर आध्यात्म की उन्नति होती है और जो उसको कष्ट देता है

वह अपने आप वही कर्म उसका नाश कर देता है हमने एक बार सुनाया था एक बड़ी नाव में सब बैठे कभी-कभी ऐसी नाव होती बड़ी-बड़ी नदियों की 100 100 लोग बैठ जाते हैं डेढ़ डेढ़ स लोग तो उसमें दो सरकारी कर्मचारी चढ़े जिनके हाथ में संगीन बंदूक भी थी व एक संत बैठे थे

उनके शिष्य बैठे थे तो वहीं खड़े हुए जहां शिष्य बैठे थे तो उन्होंने घुटनों में जूते से मारा ए साइड हो बाबा जी को तो कोई भक्त ही समझ पाएगा नहीं तो नहीं लगता कि भिखारी है ऐसा है पर यह पता नहीं कि किनके भिखारी हैं यह किनके हैं यह तुम्हें पता नहीं है

बूट मारे साइड में अब पास में गुरुदेव बैठे थे उनको धक्का ना लगे अच्छा वहां जगह थी नहीं सबको ठस के ऐसे बैठाला गया था फिर उसने पूरा बूट उसके पैर में रख दिया आओ व संत ऐसे करके रह जाते स ऐसा पूरी नाव भर वो करता रहा बार बार और जब नाव रुकी तो पानी से पहले ही रुक जाती है कुछ पानी किनारे का ऐसा होता है जहां नाव नहीं जाती है

तो फिर वो अपनी बंदूक को ऐसे करके छलांग ज लगाए बूटे फिसला और जो संगीन थी ना वो गर्दन तो गुरु जी ने दो थप्पड़ अपने शिष्य के मारे उसने कहा अगर थोड़ा तुम बोल देते थोड़ा कुछ कह देते तो बच जाता कुछ नहीं बोले ना मर गया उमा क्षमा साप होते भारी यह सिद्धांत समझ लो अगर सह पाए तो अपने कर्म जाय अपकारी अगर तुमने क्षमा कर दिया तो साप से भी बढ़कर हो गया तुम्हारा तो मंगल हो गया अब ये क्षमा वहां जाएगी और उसका हिसाब कर देगी

ये हमसे पर अपने को ये भी नहीं चाहना कि उसको कष्ट में भगवान उसकी बुद्धि शुद्ध करे पर ये जैसे आप आगे पूछ सकते थे कि यदि मैं बार-बार चुप रहूंगा तो अगला जो है वो बढ़ जाएगा और व हमको सताएगा नहीं नहीं आपने जो क्षमा किया है वो बहुत बड़ा अस्त्र है

भगवान शंकर के वचन है उमा क्षमा साप होते भारी व अपने कर्म जाए अपकारी वो अपने आप नष्ट हो जाएगा तुम्हें नष्ट करने की जरूरत नहीं है पूज्य पाद उड़िया बाबा जी के पास सत्संग में एक गृहस्थ आते थे तो उनको एक पड़ोसी बहुत सताता था हद हो गई

सत्संगी होकर जब इस निर्णय पर पहुंच गए कि अब मैं मारूंगा इसे जान से मारूंगा उड़िया बाबा से कहा बाबा बहुत हो गया मतलब बहुत हो गया अब इसको हम मारूंगा चाहे जेल चला जाऊं उड़िया बाबा ने देखा कि क्रोधा आवेश बहुत बड़ा है तो ऐसे कि उका बेटा मैं देख रहा हूं छ महीने में मर जाएगा वो कहा है

को तुम हत्या करोगे और जेल जाओगे छ महीने चुप हो जाओ छ महीने बाद वो मर जाएगा क्रोध शांत कर बाबा कह रहे बिल्कुल क्रोध शांत कर लिया अब वो कुछ भी बोलता वो कुछ नहीं बोलते बस उनको ये आद मरेगा साले छ महीने बाद मरेगा ये ऐसे छ महीने हो गए वो मरा नहीं बाबा से कहा बाबा वो तो मरा नहीं आप कह रहे थे छ महीने बोले हम उसके लिए थो कह रहे थे

तुम्हारे अंदर जो है ना हम उसको मारना चाहते थे छ महीने से गुस्सा आई बोले ना बाबा बोले उसको मारना चाहते थे तुम्हारे अंदर जो क्रोध है तुम इस बात पर आ गए ना कि छ महीने में वो मर जाएगा हम छ महीने में इसे मारना छ महीने गुस्सा नहीं आए

बोले बिल्कुल बाबा ले आए क्योंकि हम सोच रहे छ महीने में मर जाएगा अगर बाबा आप किया तो बोले बस ऐसे अभ्यास करो वह अपने कर्म से अपने आप नष्ट हो जाएगा तुम अगर क्रोध करोगे जेल जाओगे मारकर तुम्हारा जीवन नष्ट हो जाएगा तो संतों की बात है कि अपने को सहन कर और यह पक्का समझ लो य यद आप सहन कर रहे हैं

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तो आपकी सहन शक्ति बहुत बड़ी पावरफुल है वह ईश्वर तक पहुंच रही है और ईश्वर उसे दंड देगा थोड़ा धैर्य ऐसा ऐसा नहीं होता अगर यहां भी कत्ल किया है कोई तो दयो वर्ष मुकदमा नहीं चलता फिर कहीं उसे सजा होती कभी-कभी तो सजा होने में इतना विलंब हो जाता है कि सजा जो दी जाती है

उससे ज्यादा व जेल भोग चुका होता है नहीं होता अब तुरंत थोड़ी सजा मिलती है तो अब यह भी भागवत सिद्धांत है लेकिन अगर ऐसा सिद्धांत दूसरों के लिए है तो अपने लिए भी होता ना तो हमारी क्या दशा होती थोड़ा सोचो जैसे हम दूसरों के लिए मांगते हैं कि भगवान तुरंत क्यों नहीं करते नहीं मांगते भगवान अवसर देते हैं

सुधार का कि शायद शायद सुधर जाए नहीं फाइनल में तो मिलना ही दन तो जब हम उसके लिए सोच रहे हैं इसका ऐसा हो जाना चाहिए तो अगर वही सिद्धांत होता तो हमारी गति क्या होती जरा सोच के देखो हमारा रजिस्टर कोरा नहीं है

