ekantik Vartalap Darshan 410 25-12-2023: एकांतिक वार्तालाप & दर्शन By Shri Premanand Ji Maharaj

ekantik Vartalap Darshan 410: ज्योति जीश महाराज जी आपके चरणों में कोटि कोटि नम गुरुदेव यदि हम ग्रस्त आश्रम में है मन वैराग्य चाह रहा है और पति व्यभिचारी ना हो जाए इसलिए हमें साथ देना हो तो इसे हम प्रभु से विरक्त नहीं हो जाएंगे ?

Pujya Shri Premanand Ji Maharaj: नहीं आप विचार कीजिए वैराग्य किसे कहते हैं कपड़ा बदलने को वैराग्य नहीं कहते हैं हां राग पूर्वक विषयों का सेवन करना ये बंधन का कारण है पति सेवा के लिए विषय सेवन करना यह तुम्हारे मोक्ष का कारण बन जाएगा

भगवत आज्ञा का पालन करने के लिए पुत्र परिवार आदि की सेवा करना यह भगवत प्राप्ति का कारण बन जाएगा हम कोई गप्प नहीं कह रहे ये प्रमाण सहित कह रहे हैं

गोपी जनों के चरित्र पढ़ के देखो उनके पति थे उनके पुत्र थे वो शारीरिक क्रियाएं गृहस्थ जैसी करती थी लेकिन मन श्री कृष्ण अनुराग में था तो उद्धव जैसे ज्ञानी परमहंस श्री सुखदेव जी जैसे महापुरुष उनकी चरण वंदना की है तो मुझे लगता है कि पति को भगवान समझकर उनकी आज्ञा का पालन करना यह शरीर धर्म है

आप शरीर नहीं हो आप अपने कृष्ण प्यारे के चिंतन में रहो शरीर सेवा में जिसके अधिकार का जो है पति का अधिकार इस शरीर है जैसे पुत्र है तो मां भाव से उसकी सेवा करो माता-पिता है तो सेवक भाव से उनकी सेवा करो पति में भगवान का दर्शन करो

क्या परेशानी क्या है कोई परेशानी नहीं जो बात ब्रह्मचर्य से बननी है उससे कई गुना बढ़कर के बाद पतिव्रता पति आराधना से बन जाएगी आप कह सकते हो कि कई गुना बढ़कर कैसे हम ब्रह्मचर्य इस बात का अभिमान हो सकता है

सब बेकार हो गया जैसे बढ़िया र बनाई और थोड़ा सा उसमें विष्ठा गिर जाए चाहे किसी पशु पक्षी का वो भोग लगाने योग्य नहीं ऐसे कितना बड़ा साधन और अहंकार आ जाए वह हमारे प्रभु की प्राप्ति कराने वाला आपकी रुचि नहीं बिल्कुल लेकिन आप पति की भावना को पुष्ट करने के लिए जैसा आपने अपने वचनों से कहा कि मेरे पति कहीं भटक ना जाए

इससे बढ़िया और साधन है शांत राग रहित बहुत सुंदर स्थिति है यह तो मतलब भगवत कृपा से प्राप्त होती है जैसे अपने लोग भगवत मार्ग में बढ़ रहे हैं जो भी साधक मन खींच रहा है विषयों में बार-बार लड़ना पड़ रहा है जलना पड़ रहा है लड़ के जल के इस मार्ग को क्रास कर रहे हैं

आप प्रणाम योग्य हो आप गृहस्थ में हो विषयों में हो आपकी रुचि नहीं है सोचो आपकी रुचि नहीं लेकिन अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए आप तत्पर हैं यही तो भगवान आज्ञा कर करते हैं अपने कर्तव्य का पालन करना ही सबसे बड़ी पूजा है बिल्कुल कहीं इधर-उधर अपने मन को मत फैलाओ ना कहीं जाने की जरूरत है ना कहीं वेष बदलने की जरूरत है और ना कोई ऐसी गलत निष्ठा लेने की जरूरत है

तुम्हारे लिए गलत निष्ठा हो जाएगी भगवद आश्रित वैसे ही आपको रुचि नहीं है भगवत कृपा से भाई यही तो खास बात है रुचि ना हो और विषयों के सेवन में या विषयों में उपस्थित कोई फर्क नहीं पढ़ना और रुचि हो और विषय त्यागी है तो अभी कोई आध्यात्मिक फर्क पड़ने वाला नहीं है विषयों को नहीं सेवन कर रहा पर उसकी भोगों में रुचि है

अभी बात नहीं बनेगी जब भोगों से अरुचि हो जाएगी तन छाड़ मन गई रहे दोनों ही दुख होए यह आंतरिक विषय है तुम्हारी मत्व बुद्धि धन में है भोगों में संसार में छोड़ दिए हो बिल्कुल नहीं कर रहे हो

लेकिन अंदर से है अभी अध्यात्म का सुख नहीं मिलेगा आप विषयों में हो घर में हो प्रपंच में हो लेकिन आपका मन कृष्ण के लिए व्याकुल है विषयों में सुख नहीं मान रहा बहुत ऊंची स्थिति है बहुत अच्छी स्थिति है

ekantik Vartalap Darshan 410

बस इसको छुपाए और शांत एक साधारण नारी की तरह व्यवहार कीजिए और अंदर से श्री कृष्ण प्रेम में मतवाली हो जाइए कोई जान नहीं पाएगा कि आपकी स्थिति क्या है आप समझ पा रहे हैं