अगर वो सिद्धांत उसके लिए है तो वो लौट के हमारे लिए कानून तो हमारे लिए भी मेरी दशा क्या होती है इसलिए क्षमा कर दो लंबा समय भगवान सबको इसीलिए दे रहे हैं

सुधार कर लो सर्व धर्मानना कम शरणम ब्रज अहम तवाम सर्व पापे मोक्ष स्या विमास धैर्य पूर्वक रहो क्षन बनो नाम जप करो उस समय मौन का आश्रय ले लो उसमें भगवत भाव करो नहीं कुछ आए तो हट जाओ उस समय झगड़ा मत करो हार जाओगे तो तुम जीत जाओगे जीतने की कोशिश करोगे हार जाओगे यह माया है ठीक है ना

ekantik Vartalap & Darshan 408: मनजीत सिंह जीब आपके चरणों में कोटि कोट प्रणाम गुरुदेव मानसिक सेवा और प्रकट सेवा से सर्वश्रेष्ठ कौन सी सेवा है

Pujya Shri Premanand Ji Maharaj: बिना सीढ़ी पर चढ़े छत पर नहीं पहुंचा जा सकता यद अगर हम और छत का दोनों की बात करें तो यही कहा जाएगा छत ऊंचाई पर है पर ऊंचाई पर चढ़ने के लिए सीढ़ी है ऐसे ही मानसिक सेवा में पहुंचने के लिए प्रगट सेवा है

अगर हम प्रगट सेवा नहीं करेंगे तो हमारे अंदर मानसिक सेवा करने की योग्यता ही नहीं आएगी प्रगट सेवा करते करते मानसिक सेवा होने लगती है जैसे हम प्रगट में अपने ठाकुर जी को स्नान कराया उनको अंग प्रक्षालन करके वस् धारण कराए चंदन लगाया भोग लगाया अब यह सब चीजें सीमित है हमें लगता है

अगर हीरे का हार पहनाते बढ़िया रतन जट मुकुट पहनाते अब हमारी भावना बनने लगी पैसा तो है नहीं ला तो सकते नहीं पर हम हीरे के हार की रचना कर सकते हैं अब शुरू हो गई मानसिक सेवा अब वो सुंदर हार जहां फूलों को पहना है

वही भाव से ऐसे हीरे का हार पहना रहा स्वर्ण का मुकुट अब भोग लगाया तो दो रोटी चार रोटी फूल का वही दाल चावल मन में है कि बहुत भोग लगावे बहुत सुंदर सुंदर अब हमारा मन संतुष्ट नहीं हो रख दिया चार पदार्थ और भावना में गुझिया गुलाब जामुन रसगुल्ला राज भोग खीर हलवा और विशाल थाली और स्वर्ण की है

विविध कटोरिया में भोग रखे और स्वयं अपने हाथ से अपने ठाकुर जी को पवार वो शांत बैठा है होने लगी सेवा मानसिक अब प्रकट सेवा की ही नहीं तो मन पवित्र ही नहीं होगा तन नहीं पवित्र होगा तो जब हमारा तन पवित्र नहीं है मन पवित्र नहीं है

तो हमारे आंख मुने पर अंधकार दिखाई देगा मानसिक सेवा तो तब हो जब मानसिक आराध्य देव आवे ना मालो भाव में सामने दिखाई दे रहे प्रिया प्रीतम तो आप सेवा शुरू करो इसके लिए यहां तक पहुंचने के लिए नाम जप प्रभु की लीला गन और प्रभु की प्रकट सेवा प्रगट सेवा किए बिना मानसिक सेवा में पहुंचना बहुत कठिन होता है

हां कोई सिद्ध महापुरुष सीधे मानसिक सेवा में पहुंचा दे वह बात अलग है वह अपने तप बल से भजन बल से कृपा बल से जैसे भी चाहे महापुरुषों में सामर्थ्य होती है पर एक सीधी पद्धति है प्रगट सेवा से मानसिक सेवा में प्रवेश और कोई भी महापुरुष ऐसा नहीं है

जो प्रगट सेवा ना करता हो अगर वह आराध्य देव की नहीं करता है तो गुरुदेव की करता है तो भाई तो प्रकट सेवा मूर्त में तो विराजमान है गुरुदेव कोई किसी भी उपासना किसी भी मार्ग का हो क्या बिना अपने मूर्तिमान गुरु की सेवा के व ब्रह्म पदवी को या निराकार तत्व को प्राप्त हो सकता है

क्या नहीं तो पूजा तो शुरू हुई मूर्ति से ही ना मूर्ति से पहुंच गया मूर्त में तो ऐसे ही हम प्रगट सेवा से मानसिक सेवा में पहुंचते हैं इसीलिए जैसे अपने लोग अष्टयाम आठो पह लाडली लाल की प्रकट सेवा तोब असंतोष होता है

सेवा में कि हमारे पास उतनी जितना आप भाव करोगे ना अब उतनी ना सामग्री ना उतना वैभव जितना हमारा भाव बढ़ रहा है होने अब फूल है चार हमें प्रियालाल को फूल की पहाड़ में विराजमान करना है

सुंदर सुंदर राय बेल जूही हम मानसिक में गुलाब इतना पहाड़ जो हमारे प्रिया लाल स बैठे खेल रहे हम देख रहे हो रही मानसिक सेवा प्रियालाल के पहले भाव में आए ना भाव उत्सव भजता रस कामधेनु तोब उसके लिए हमें प्रकट सेवा और हमारा शरीर पवित्र आ चरणों से युक्त हो जाए पवित्र चरणों से महाप्रभु हरिवंश चंद्र जो कह रहे हैं

जिन्होंने अष्टयाम सेवा का विस्तार किया त बालक नहीं भरयो सयान काहे कृष्ण भज नहीं नीके तुम ठीक से भजन क्यों नहीं कर रहे हो तुम बहुत चतुर हो बालक नहीं हो बहुत चतुर देखो आज बहुत चतुर है पर वो अस मार्ग से सुख ग्रहण करने में बुद्धि लगाकर चतुर बना दी सत मार्ग में क्यों नहीं चलते ठीक से भजन क्यों नहीं करते बोले ठीक से भजन क्या है