इस इस पर कोई संशय हां बहुत धन्यवाद हमें सुनकर अच्छा लगा कि कोई अरुचि अगर ईमानदारी से अरुचि है तो इसीलिए साधना की जाती है कि हमारे भोगों में अरुचि हो जाए

भोगों में अरुचि हो जाए बहुत बड़ी बात है अपने लोग जैसे इस मार्ग में चलते हैं ना बहुत लड़ना पड़ता है भगवान की कृपा से जल जल के जल जल के तब व जाकर निर्विकार हृदय होता है और धन्य है कि विकार स्थली गृहस्थ में रहकर विकार भरे व्यवहार में रहकर और अरुचि है वास्तविक अगर ऐसा है तो यही तो उच्च कोटि की अवस्था की तरफ ले जाती है बस इसी बात को समझना है अपने धर्म का अपने कर्तव्य का पालन ही भगवान की सबसे बड़ी पूजा है|

ekantik Vartalap Darshan 410: राहुल धवन जी कुरुक्षेत्र राधे राधे महाराज जी आपके चरणों में कोटि कोटि प्रणाम महाराज जी मैं बहुत ज्यादा परेशान हूं महाराज जी भगवान और भक्तों के प्रति दुष्टता भाव आ जाता है उनके प्रति गंदे गंदे भाव आते हैं मैं राधा नाम जप करता हूं परंतु फिर भी दिल में राक्षसी भाव है ?

Pujya Shri Premanand Ji Maharaj: इतना रुक कर फिर आगे की बात करो बच्चा जब हमारा मलिन चश्मा होता है तो किधर भी देखो मलिन तो दिखाई देगी सृष्टि कैसी बोले आपकी दृष्टि जैसी वैसी सृष्टि राममय दृष्टि तो सबको देख रहे हैं जड़ चेतन जग जीव जत सकल राम में जानी सबको राम में देख रहे हैं

ब्रह्म मय दृष्टि सर्वम लमदम ब्रह्म वासुदेव में दृष्टि वासुदेवा सर्वम श्याम मय दृष्टि जित देखू तित श्याम मई राधा कृष्ण मय दृष्टि तो चद चद लक्षणं सर्वम राधा कृष्ण मयम जगत देखो हमारी दृष्टि दूषित हो गई हमारा मन दूषित हो गया है

वोह दूषित आचरण कई जन्मों से होते चले आ रहे हैं इसी जन्म अभी तो आपकी नई अवस्था है कोई इतने भारी पापा आचरण थोड़ी बचपन से करते रहे हो समझ रहे हो ना तो अब हमको क्या करना धैर्य पूर्वक बहुत पुराना रोग है हम जैसे नाम जप कर रहे हैं सत्संग सुन रहे हैं हमारा मन कह रहा है

यह आदमी गंदा है उसको ऐसे देखो जैसे पागल आदमी जो रोड में पागल आदमी किसी के ऊपर थूक रहा है किसी को मार रहा है किसी को गाली दे रहा है लेकिन बुद्धिमान लोग उधर नहीं देखते हैं पागल है यार अभी हमारा मन पागल है यह कुछ भी सलाह दे रहा है आप खुद देखिए आप वह सलाहकार सही नहीं है

वह कितना गंदा सोच सकता है कितना अच्छा सोच सकता है पागलों जैसा उसका व्यवहार चल रहा है कभी कहेगा यह प्रिय है कभी कहेगा यह नहीं यह प्रिय है कभी यह प्रिय है कभी ऐसा करो घोर पापा चरण में लगा दे वही पापा चरण में तो लगाता है

अब हमको क्या करना है ठीक निर्णय करना है वह जो सही सलाह दे तो उसमें तो हम स्वीकार करते हैं और जब गलत सलाह दे तो ना हमें गुस्सा होना है और ना उससे प्यार करना है निकलता चला जा रहा है यह दुष्ट है य ऐसा ये छल्ली है कपटी क्रास होता चला जा रहा है जब वो आपका सपोर्ट नहीं पाएगा तो निर्मल होने लगेगा

निर्मल होने के लिए कोई साबुन की जरूरत नहीं राधा राधा राधा आप कहे कि जप रहे हैं जो गलत आचरण आपके द्वारा वर्तमान में हो रहे हैं वह मन की सलाह से हो रहे हैं उसकी वह सलाह बस अगर आप ना माने तो बहुत जल्दी ठीक हो जाएगा

जो आपके अंदर जलन पैदा करेगा मन जैसे वो कह रहा है कि यह चीज भोगो इसको छुओ इसको सूंघ हो इसको देखो इसको बोलो ऐसा करो गलत है तो नहीं अब व जलन पैदा करेगा व्यथा पैदा करेगा ऐसा लगेगा कि यार अगर हमय कर लेते हैं देख लेते हैं सूं लेते हैं छू लेते हैं

ऐसा तो शांति मिल जाएगी गलत सलाह त्यागा शांति नम भगवान क्या कह रहे ऐसी वृत्तियों का त्याग करने से तत्काल शांति मिल जाएगी पर तत्काल का तात्पर्य वो जो जलन हो रही उसको सह जाओ उस व्यथा को सह जाओ वही जैसे स्वर्ण को जलाया जाए तो चमकने लगता है उसकी अशुद्ध नष्ट हो जाती है

ऐसे ही मन जब जलता है तो वो पवित्र हो जाता है वो बहुत ही दिव्य हो जाता है और सही पूछो तो इसी में भगवान का दर्शन भी हो जाता है इसी मन में इंद्रिया नाम मनशास्त्र गीता में भगवान ने कहा फिर भगवान ही मन मन कर प्रकाशित हो जा अभी मलिन जैसे दर्पण में ब कई परत का मल जमा हो तो साफ हमारा प्रतिबिंब नहीं आएगा तो ऐसे मन को हमें साफ करना है धैर्यवान रहो

सहना सीखो नाम जप करो गंदे आचरण बंद कर दो कूड़ा आना बंद हो जाए तो अंदर का कूड़ा झाड़ू लगता रहेगा नाम जप कर रहे हो सत्संग कर रहे हो पर हम क्या करते हैं कि इधर यह भी चल रहा है उधर वह भी चल रहा है तो फिर निर्णय नहीं निकल पाता कि राधा नाम का क्या फल है

सत्संग सुनने का क्या फल है क्योंकि पूछा लगाया खिड़कियां सब खुली धूल भरी आंधी चली पहले से भी ज्यादा गंदा नजर आ रहा है ये खिड़कियां होश में रखी जाए ये जो पांच ज्ञान इंद्रिया है ना मन के साथ ये घूमती है विषयों में अगर गंदी आचरण बंद हो जाए बच्चा और नाम जपो तो बहुत जल्दी आनंद आ जाएगा आप देखेंगे कि वही मन जो आपको कष्ट दे रहा था

वही सुख देने लगेगा चलते-चलते ऐसे सुंदर विचार आएंगे ऐसा भाव आएगा कि रोना आ जाएगा आनंद आएगा जाएगा हां अपने भाव जब प्रकट होने लगते फिर किसी से पूछने की जरूरत नहीं पड़ती दिव्यता आ जाती है पर अभी बहुत गंदा सिस्टम है

आप देखो ना अंदर से देखो अंदर की बातें केवल आप ही एकाग्रता पूर्वक देख सकते हैं हां कोई तपस्या से क्षण दो क्षण की बात देख ले कि आपके मन में चल रहा है लेकिन उसको रोक सके वो केवल आप ही है ऐसा कोई नहीं मिला होगा कि आपके मन में गंदे विचार चल रहे हैं जाओ आज से विचार बंद ऐसा कोई नहीं है

भगवान भी अर्जुन जी को कह रहे मन मनाभ मद भक्तो माद जीी माम नमस कर मेरी भक्ति करो मेरा नाम जप करो मेरे को प्रणाम करो मेरी पूजा करो तुम्हारा मन पवित्र हो जाएगा तुम मेरे मन वाले बन जाओगे तो हमें समझना है कि हमारे दुख को हमारे मन की मलिन होता को कोई नहीं मिटा सकता मिटाना आपको है

उपदेश दिए जा सकते हैं आपको सहयोग वचन का मिल सकता है लेकिन सुधारना आपको हर समय कोई आपके पास थोड़ी रहेगा आप गंदा करना चाहे तो आप कहीं भी अपने मन को गंदा कर ले क्योंकि व अंदर-अंदर चल रहा है ना सिस्टम ये बात घबराना नहीं बहुत धैर्य पूर्वक रहना है

विजय हमारी होगी क्योंकि हमारे साथ भगवान है अच्छा यह इतना गंदा है कि जैसा आपने कहा भगवान में भी दोष दर्शन कर लेगा ये गुरु में दोष दर्शन करा देगा जहां से काम बनना है संतों में दोष दर्शन करा देगा तो हमें इसकी सलाह नहीं माननी हमारी गलती क्या हो गई हम इसको बहुत प्यार करते हैं

मन को सबसे ज्यादा मन को प्यार करते हैं इससे ज्यादा किसी को नहीं यह जो बोलता है हम वही करने के लिए तैयार हो जाते हैं यह जो बोलता है हम वही सलाह मान लेते हैं यह हमारा पागलपन है नहीं नहीं गंदे सलाहकार के ऊपर विश्वास नहीं किया जाता वह अभी विश्वसनीय नहीं है

वह इतना गंदा आपसे क्रिया करा सकता है कि आपको इतनी गिलान होगी कि मैं शरीर छोड़ दूं इतना गंदा करा सकता है तो ऐसे गंद विचार देने वाले मन की मित्रता हम स्वीकार अभी ना करें अभी वह दोस्त नहीं अभी वह दुश्मन है पर दोस्त का काम दिखा कर के हमें फंसा रहा है बढ़िया बात बन जाएगी

अगर हमारी बात समझ पा रहे हो इसकी सलाह गलत सलाह पर दस् कत भर ना करे दसक का मतलब होता है हां ठीक है अगर यह ना करो तो एक दिन तुम्हारे अधीन हो जाएगा पर यह ना करले की सहले की सामर्थ्य जो वो नाम जप से आएगी सत्संग से आएगी दूसरों की सेवा से भी आती है