बोले कुत्सित वाद विकार पर धन सुन सख मंद परती बंच गंदी बातें बोलना बंद करो दूसरे की निंदा करना बंद करो कुत्सित वाद और विकार काम क्रोध लोभ मोह मद मत्सर इन पर दृष्टि रहे यह तुम्हारे भजन रूपी धन को छीन ना पाए पर धन दूसरे का धन लूटने की इच्छा मत रखो छीनने की इच्छा मत रखो छल कपट से दूसरे का धन लेने की इच्छा मत करो परती बंच दूसरे की माता बहनों की तरह काम भोग दृष्टि से मत देखो नहीं सर्वनाश हो जाएगा

अगर यह छोड़ो और फिर भजन करो फिर सेवा करो तो मन पवित्र होने लगेगा अब ये छूटे कैसे तो सत्संग में इतनी सामर्थ्य है संतों का संग करो उनके वचन देख कितने ऐसे हमारे भाई लोग आते हैं जो कहते हैं

आए तो अब हैं छोड़ पहले ही सब चुके हैं गंदी बातें गंदे भोजन गंदे आहार आदि खानपान की जो बातें यह सत्संग के द्वारा कुसंग का त्याग करके और फिर भगवान की भक्ति का रंग चढ़ता है

यद्यपि मानसिक सेवा श्रेष्ठ है पर वैसे जैसे छत है वहां पहुंचने के लिए छत ऊंचाई पर है पर प्रधान कार्य सीढ़ी का ही हुआ अगर हम सीढ़ियों से प पैर ना रखते तो छत पर नहीं पहुंच पाते तो ऐसे ही और या तो लिफ्ट है

तो वही बात हमने कही कोई संत कृपा कर दे कोई महापुरुष कृपा कर दे तो सीधे मानसिक में प्रवेश हो सकता है पर सिद्धांत ये है कि पहले प्रकट सेवा करें और फिर मानसिक सेवा एक विनोद की बात है

बहुत कंजूस थे पर बहुत बड़े सेठ थे तो संत भगवान के पास गए बोले सहज में भगवत प्राप्ति हो जाए एक रुपया ना खर्चा हो बोले नाम जप करो रुपया पैसा नहीं खर्चा होगा कृष्ण कृष्ण हरि हरि राम राम राम रा जपो और मानसिक सेवा करो भगवान को मानसिक में देकर कभी खीर पूड़ी अच्छे अच्छे पदार्थ पवाओ अब जैसा बना धीरे धीरे धीरे काफी समय हो गया

कर एक दिन क्या हुआ कंजूस तो थे ही तो भाव में उसमें दूध में चीनी डाल रहे थे वो ज्यादा गिर गई उनको बहुत बुरा लगा चीनी ज्यादा इसलिए नहीं कि स्वाद इसलिए कि चीनी जदा कंजू स्वभाव था ठाकुर जी ने एक मरा प्रगट में मानसिक में तेरा पैसा तो नहीं लग मानसिक में तेरा पैसा तो नहीं लग रहा त वो जाकर बताए बोले तेरी मानसिक सेवा सिद्ध हो गई ठाकुर जी तेरी सेवा स्वीकार करने लगे

तो मानसिक सेवा यद्यपि सर्वश्रेष्ठ सेवा है पर वो प्रकट सेवा से या किसी महापुरुष के आदेश और कृपा से सब कुछ संभव हो सकता है भगवान के जो प्रेमी जन भजन के धनी है वो कुछ भी कर सकते हैं किसी के भी मन को पलट सकते हैं

उनमें सामर्थ्य है उनमें प्रार्थना भी है अगर वो हरि से प्रार्थना कर द तो सब बात बन जाए जैसे प्रहलाद जी प्रार्थना कर रहे हैं इन जगत के जीवों का परम मंगल करो आपका नाम लेकर आपका चरणामृत पीकर आपका लीला गन करके हम आपकी माया पर विजय प्राप्त कर लेंगे हमें आपसे आशीर्वाद की जरूरत नहीं हमें आपके आशीर्वाद की जरूरत है

इन लोगों के प्रभु इन पर कृपा कर दो जो आपको भूले हुए विषय भोगों में लगे हुए हैं नाथ मैं इनके दर्द को नहीं सह पा रहा ये भक्त हृदय प्रहलाद जी तो जो नाम जप कर रहा है चरणामृत पी रहा है खूब लीला गायन कर रहा है

ठाकुर सेवा कर रहा है तो मन तो अपने आप प्रभु में लग जाएगा देखो आप मानसिक भोग के लिए कोई ध्यान थोड़ी धरते हो संसार पर आपका मन उधर रत है ना तो देखो पूरी कल्पना कर लेता है पूरी पिक्चर तैयार कर लेता है अंदर कोई भी क्रिया करने जाओ कोई भी भोग भोगने जाओ कुछ भी करना हो तो पहले वो मनोरा पहले चिंतन के द्वारा पूरा तय हो जाता है

फिर बाहर क्रिया होती है होती है कि नहीं होती जैसे हमको भोजन तो आज ये ये बने ऐसे ऐसे बने यह चटनी हो यह हो और हम पूरा उसमें डूब गए बाद में क्रिया हुई बाद में पाया अगर हमारी चित्तवृत्ति प्रभु में लग जाए तो मानसिक सेवा शुरू हो जाए कामी नारी प्यारी जिम लोभी जिम प्रिय दाम तिम रघुनाथ निरंतर प्रिय लागो मोहि राम पहले प्रभु प्यारे लगने लगे तब हमारी मानसिक वृत्ति उनकी सेवा में लग जाए इसीलिए नाम जब करो

प्रकट सेवा करो लीला गन करो और थोड़ी-थोड़ी भावना करने लगो आज प्रभु को ये हम पहनाए ये पवाएं आज प्रभु को ऐसे हम ऐसे तो अपना जो भाव बन रहा है यही धीरे-धीरे मानसिक सेवा में बदल जाता है

नहीं तो मानसिक आंख मंद देखो अभी अंधकार दिखाई देगा नहीं दिखाई देगा आ ईमानदारी वाली बात अरे भैया भगवत प्राप्ति जो होती है ना उसकी कसौट आं है कुछ अगर उन बातों में आप आ गए हो तो आप भगवत प्राप्त हो ही जाओगे क्योंकि भगवान के अंश हो कोई दुर्लभ थोड़ी भगवत प्राप्ति पर बकवास तर्क और विषय सेवन और सम्मान चा ये भगवत प्राप्ति के लक्षण थोड़ी है तो मूर्खता के लक्षण है

विमु आत्मा करता म ऐसे और जो परम पद में होता है व ज्ञानी पुरुष होता है प्रेमी पुरुष होता है समस्त दंद से मुक्त निर्माण मोहा दित संग दोषा अध्यात्म नित्या विवृत कामा ंदर विमुक्ताए उ चिदानंद सुख का अनुभव करने वाला महात्मा वो भगवत महात्मा का तात्पर्य हम किसी भद से नहीं कह रहे कोई भी हो वो स्थिति वो कसौटी है

मान अपमान आपके हृदय में विचलित ना कर पावे अगर संत समागम मिला है तो दैन्य होकर जहां हो उससे आगे बढ़ने की बात पूछो उससे तुम्हारा मंगल हो जाएगा तुम कुछ हो यह जनाने की बात तो अपने लोगों को तो कोई जानकारी की जरूरत है

नहीं जैसे घर में पहुंच गए तो हमें किलोमीटर गिनने की जरूरत नहीं है हम आ गए अपने घर गए आए मिले परिवार आपने हरि हस कंठ लगायो भाग बड़ो वृंदावन पायो अब जैसे आप लोग आए हैं कृपा करके आप जहां चल रहे हैं

उसमें जो बाधा हो और आप जहां चलना चाहते हैं वह मार्ग क्या है यह जानने के अपनी तो जो धरोहर उसे छुपा लो और माल ले लो तब तो बुद्धिमान माना जाएगा दो चार बातें आई वही फटाफट फटाफट तो संत जन एक शब्द निकलते ही पहचान हो जाती है

कि यह शब्द डूबा हुआ निकल रहा है या केवल बुद्धि से निकल रहा है जब बुद्धि से निकल रहा है तो ऐसे हाथ जुड़ जाएंगे क्योंकि वो समझेगा नहीं वो तर्क पर तर्क करेगा वाद विवाद तहां नहीं भगवत मार्ग में वाद विवाद नहीं तो मानसिक सेवा में प्रवेश होता है

प्रकट सेवा से नाम जप से और अपने आचरण को पवित्र करें नहीं तो मानसिक सेवा विषयों की होगी देख लो हर समय आपका मन सेवा ही करता रहता है ये खाना ये देखना ये भोगना ये संग्रह करना है यह हमें प्राप्त करना है

यह प्राप्त कर लिया अब यह प्राप्त करना है यह जीत लिया अब इसको जीतना है संसार की तरफ ही जाता रहता है प्रभु की तरफ तो तब जाएगा जब हमारा देखना सुनना बोलना इन तीन पर सुधार हो जाए पहले श्रवण हमारी भगवत चर्चा सुने रसेंद्र हमारी नाम का रस ले वाक इद्री हमारी नाम संकीर्तन करें और नेत्र हमारे सब में भगवत भावना करें दिखाई नहीं दे रहे लेकिन प्रभु तो सब में है ही है ना बिजली तो वही है ना सबके हृदय की अगर हम ऐसे चले तो हमारा चिंतन बनने लगेगा जो हम देखते हैं

जो हम सुनते हैं जो हम बोलते हैं वही मन पकड़ता है और उसी का चिंतन करता है और जो चिंतन करता है वही हमारा स्वरूप हो जाता है अगर हम गलत चिंतन करेंगे तो गलत हो जाएगा सत चिंतन करेंगे तो सत चिंतन हो हमारा सत स्वरूप है ही है तो अब मानसिक सेवा का मतलब चिंतन उसको अब देखो मन एकाग्र हो मन पवित्र हो मन संयमी हो तब तो हो जैसे हम सेवा करने जाते तो पहले पात्र मार्जन करते हैं ना तो मानसिक सेवा में केवल मन ही पात्र है

अब वो निर्मल नहीं होगा वो एकाग्र नहीं होगा तो मानसिक सेवा कैसे होगी इसलिए पहले नाम जप करो आपका चरित्र पावन हो और आपके विचार पावन हो आपका हृदय दूसरों के सुख के लिए भावित हो जाए मानसिक सेवा में भगवान कृपा कर देंगे

प्रवेश होने लग मानसिक सेवा में प्रवेश हो गया मतलब वो सिद्धा अवस्था की तरफ जा रहा है तो अभी तो देह भाव छूटा नहीं है ना ध्यान करते समय जब हम भगवान का ध्यान करते हैं गुरुदेव का ध्यान करते हैं हर बार एक नई छवि प्रकाशित होती है

जी तो ऐसा वो कल्पना है या वो नहीं हम कल्पना नहीं कहते हम उसे भावना कहते कल्पना संसार होती है गुरुदेव या संत या भगवान की भावना होती है ऐसे चले जाओ चुप रहो किसी से अपनी बात कहो मत और अहंकार आने ना पावे आगे बात बनती चली जाएगी हम सब भगवान के अंश है ना तो हम में सब सामर्थ्य है कुछ असंभव नहीं है

आप प्रयास रत रहिए पर इसमें एक दोष होता है कि दूसरों को देखकर अपने में गुणा भिमान आ जाना या अपने में कोई महत्व बुद्धि रख लेना तो फिर उससे सब काम रुक जाता है अगर हम किसी को अपनी बातें बताएंगे तो हमारी बात बंद हो जाएगी ये एक मर्यादा है

हमारे ध्यान का विषय हमारे चिंतन का विषय अगर किसी मित्र को हम कहते भी है तो ऐसे संतों से सुना है कि अगर नाम जप किया जाए भगवान का आश्रय लिया जाए ऐसे ऐसे चला जाए मंगल हो जाता है