माता-पिता की सेवा किसी बूढ़े की सेवा किसी बीमार की सेवा इससे बहुत जल्दी भले अपना कोई सगा संबंधी ना हो हमें सेवा करने को मिल जाए तो हमारा बहुत जल्दी मन पवित्र होता है सेवा से शांति और पवित्रता ये दो चीजें बहुत जल्दी मिलती है

किसी भी पशु पक्षी की भी सेवा कोई कष्ट में जीव है अगर हम उसको सेवा करते तो हृदय शीतल हो जाएगा हृदय का शीतल होना जैसे दाल रोटी सब्जी खीर पुआ हम पने जा रहे हैं और कोई भूखा है कई दिन से भूखे दे तो जो तुम्हें पाने में शीतलता नहीं मिलेगी

वो उसको पवा देव फिर आप देखो आपके अंदर भूखे हो या लेकिन आपके अंदर एक मस्ती आएगी शीतलता आएगी और वह शीतलता पाने से कभी नहीं मिल सकती तो दूसरों की सेवा से नाम जप से और सत्संग सुनने से यह हमें निर्मलता प्राप्त होगी कि जो हमारा दोष दर्शन है व खत्म हो जाएगा समझ पा रहे कोई संस इसमें हा अच्छे बच्चे हो ठीक है

ekantik Vartalap Darshan 410: अमित जी ऑस्ट्रेलिया से राधा राधा वल्लभ श्री हरिवंश गुरुदेव गुरुदेव आपका सत्संग पिछले 10 महीनों से सुन रहे हैं आपने कृपा करके इस अधम का मदिरा मास सेवन छुड़वा दिया जन्म लेने का सही कारण समझाया आपकी कृपा से थोड़ा बहुत ध्यान आपके बताए रास्ते पर लगाने का प्रयास करते हैं पिछले 15 साल से हम दोनों पति-पत्नी ऑस्ट्रेलिया में रह रहे थे अब आपकी कृपा मन में विचार बना है कि अब वहां सब कुछ समेट के यहीं आपके चरणों में पर महाराज जी इनका एक वो है कि लेकिन जब भारत आए तो मन इधर लग ही नहीं रहा महाराज जी अब निर्णय लेने में बहुत वो हो रहा है कि क्या क्या करें ?

Pujya Shri Premanand Ji Maharaj: देखो बात ये कि जब हम भगवान के मार्ग में चलते हैं तो ये बेईमान मन हम ही को धोखा देता है ये उतना तक तो सह सकता है जितने में उसको खुराक मिलती रहे और जहां उसकी खुराक बंद होने का फिर ये चैन नहीं लेने देता

जब तक बैलेंस बना केर चलोगे तब तक तो ये साथ देगा और जिस दिन इसको पता चला कि मारना चाहता है क्या हमें मन मार्या तन बस में कीन्हा हुआ भ्रम सब दूर बाहर से कछ देखत नाही अंदर चमके नूर आपो त्याग जगत में बैठे नहीं किसी से काम उनमें तो कछ अंतर नहीं संत का हो चाह रा पेंट शर्ट में व भगवत स्वरूप हो जाते हैं तो मन जो है

निर्विक नहीं होना चाहता पक्की बात है ऐसे आप घर में हो तो आपको कोई विकार ज्यादा नहीं सताएगा और थोड़ा य नियम ले लो कि दो साल जो है

हम ब्रह्मचर्य से रहेंगे हम ऐसे ऐसे ऐसे फिर इसकी कला देखो अंदर मन की कला य आतंक मचा देगा म टूट पड़ोगे क्यों वह मन जाल गया कि अब यह नियम में बांधकर मुझे मारेगा वो आपके दांव के पहले अपना दांव लगा के आपको पछड़ देगा अब सत्संग के बल से इसको इसके विरोध में भी ज्यादा नहीं चला जा सकता

यह भी बात समझ लो और इसको एकदम दोस्त भी नहीं बनाया जा सकता कक बेईमान है में धोखेबाज है तो जो उचित है उतना उसको दे और जो अनुचित है उतना उसको रोक दो अब जैसे मन आ रहा है कि हम भारत में रहकर भजन करें आपका ऑस्ट्रेलिया में रहकर बढ़िया भजन बन रहा है

हम आपको यही कहेंगे ऑस्ट्रेलिया में रहो आप आज हमारे सामने आए लेकिन वाणी सुन कर के आपने असत आहार विहार ये छोड़ा आप वही रहो आप ऐसे चलो जब कभी आपको मनाए आप आ जाओ यहां दर्शन कर जाओ जा सत्संग सुनो ऑस्ट्रेलिया में भी तो मोबाइल से सब देखा सुना जा सकता है

अगर मन कह रहा है कि भारत में आने से हमारा भजन तो हमें लगता है कि ऑस्ट्रेलिया में हो हम उसको जैसे किसी कहे कि हम वृंदावन आकर भजन करेंगे नहीं नहीं नहीं पहले दूर रहकर भजन करो फि ये क्योंकि यहां आते ही बड़े-बड़े सैनिक हैं

यहां ये राष्ट्रपति भवन समझो अन्यत्र तो सब माया का नक्शा है और ये हमारे प्रभु का निज महल है ब्रज चौरासी कोष वृंदावन तो यहां कामा आदि स्वयं खड़े हुए हैं और जगह तो उनके सैनिक लगे हैं

बाण संधान कर दिया गिरा दिया यहां स्वयं है क्योंकि स्वयं प्रियालाल का भवन है काम क्रोध लोभ मोह मद मत्सर इनकी पहला इनका सुरक्षा ये सब भगवत पार्षद है भगवत विमुख जनों को य परास्त करते हैं

जो अहंकारी होता है उसको रद देते अब यहां अगर आपका ठीक वजन नहीं हो रहा तो रध देंगे ये इसीलिए बहुत सुलझा हुआ सत्संग चाहिए हमारा मन यदि विदेश में रहने से भारतीय पद्धति में रति कर रहा है

बिल्कुल भागने की जरूरत नहीं हमको वही चाहिए वही तुम वृंदावन आ गए तुम्हारा चिंतन भटक गया मुझे नहीं चाहिए तुम वहां रहो वहां से रहकर यहां का चिंतन कर रहे हो असलियत में तो धन्यवाद के पात्र हो शरीर कहीं रहे अगर मन सत् मार्ग का चिंतन कर रहा है बहुत बढ़िया बात है

अगर यहां भारत आ गए आपका मन विचलित हो गया और जो भजन बन रहा था वह भी नहीं बना तो हमारा काम लायक तो नहीं रह गया ना बात तो हमको वही रहना चाहिए आप वही रहिए और ऐसे चले और जब यह राजी हो जाए फिर चले आना भगवान ऐसा विधान बना देंगे

तो भारत के वृंदावन आके रहने लगना उनका इशारा देखो ना अभी वही नाम जप करो बहुत अच्छे हमें अच्छा लगा धन्यवाद आपको कि आपने असत क्रियाएं छोड़ी सत मार्ग को छोड़ा और सत मार्ग को ग्रहण किया हम अपना जीवन सार्थक मानते हैं यदि एक भी आदमी हमारी बात मानकर गंदे आचरण को त्याग करता है तो उसे प्रणाम करते हैं

कि आपने हमारे जीवन को सार्थक कर दिया क्योंकि हमारी साधना हमारा जीवन हमारा बोलना तभी सार्थक है जब किसी का परिवर्तन हो ऐसे हम लगे हुए हैं किसी का परिवर्तन हो तो फायदा क्या हुआ बोलने का हमारे जीवन का मतलब क्या रहा यदि आप लोग सुखी हो स्वस्थ हो सत मार्ग में चल रहे तो जो भी जीवन वो हमारा सार्थक हुआ औरों के काम आ गया यह हमारे जीवन की सार्थकता है और व्यवहार में तो और है

आप तो हमारी आत्मा हो हमारे प्रीतम हो हमारे प्यारे हो आप अच्छे से चलो भारत जब कभी आपको मनावे त आ जाए करो अभी वहां क्योंकि वहां रहने से आपका मन इधर लगता है ना यही खास बात है दो मित्र थे तो एक जगह राम लीला हो रही थी

एक जगह नौटंकी हो रही थी नौटंकी में सांसारिक रोल सांसारिक गाने तो एक थोड़ा भगत था वो राम लीला की मुला हम तो राम लीला में जाएंगे तो एक ने कहा नौटंकी में बहुत सुंदर सुंदर नृत्यांगना आती हंसी मजाक के लिए ऐसे कॉमेडी करने वाले राम लीला तु कई बार देख ही चुके हैं

तो वोह मित्र नौटंकी में गया अब बैठे तो राम लीला में और सोच रहे नृत्यांगना बहुत सुंदर बहुत ऐसा कोई स्वाद नहीं मिला राम लीला का और वो नौटंकी में बैठा देख रहा ने कहा भगवान राम और लक्ष्मण जी की झांकी में जो सुख मिल रहा था वो इसमें नृत्यांगना में तो सुख नहीं तो इसमें श्रेष्ठ कौन हुआ नौटंकी वाला क्यों वो वहां बैठा है

लेकिन उसका चि राम लक्ष्मण में लगा हुआ है और वो वहां सामने उनकी झांकी ले रहा है लेकिन उसका चित्र नृत्यांगना में लगा हुआ है तो बात अगर शरीर छूट जाए तो नौटंकी वाले को परम पद मिलेगा और इसको संसार में आना पड़ेगा बात समझ रहे ना तो हमारा अंदर का चिंतन वृंदावन का हो रहा है भगवान का हो रहा है संतोख हो रहा है तो हमें लगता है

ऑस्ट्रेलिया ठीक है अगर अंदर का चिंतन यहां आने से बिगड़ जाए तो बात ठीक नहीं है अगर मन सहयोग देता तो हम जरूर कहते धन्यवाद आप आ जाइए लेकिन अगर मन सहयोग नहीं दे रहा तो आप वही रहिए जब मन राजी हो जाए तोत फिर चलेना बका जीवन व्यर्थ तो नहीं जा रहा ना नाम जप कर रहे हो अच्छे आचरण कर रहे हो ठीक है बस सबसे यही प्रार्थना है