मैंने ये पकड़ा या मैं ऐसा कर रहा हूं मैंने अनुभव किया बिल्कुल नहीं बोलना चाहिए तभी ये अध्यात्म और अहंकार मानेगा नहीं वो अंदर-अंदर ऐसा उल्का आता है कि बोलो वो हम जो है ना वो सब खाली करवाना चाहता है और चार आदमियों को सुना को खाली हो गया कुछ नहीं बचा और अगर अंदर रखोगे तो देखो बार-बार वो क चाहे दीवाल से कह दे कह तो दे किसी से यह आहम जो होता है

ना अंदर यह बहुत बड़े ठग है हमारे अंदर काम क्रोध लोभ मोह मद मद माने अहंकार ये अंदर तो जैसे हमें कोई स्वप्न में संत भगवान आए या स्वप्न में भगवान आए या हमारा थोड़ा ध्यान लगा कोई महात्मा आए तो हमारा मन उलक है कि हम चार लोगों से बताए तो वो फिर मार्ग बाधित हो जाएगा

अगर रोक लिया अंदर तो फिर आगे बढ़ता चला है जैसे संत सभा में तो मान लो प्रश्न उत्तर में अपनी बात तो रखेंगे यहां कोई अहंकार पूर्ण बात थोड़ी कि हम बहुत ध्यान करने वाले यह बताना चाहते हो नहीं हम जानना चाहते हैं यहां यह विषय है पर आगे कहीं ऐसा नहीं शांत अपने को छुपा के चले तो फिर चोर लोग चोरी नहीं कर पाएंगे

अगर हम खुला तो फिर फिर चुरा लिया जाएगा माया बहुत प्रबल है तो संत जन जो है अपने वास्तविक धन को छुपाते हैं और वैसे भी हम आपसे कह रहे फटे पुराने कपड़ा पहन लो रुपया आप जेब में डाल लो आप कपड़े में ऐसे भर लो ऊपर फटा पुराना कप पड़ाओ गंदा सा उछा डाल कहीं चले जाओ

तुम्हें कोई नहीं बोलेगा और बढ़िया वेग हो बढ़िया केवल कागज भरे हुए वेग में सबकी नजर रहेगी कि वेग में कुछ है आदमी की क्वालिटी बताती और वो छिन जाएगा तो या तो आचार्य प्रदत्त भेष भूषा हो तो आचार्य संभालते हैं

नहीं तो अपने को ज्यादा भक्त दिखावटी में ना लावे और अंदर से अंदर खूब कमाई कर ले छुपा के रख के भगवत प्राप्ति हो जाएगी गृहस्थी में बहुत सावधानी पूर्वक भजन किया जाता क्योंकि बहुत से कार्य बहुत समाज में है अगर आप सबको यह जानकारी करवाना चाहेंगे कि हम ध्यान करते हैं

हम पूजा करते हैं तो एक तो आपका उपहास होने लगेगा और दूसरे आपका पूजा भजन बह जाएगा वह टिकेगा नहीं इसलिए गुप्त रखा जाता है अच्छा जब परिपक्व अवस्था आ जाती है एक अवस्था आती है

अब उसमें साधन किया नहीं जाता व परिपक्व अवस्था में होता है अब उसमें कोई एक केवल बाधा पहुंचा सकता है वैष्णव अपराध अगर किसी संत वैष्णव का अपराध कर दिया तो सिद्धावना में होने वाले लीला चिंतन भजन में भी बाधा पहुंच जाएगी अन्यथा फिर नहीं तो इसलिए संत जन अपने अनुभव भी बताते हैं

आप लोग जैसे आए हैं तो अनुभव ही सुनने तो आए बातें तो सब शास्त्रों में लिखी हुई है पर वो बात आपने कैसे अनुभव की और वह अनुभव हम कैसे कर सकते हैं तो प्रैक्टिकल हम उसको वहां देखते हैं

उनके आचरण में उनके वचन में उनके अनुभव में तो हमारा चित्त सहज में लग जाता है नहीं लिखा तो सब शास्त्रों में जो बोलेंगे शास्त्र से बिलक थोड़ी बोल सकते हैं ही बात है हम तैयारी करें और अपने को गुप्त रखें और आगे बढ़े और जब बड़े धनी बन जाओगे तो खूब लुटाओ कोई फर्क नहीं पड़ना है जैसे स्रोत से पानी आ रहा है खूब खींचते जाओ व पानी कम नहीं होगा

लेकिन भरा हुआ केवल रखा है उसकी एक लिमिट है वो खत्म हो जाएगा ऐसे ही अभी हमारी एक लिमिट का भजन है एक लिमिट की साधना है है नहीं आप निरंतर ध्यान स्थ नहीं रहते आप निरंतर भजन परायण नहीं जब निरंतरता होने लगती तो स्रोत हो गया वो वो आनंद समुद्र भगवान से संबंध हो गया अब वो अपने अनुभव बताते हैं खूब घोषणा करते हैं कि मैं शपथ पूर्वक कहता हूं

आप ऐसा करो निश्चित हो जाएगा तो निश्चित हो जा वो स्रोत से जुड़े वो कभी खाली होने वाले नहीं है अपने लोग खाली हो सकते हैं अहंकार है और अभी थोड़ा शुरू हुआ है अभी भगवता का वृत्ति तो रही इसलिए गंभीर रहे छुपाओ करके रखे|

ekantik Vartalap & Darshan 408: चंचल जी हरिद्वार से धावल श्री हरिवंश राधे राधे महाराज जी महाराज जी मेरा ठाकुर जी और श्री जी के प्रति वात्सल्य भाव है महाराज जी क्या मैं श्री हित 84 जी और सेवक वाणी का पाठ कर सकती हूं?

Pujya Shri Premanand Ji Maharaj: हां बिल्कुल कर सकते हैं हमारे भगवान इतने करुणामय हैं कि इतने महान होते हुए भी हम उनको जैसा चाहे वैसा व्यवहार कर ले हम उनको अपना मित्र मान सकते हैं स्वामी मान सकते हैं पुत्र मान सकते हैं हम उनको गुरु मान सकते हैं हम उनको शिष्य मान सकते हैं देखो संदीपनी जी के सामने शिष्य बने बैठे ना क्या है

संदीपनी जी भगवान के आगे अब विचार करके देखो जिनकी श्वास से वेदों का प्रादुर्भाव हुआ जा की शवास वेद श्रुति चारी सो हरि पढ़े यह अचरज भारी महिमा प्रकाशित कर दी संदीपनी जी ऊपर बैठे भगवान नीचे विद्यार्थी बले बैठे शिक्षा ले रहे भावना हुई ना देखो शदा मैया को जो सुख मिला मेरा लाला है ठाकुर जी अनंत ब्रह्मांड के स्वामी है बाप है सबके बाप हैं ब्रह्मा के भी बाप आप ही है

भला वो हम जैसे साधारण के लिए वो कैसे पुत्र हो सकते हैं लेकिन यही भगवान की भगवता है यदि हम भाव करें तो पुत्र एक कई बार इस चर्चा सुनाई एक बार यशोदा मैया किसी सेवा कार्य में लाल जू की लगी हुई थी और लाल जू महाराज अभी खड़े होना नहीं आया था

धीरे-धीरे ऐसे घुटनों के बल उसे गांव में बकैया बकैया कहते हैं घुटनों के बल चल के गए तो डेहरी बहुत बड़ी थी नंद बाबा की पहले घरों कीथ तो ऐसे चढ़ गए आश्रय लेकर तो छाती बीच डेहरी पे ऐसे पैर उठ गए और हाथ पहुंचे नहीं नीचे तक अब रो रहे जो दशा उतने में देवर्ष नारद जी आए थे

दर्शन करने देखा दशा त बोले प्रभु एक टांग अगर बढ़ाई थी तो ब्रह्म लोक पहुंच गई थी नंद बाबा की डेहरी नहीं लांग पा रहे हो उनका चुप यह मैं अपनी मैया को सुख देने के लिए कर रहा हूं और रोने लगे इतने में मैया दौड़ के अरे मेरो लाला गोदी में उठा छाती से दासिया को झड़ रहे लाला को इतना दुलार देखो अनंत ब्रह्मांड के स्वामी विश्व का भरण पोषण करने वाले भगवान अगर उन्होंने वात्सल्य भाव से प्रभु को मांगा कि आप हमारे पुत्र हो जाओ तो वैसे ही भगवान पुत्र बन कर के सुख दे रहे हैं मित्र बन के सुख दे रहे सखाव को पति बन के सुख दे रहे हैं गोपी जनों को स्वामी बन के सुख दे रहे हैं दास जनों को जो जिस भाव से भजे भाव उत् सवे भजता भाव से भजो तो भगवान आपको वैसे ही अनुभव में आने लगेंगे वैसे जा की रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखे तिन तैसी तो हम भगवत लीला अगर हम दास भी हैं

या वात्सल्य भाव से बचते हैं तो ये यह तो जरूर है दो भाव जरूर रहते हैं ध्यान रखना मेरा पुत्र है पर यह है कौन यह पता रहता है भक्त अज्ञानी नहीं होता वसुदेव देवकी जी के सामने इसलिए पहले भगवान नारायण रूप से प्रकट हुए कंस कारागार में कि देखो मैं हूं कौन अब देखो मैं आपके जो तपस्या की उसके अनुसार मैं बालक बन जाता हूं

भगवान बालक बन ऐसे ही महाराज दशरथ जी के भवन में कौशल्या जी के सामने भवान पहले अपने स्वरूप में प्रकट हुए ऐसे भगवान का व दिव्य रूप वैभव माता माता अपनी बोली सो मति डोली तज ताते रूपा की ज शिशु लीला अति प्रिय शीला सो सुख परम अनुपा तो सुन वचन सुजाना रो दन ठाना होई बालक सुर भूपा भगवान से कहा कि प्रभु हम इस रूप हम तो चाहती थी कि आप हमारी गोद में उसी समय भगवान ने वैभव रूप और बालक होकर रुदन करने लगे सूचना पहुंची दशरथ जी के पास लाला हुआ

अब उनको तो पता था कि कौन लाला आएगा जाकर नाम सुनत शुभ होई मोरे गृह आवा प्रभ सुई जिसका नाम सुनने मात्र से परमानंद वो प्रभु मेरे घर बालक बन कर के आए बावरे बन कर के प्रेम में जा भगवान वही नीलमणि बाल रूप वैसे छोटे छोटे चरण चला रहे वैसे ही देखो अनंत ब्रह्मांड के स्वामी अपने भक्त की भावना के लिए कैसे और जरूरत पड़ी तो ऐसे सुकुमार तत्व नरसिंह रूप में खंबे से फाड़ के प्रकट हो गए अपने भक्त के लिए हुए ना भगवान का ये विकराल रूप जो है

कहीं भी ऐसा रूप ना लिखा है ना पढ़ा गया और ना सोचा गया था प्रल्हाद जी को जितना सताया गया महाबली हिरण कश्यप था भगवान का पार्षद है कोई दूसरा थोड़ी वो उसको कोई दबा सके त्रिभुवन में ऐसी कोई शक्ति नहीं कोई देवता नहीं कोई मंत्र नहीं कोई अस्त्र नहीं किसी का पावर नहीं किसी का साप उसे नष्ट कर सके इतनी ताकत ही नहीं ऐसा अमोग था तभी भगवान ने खंभा फाड़कर वो रूप धारण किया जो अद्वितीय रूप ऐसा भयंकर रूप कि सब देवता सब कांप रहे थे

जब लक्ष्मी जी से कहा कि आप तो जानती है ना जानती तो है कि हमारे प्रीतम तो बोले जा लो मनाओ मनाओ जाके जाओ ना बोली इस समय ले जाऊंगी ये वो रूप भगवान का विशाल जिव्या विशाल नग और ऐसी दहाड़ की हिरण कश्यप एक ही दहाड़ में मूर्छित होकर गिर गया था

ढाल तलवार सब गिरी फिर भगवान ने उसे होश में खड़ा हो देख तू अपने बल को फाड़ के फेंक दिया ना कोई वरदान काम आया और ना कोई तब काम आया तो देखो हमारे भगवान इतने सुकोमल लेकिन जरूरत पड़ी तो भक्त के लिए इतने भयानक बन गए भगवान से प्यार करो कैसे भी करो उन्हें दोस्त मान लो वो दोस्त बन जाएंगे पिता मान लो पिता बन जाए पुत्र मान लो पुत्र बन गुरु मान लो जो चाहो हमारे भगवान तो इतने करुणामय है