यह जीवन एक अमूल्य भगवान की दी हुई धरोहर है का दुरुपयोग मत करो यदि आप गंदे आचरण करोगे गंदे नशा करोगे गंदी आदतों से प्रेरित होकर चोरी हिंसा आदि करोगे तो जीवन की अमूल्य जो है वो तुम नहीं जान पाओगे इसमें हम भगवान नारायण बन सकते हैं

हम इसमें देवराज बन सकते हैं हम इसमें भूत प्रेत बन सकते हैं नाली के कीड़ा बन सकते हैं सुवर कुत्ता बन सकते हैं लेकिन हम सावधान होकर के जो बनने आए हैं वो इसी योनि में केवल बन सकते हैं

हम भगवान के लाड़ले बन सकते हम हमें भगवान बहुत प्यार करेंगे हम भगवान के धाम जा सकते हैं इसलिए सबसे प्रार्थना है आचरण को पवित्र रखो ये हमारा भारत देश धर्म प्रधान देश है इसमें चरित्र की पूजा की जाती है जो चरित्रहीन है वह कितना भी विद्वान हो बलवान हो हमारे यहां उसके सम्मान नहीं जैसे रावण बहुत ही बलवान है बुद्धिमान है

लेकिन हमारे यहां उसका पावन चरित्र नहीं माना गया चरित्रहीन था राम चरित्र गाया जाता है क्योंकि चरित्र पावन है हमारा चरित्र ठीक होना चाहिए आज हमारे चरित्र को वासना खा गई चरित्र को वासना खा गई हम धन के लोभ से बुद्धिहीन होते जा रहे हैं

जैसे मिले वैसे हम अपने पद का दुरुपयोग करने में सकुचा आते नहीं हम अपनी जो माता-पिता परिवार की सेवा के लिए धर्म युक्त कमाकर वो हम अधर्म युक्त सेवन करने लगे तो बुद्धि भ्रष्ट होती चली जा रही है

हमारे जो प्रयास वृत्ति भगवत कृपा से वो यही है कि आप लोग समझिए कभी धन से या पापा आचरण से सुख शांति नहीं मिल सकती दुख चिंता शोक भय मृत्यु इससे जीतने के लिए धर्म से चला जाता है

नाम जप किया जाता है और दूसरों को सुख पहुंचाया जाता है हमारे पद के द्वारा हमारे व्यवहार के द्वारा हमारी वाणी के द्वारा हमारे एक एक चेष्टा के द्वारा हमारे समाज की सेवा हो हमारे राष्ट्र की सेवा हो इसी से भगवान मिल जाएंगे पक्की बात समझ लेना जो दूसरों से छीनकर शोषण करके आप धन या सुख चा हो वो आप अपना ही नाश कर रहे हो दूसरे का नहीं इसलिए बहुत सावधान रहिए

अगर एक बात भी मान लो तो आपका आना सार्थक हो जाएगा संतों की बात मान ले यह बातें ऐसी नहीं है कि यह केवल आपको सुनाने के लिए यह जीवन है यह हृदय है यह सत्य है आप स्वीकार कर लोगे तो आनंद मगन हो जाओगे संतों का यदि एक भी वाक्य जीवन में उतार ले तो परमानंद की बाढ़ आ जाए कुसंग सो बहुत ही बचय कुसंग की भरमार है

साधक सावधान रहे बहुत ही सावधान कुसंग व्यक्ति का और वृत्ति का आंतरिक मन के द्वारा दिया हुआ प्रलोभन और बाहर से व्यक्ति का कुसंग दोनों कुसंग य आप हमारी लीला है अपने साधकों को अगर अंदर की वृत्ति का कुसंग सुधर जाए और बाहर के व्यक्ति के कुसंग से बच जाए तो सत अपने अंदर विराजमान है सब ज्ञान अपने अंदर विराजमान है

गुरुजनों के आश्रय से सब ज्ञान प्रकाशित हो जाए पर प्राय हम कुसंग में ही विचरण करते हैं जो मन हमारा भोगों की तरफ संकल्प विकल्प करता है हम उसका साथ देते हैं और जो हमारे पास मित्र साथी है वो हमें सत मार्ग से विमुख करने वाली चेष्टा एं सलाहकार हैं हमारी दुर्दशा होती चली जा रही हम वही देखते हैं

वही सुनते हैं जिससे हमारा समय नष्ट हो और जिससे हमारे जीवन का उद्देश्य नष्ट हो संत महापुरुषों का एक वाक्य भी महावाक्य है अगर उस पर विचार कर लिया जाए तो जीवन का परिवर्तन हो जाए इसीलिए तात स्वर्ग अपवर्ग सुख धरी तुला अंग तुलन ताय सकल मिल जो सुख लव सत्संग लव मतलब क्षण मात्र के सत्संग से जो हमें लाभ मिलेगा

उसके आगे स्वर्ग सुख मृत सुख की तो बात क्या मोक्ष सुख को भी नहीं रखा गया है वृतांत नियमा यमा यथा वरुण देत सत्संगा सर्व संगो पहो हिमाम बड़े बड़े व्रत तपस्या और जितने साधन है वो सत्संग के बराबर नहीं हो सकते क्योंकि सत्संग क्षण मात्र में वो ज्ञान प्रदान कर देता है

जो सब संगो का आंतरिक राग त्याग करके भगवान में स्थित हो जाए इसलिए जो बड़े-बड़े महापुरुष हुए हैं इनके वाक्यों का स्वाध्याय करना श्रवण करना और मनन करना इससे बहुत जल्दी लाभ होता है

जैसे आप बताए नौ किशोर अवस्था के बच्चे गुरुकुल में तो उनमें जो भागवत संस्कार बनेंगे वही हमारे राष्ट्र की सेवा में आएंगे वही हमारे समाज के सुधारक बनेंगे और जिनका किशोर अवस्था का स्वरूप गंदे आ चरणों में उतर गया वो ना स्वयं सुखी रहेंगे और ना हमारे समाज को सुख प्रदान करने की योग्यता उनमें आएगी क्योंकि जिस समय हमारा उत्थान होना चाहिए उसी समय पतन हो गया

अब लाभ नहीं यह हमारी आंतरिक इच्छा है कि हमारी नई पीढ़ी नई अवस्था के बच्चे थोड़ा हमारे धर्म को समझे कैसे उनको सुख मिलेगा इस बात को समझे छोटे छोटे बच्चे ऐसे मार्ग में जा रहे हैं जहां अंधेरा ही अंधेरा है

जहां सुख है ही नहीं केवल पतन ही पतन है दुख ही दुख है ये बहुत अच्छा सरानी विषय है कि आप नवीन बच्चों को महापुरुषों के वचनों से अवगत कराते हैं उनको उनकी जीवन की नीव जैसे ब्रह्मचर्य है स्वाध्याय है हम कैसे अपने मन को सत मार्ग पर चलाए यह अगर प्रारंभ से शिक्षा हो जाए तो महान राष्ट्र भक्त हो सकता है वो महान भगवत भक्त हो सकता है

अब दोनों में से अपने लोग एक भी नहीं अपने लोग विषय भक्त होते चले जा रहे हैं ये हमारी बुद्धि आसुरी भाव को प्राप्त हो रही है राक्षसी भाव|

ekantik Vartalap Darshan 410: प्रणव जी महाराज जी मैं यूएसए में जॉब करता हूं मेरा प्रश्न है कि मैं रोज तैयार होता हूं ऑफिस जाता हूं सारा दिन काम करता हूं घर आ जाता हूं रोज एक मशीन के जैसे काम कर रहा हूं मैं कुछ समझ नहीं पा रहा कि इसका क्या अर्थ है और ना ही मुझे इसमें कोई प्रसन्नता मिल रही है ?

Pujya Shri Premanand Ji Maharaj: बहुत अच्छे बच्चे हो जो आप ऐसा चिंतन करते हो अब वो जो तुम कार्य कर रहे हो उसे भगवान को अर्पित करना सीख जाओ सुबह से उठे और एक एक घंटे का अर्पित करो या दो दो घंटे का अर्पित करो या टोटल अर्पित कर दो सुबह से उठे और जब शाम के घर आए एक बार भगवान को अंदर से स्मरण कीजिए हे प्रभु सुबह से लेकर अभी तक जो भी क्रियाए की

वह आपकी सृष्टि के है और उस क्रियाओं में आपने ही हमें लगाया है वह कर्म हम आपको समर्पित करते हैं और बीच-बीच में जब आपको याद आवे तो राधा राधा नाम स्मरण करते रहो कुछ नया नहीं करना

जो आप कर रहे हो यत करो भगवान का आदेश है वो समर्पित कर दो और बीच-बीच में स्मरण कर लो राधा राधा पाच मिनट में एक बार 10 मिनट में एक बार आप ऐसा करना प्रारंभ करो और कोई भी ऐसा कार्य ना करो जो हमारे धर्म के विरुद्ध है

देखो कहीं भी रहो आप जब कभी किसी से बात करेंगे तो आप बोलेंगे ना मैं भारतीय हूं बोलेंगे ना तो हमारा जो धर्म है भारत का वो संयम है अन्यत्र जो है संयम पर आना इंद्री विजय या पाति व्रत धर्म या बहुत ही कठिन नहीं समझ में आया कि हम भारतीय इसलिए समझ में आ जाएगा

अगर हम अपनी इंद्रियों की विलासिता में व्य विचार में उतर गए यदि हम खानपान गंदा करने लगे तो फिर यह कर्म आपको समर्पित करने का नहीं यह भ्रष्ट करने का मार्ग हो गया अगर आप वहां भी अपनी भारतीय निष्ठा से रहेंगे संयम पूर्वक क्योंकि हर जगह अगर हम भ्रष्ट होना चाहे तो हर जगह किसी देश का कोई आरोप थोड़ी हर जगह

तो अगर हम संयम से रहे बच्चा खानपान पवित्र रखें और प्रभु का स्मरण सब कर्म प्रभु को समर्पित कर दें तो अखंड प्रसन्नता जागृत हो जाएगी प्रसन्नता जागृत हुई जिसे आप कह रहे कि नहीं है हां प्रसादे सर्व दुखा नाम महान रस उप जायते समस्त दुखों का नाश करने वाली प्रसन्नता जागृत हो जाएगी

फिर क्या फिर तो आनंदित होकर के अध्यात्म की यात्रा चल पड़ेगी कार्य बाहर के होंगे कार्य बाहरी करेंगे और अध्यात्म की तरफ हमारी गति हो जाएगी हमारा देश अध्यात्म प्रधान है धर्म प्रधान है तो बहुत सुंदर कि आप ऐसी भोग विलासिता की भूमि में रहते हुए भी आप सावधान है और आप अपने कर्म का परिणाम प्रसन्नता चाहते हैं आनंद चाहते हैं