जिस भाव से चाहो उस भाव से भगवान को भज लो तो इसमें कोई निषेध नहीं है कि आप भगवान को ऐसे भाव से नहीं देख सकते हो सही पूछो सच्ची कह रहे हैं आज भी तुम्हारे जो आसपास है प्रियजन वह वही बने हुए हैं हम जान नहीं पा रहे हैं यह पांच भौतिक तन है

अंदर वही बैठे हुए हैं चाहे पत्नी रूप में चाहे पुत्र रूप में हो चाहे मित्र रूप में हो चाहे जिस रूप में हो वही बने बैठे हैं जिस दिन नेत्र खुल जाएंगे अभी माया में नेत्र है ज्ञान चक्षु खुलेंगे अज्ञान तिमिरा दस्य ज्ञानांकुर मिलित तस्मै श्री गुरुवे उसी दिन आप देखोगे कि हे नाथ आप ही इन सब रूपों में विराज मैं तो जान ही नहीं पाया कि आप मुझे इतना प्यार करते हैं पत्नी रूप से प्यार पुत्र रूप से प्यार माता-पिता रूप से प्यार मित्र रूप नाथ ये तो आप घट घट में व रमा है यही तुम्हें दिखाई देने लगेगा अच्छा है भाव करो किसी भी तरह प्रभु को भजो परम मंगल है|

ekantik Vartalap & Darshan 408: महाराज एक सेकंड केवल कुछ गीता महाराज से प्रकाश महात्मा गीता जयंती है अपने मुख से आप बोलते भगवान बोल जी हम तो गीता जी का प्रत्येक श्लोक हमारे भगवान के श्रीमुख से निकला हुआ है ?

Pujya Shri Premanand Ji Maharaj: हरि श्लोक बंदनी है पर एक बात पर ध्यान देने की विशेष आवश्यकता है भगवान ने कहा अनन्य चेता सततम यो माम स्मृति नित्य सहा तस्य हम सुलभा पार्थ नित्य युक्त स्य योगिन तपस्वी से भी श्रेष्ठ योगी है ज्ञानियों से भी श्रेष्ठ योगी है कर्मकांड हों से भी श्रेष्ठ योगी है कौन योगी जो भगवान का निरंतर चिंतन कर रहा है

अनन्य चेता सततम यो माम स्मृत नित्य सा मुझ सच्चिदानंद का जो निरंतर चिंतन कर रहा है तस्य हम सुलभा पार्थ क्योंकि सबसे श्रेष्ठ बात है भगवत साक्षात्कार सब साधनों का फल है भगवान में प्रीति हो जाना भगवान का साक्षात्कार हो जाना पाप और पुण्य यह तो सब बहुत बड़ी झंझट है

पाप नष्ट करने के लिए तो सरकार कह रहे हैं हमम तोम सर्व पाप मक्ष मुझे उससे मतलब नहीं सुकृत के लिए बहुत से साधन बताए हैं उनसे भी मतलब नहीं भगवत साक्षात्कार मनुष्य जीवन का परम लक्ष्य है और वह भगवान के श्रीमुख के वचन है केवल मेरा जो अनन्य चिंतन करता है

मैं उसके लिए सुलभ हो जाता हूं वही सुलभ हो जाए तो साक्षात्कार हो सकता साधना में ताकत नहीं अनन्य चेता सत बोले महाराज हमारा काम कैसे चलेगा हमारी व्यवस्था कैसे चलेगी हमारी रक्षा कैसे होगी हम आपके चिंतन में लगे अनन्य चिंत तो माम ये जना परिपास तेशाम नित्या युक्ता नाम योग क्षेममगा और प्राप्ति की रक्षा करूंगा

क्षेम केवल तुम मेरा अनन्य चिंतन करते हुए अपने कर्तव्य का पालन करो और वो कर्तव्य कर्म मेरे को समर्पित कर दो ये तो सर्वानी कर्माणि म सनस मत परा अनन्य नव योगन माम ध्यायतो उपास तेशा महम समुद धरता मृत्यु संसार सागरात भवाम भगवान कह रहे मैं ठेका लेता हूं

उसको इस संसार समुद्र से पार कर दूंगा सारे कर्म समर्पित करें भगवत भाव से अनन्य चिंतन करते हुए यथा योग्य बर्ताव करें भगवान करे तस्य हम सुलभा पार्थ मैं उसके लिए सुलभ हो जाता हूं जिसको कहे वासुदेवा सर्म सा महात्मा सु दुर्लभा वही सुलभ स्थिति भगवान की प्राप्त करने के लिए अनन्य चिंतन कई बार भगवान ने अनन्य चिंतन की बात कही है अभ्यास योग युक्त चेत सा नान्य गीता अमृत है

एक श्लोक तो बहुत बड़ी बात है एक श्लोक के एक शब्द को धारण कर ले तो भगवत प्राप्त हो जाए एक श्लोक के एक शब्द को क्योंकि स्वयं जगतगुरु भगवान के श्री मुख से निकले हुआ वोह गीता अमृत है

जरूर जरूर भगवत चिंतन परायण जरूर हो जाओ नहीं तो ये कलिकाल मला यतन मन कर देख विचार यह मन को मलिन करता चला जाएगा भगवान से विमुख होकर भोगों के प्रवाह में बहते हुए ये जो दुर्लभ समय मानव देह का मिला ये छूट जाएगा इसलिए हा भगवान के वचन मानो जैसे भी बने बार-बार भगवान की लीला चिंतन गुण चिंतन नाम चिंतन रूप चिंतन धाम चिंतन भक्ति चिंतन जैसे भी बने जुड़े रहो प्रभु से अपना चित्त जोड़े रहो

भगवान एक बहुत बड़ी बात कहे बोले आपी चेत सुधरा चारो यह सु शब्द होता है सांगोपांग सांगोपांग दुराचार करने वाला हो अप बहुत श्रेष्ठ श्रेष्ठ पुण्यात्मा नहीं कह रहे श्रेष्ठ पापी अपि चेत सुधरा चारो लेकिन भजते मा अनन्य भाग तो साद समत ब्या सम्यक वसता सा वो साधु है

मानो आदेश कर रहे भगवान क्योंकि उसने सम्यक रूप से सोच लिया भगवान के सिवा मेरा कोई नहीं तो महा पापी को भी मैं महात्मा शिप्र भवति धर्मात्मा भगवान के सब कुछ गीता जी में लिखा हुआ है हां गीता अमृत है जहां तक हो सके स्वाध्याय करो नहीं तो महापुरुषों के वचन उसी गीता का सार निकलते हैं उसी उनको स्वीकार करलो|

ekantik Vartalap & Darshan 408: राधा वल्लभ ला जब से भक्ति शुरू करी सब उपास करते हैं?

Pujya Shri Premanand Ji Maharaj: हां बच्चा लेकिन आप विचार करो आप सत्य मार्ग में हो तो क्या उपहास सुनकर आप सत्य को छोड़ देंगे नहीं बच्चा बहादुर आदमी हो उपहास से नहीं डरना उपहास तो किसका नहीं करता संसार आप जरा आप खोल के देखिए पुतले फूके जाते हैं गालियां मिलती है तो क्या वो अपने पद को छोड़ दे क्या वो अपने पद का व्यवहार छोड़ दे तो हम तो परम पद के मार्ग में जा रहे हैं

यह तो सब पद है भगवान का भजन परम पद है नहीं आपको डाउन नहीं होना निराश नहीं होना आपको और उत्साहित होना कि सत्य मार्ग में मेरे मार्ग में जो रोड़े जाले जा रहे हैं अब मैं इनको फांद के दिखाऊंगा उपहास करने वालों मैं एक दिन तुम्हें दिखाऊंगा कि तुम ऐसे नम्र हो जाओगे और मैं ऊंचाई पर चढूंगा सत्य मार्ग को लिए अहंकार से नहीं मैं जिसका आश्रय लिया हूं

उसके बल से बोल रहा हूं कभी उदास होने की जरूरत उपहास होता है बचपन से इस मार्ग में चले थे ना सामने से गालियां मिली डरना नहीं निराश रे हमें यह पता है कि सत्य मार्ग है अगर हम गलत हो तो हमें सोचने की बात है जब आप सत्य मार्ग पर चल रहे हो तो उपहास करने वाले हमारे सहयोगी कभी झंडा अकेले नहीं फहरा सकता उसके नीचे डंडा लगता है डंडा ये है

उपहास करने वाले और झ हो आप फहरा होगे पक्का पर हिलना नहीं अगर विरोधी ना हो तो हमारा भाव नहीं जान पाएंगे लोग अगर मीरा जी का विरोध ना होता तो मीरा जी की ऊंचाई नहीं कोई जान पाता प्रहलाद जी का विरोध नहीं होता तो प्रहलाद जी की उचाई नहीं जान तो बच्चा तुम्हारे अंदर जिसने भक्ति दी है

वही तुम्हारी रक्षा करेगा उपहास वालों से डरना नहीं आगे बढ़ो ठीक है नाम जप कीजिए अपनी सेवा को भगवान की पूजा मानिए जितने क्षेत्र में आपकी जनता है मानो आप पिता हो वह आपका परिवार है

ऐसे भाव से जहां दंडनीय अपराध हो वहां दंड देकर पूजा करना जहां रक्षा का भाव हो वहां रक्षा दे अपना लड़का गलती करता है तो थप्पड़ मारते हैं ना ऐसे ही यदि कोई हमारी समाज को कष्ट देने वाला है

तो हमारा शासन विभाग है उसे दंड देना है और अगर हमें रक्षा करनी तो रक्षा करना है पिता की तरह स सज में जो आपको अधिकार मिला है उसका पालन करें तो भगवान इसी से प्रसन्न हो जाएंगे अलग से कोई पूजा करने की आपको जरूरत नहीं बस नाम जप कीजिए और समाज की सेवा का भाव इन्हीं में गोविंद विराजमान है

संपूर्ण हृदय में भगवान विराजमान है उन्नति का इतना ही नहीं उन्नति का बहुत शिखर है लोक परलोक परमेष्ठी पद तक ब्रह्मा पद तक है आप ऐसे चलोगे ना तो आगे बढ़ते रहोगे भगवान का भरोसा दृढ़ हो नाम जप हो और समाज की सेवा हो ये जितने हमारे पद हैं भगवत पद है भले राष्ट्र में जो लौकिक दिखाई दे रहे हैं

ये भगवान की सृष्टि है भगवान के निर्धारित किए हुए व्यक्ति इसमें विराजमान जैसे आप इस पद में हो भगवान ने आपको चुना है अब आपको ऐसा करना है कि इससे नीचे ना गिरे आप ऊपर उठे हां तो नाम जप समाज की सेवा सबसे प्रिय व्यवहार ऐसा व्यवहार करें कि आपकी याद करें कि अगली बार यही हमारे शासक हो यही हमारे मध्य में पद पर बैठे व्यवहार बहुत मृद हो व्यवहार बहुत प्रिय हो हम एक दिन भूखे रह सकते हैं लेकिन हमारी सेवा जो है

हम उसे भूखे नहीं रहने देंगे तो आप उठते चले जाओगे हम लोग जहां गलती कर देते ना कि हम अपने पद का अगर दुरुपयोग कर देंगे तो फिर बात गलत हो जाएगी हमारा पद माता-पिता की तरह ग्राम प्रधान से लेकर राष्ट्र के उच्चे शिखर तक यह सब भगवान के द्वारा निर्धारित पद है और समाज की सेवा ये भगवान की शुद्ध सेवा है भले में कुछ भी अगर हमें दंड भी देना पड़ रहा तो य भी सेवा है यह भी ध्यान रखना है अगर अधर्मा आचरण वाला है

तो उसे प्यार नहीं करेंगे हम उसे शासन मिलेंगे दंड देंगे जिससे हमारे समाज का सुधार होगा समाज की रक्षा होगी इन्हीं वचनों से आपका स्वागत करते हा खूब नाम जप कीज राधा राधा राधा |

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