तो जैसा बताया वैसे खानपान ठीक है आपका चरित्र वो भी सही है हां मतलब उसको संभालना होगा क्योंकि बाहर शायद है कि चरित्र की पवित्रता रख पाना बहुत कठिन होता है क्योंकि दृश्य जो हम देखते हैं जैसे वातावरण में रहते हैं जैसा खानपान होता है

वैसे हमारे मन की गति हो जाती है तो हमारे मन की गति थोड़ा ठीक रहे इसलिए खानपान शुद्ध रखना और मित्रता को संयमित रखना आजकल मित्रता में बहुत दोष हो रहे हैं जिसमें हम गंदे गंदे आ चरणों में उतरते चले जा रहे हैं

फिर तो शांति का मार्ग ही नहीं है जो गंदे आचरण में उतर गया व शांति का सवाल ही नहीं उठता जैसे हम अंधेरे में प्रकाश ढूंढना चाहे तो हो नहीं सकता और जैसे सूर्य के उदय होने पर हम अंधकार ढूंढना चाहे तो हो ही नहीं सकता

ऐसे ही हम गंदे आचरण करके शांति जाए हो ही नहीं सकता और अच्छे आचरण करके अशांति छू नहीं सकती और हम शांति में जब होंगे तब हमारा मन प्रसन्न होगा इसलिए अच्छे आचरण करो और धन्यवाद तुम्हें इस बात का देता हूं कि नई अवस्था में आप आनंद की खोज प्रसन्नता की खोज तो आप कर्म समर्पित और नाम जप चरित्र पावन आहार शुद्ध तो जहां भी रहोगे वो अपने धर्म में स्थित हो गए

अपने धर्म में स्थित रहने वाले की रक्षा स्वयं धर्म करता है धर्मो रक्षति रक्षिता स्वयं धर्म कर लेता है और धर्म भगवान है भगवान ही धर्म है जहां धर्म की हानि होती है तो भगवान फिर देखो लिखा यदा यदा धर्मस्य ग्लानि भवत भारत अभिनम अधर्मस्य तदात्मानं सजाम हम मैं उसके रक्षा के लिए फिर स्वयं तो अगर हम धर्म से चलेंगे

तो भगवान हमारी रक्षा करें कहीं भी रो भगवान के चरण तो इतने महान है कि देखो एक चरण बढ़ाया तो ब्रह्म लोक तक पहुंच गए ये अमेरिका कितनी दूर है भगवान के चरण के आगे कितनी दूर तो आप मतलब भगवान से सुरक्षित हो आपकी रक्षा में भगवान है

यह नहीं देखना कि भगवान केवल भारत में कोई भी अनंत ब्रह्मांड में ऐसी जगह नहीं जहा हमारा भगवान कण कण में है तो भगवान का आश्रय लेकर कर्म समर्पित करते हुए नाम जप करो अच्छे आचरण करो यह सबके लिए है यह उनका प्रश्न ही नहीं है

यह सब नौजवानों का प्रश्न जो जहां हो अपने कर्म को भगवान में समर्पित करते हुए आचरण पवित्र रखते हुए व्यवहार पवित्र रखते हुए तो जीवन आपका आनंदित आजकल हमारे व्यवहार गलत हो गए आचरण अपवित्र हो गए खानपान गलत हो गए इसलिए अशांति डिप्रेशन क्रोध गुस्सा यह सब चढ़ रहा है

हम चाहते हैं कि हम जिससे प्यार करें व हमारे अधीन हो समझना हम चाहते हैं हम जिससे प्यार करें वो हमारे अधीन हो उल्टा प्यार किया जाता है उसके अधीन होने के लिए प्यार किया जाता है उसको सुख देने के लिए लेकिन लेकिन हमारी क्या कि हमारे अधीन हो हम सुख भोगे वही राक्षसी बुद्धि बन जाती है

बाद में पता चलता है कि ऐसा ऐसा ऐसा वो आप देख रहे हो समाचारों में सुनते हो नहीं यह गलत प्यार है प्यार ऐसे नहीं प्यार होता है जिससे प्यार किया जाता है उसको सुख देने की भावना उसके अधीन हुआ जाता है आप जहां इन आजकल जो चला है ना मित्रता का व्यवहार फ्रेंड अंग्रेजी में कहते हैं

नहीं फ्रेंड वाला नहीं चला रिश्ता भाई ये बहुत मतलब अपने लोगों के लिए घातक जहर है समझ नहीं पा रहे नए बच्चे बहुत घातक जहर इस मित्रता से बचना यह जो आजकल चली ना आधुनिकता में और चार दिन हम तुमसे मित्रता की फिर वो अंग्रेजी का शब्द है ब्रेक अप ब्रेकअप ऐसे तो आप फिर यह क्या है यह क्या है आप अपना चरित्र दूषित कर रहे हो आप अपने जीवन को नष्ट कर रहे हो ये मित्रता है इसलिए सावधान रहना ठीक है श्री राधा वल्लभ लाल राधा राधा|

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