Premanand Ji Maharaj : गुरु अमर दास जी का पावन चरित्र व अमृतवचन | Guru Amar Das Ji Ka Pavan Bhakt Charitra

परम पूज्य प्रात स्मरणीय श्री गुरु अमरदास जी(Guru Amar Das Ji) महाराज का जन्म जन्म वैशाख शुक्ल चौस संवत 1536 को बसर के गांव में हुआ जो वर्तमान में भारतीय राज्य पंजाब के अमृतसर जिले में आता है इनके पिता का नाम श्री तेज भान जी और माता का नाम माता बगत कौर था उनका विवाह माता मनसा देवी जी से हुआ और उन के चार संताने थी |

जिनके नाम मोहरी मोहन दानी और भानी था सिख बनने से पहले भाई अमरदास जी एक बहुत ही धार्मिक वैष्णव हिंदू थे जिन्होंने अपना अधिकांश जीवन एक धर्म निष्ट हिंदू के सभी अनुष्ठान तीर्थ यात्राओं और व्रतों को करने में बिताया एक दिन भाई अमरदास साहिब जी(Guru Amar Das Ji) ने दूसरे सिख गुरु साहिब श्री गुरु अंगद देव साहिब जी महाराज की बेटी बीवी अमरो जी द्वारा गाए जा रहे श्री गुरु नानक देव जी के कुछ शब्द सुने |

गुरुबाणी का अद्भुत पाठ सुनकर गुरु अमरदास जी(Guru Amar Das Ji) इन शब्दों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने तुरंत खडू साहिब में श्री गुरु अंगद देव साहिब जी के दर्शन करने का फैसला किया इस समय इनकी आयु 61 वर्ष की थी 1539 में गुरु अंगद देव जी से मिलने पर अमरदास जी गुरु के संदेश से इतने प्रभावित हुए कि वह एक धर्म निष्ठ सिख बन गए जल्द ही वह गुरु और समुदाय की सेवा में शामिल हो गए|

Guru Amar Das Ji Ka Pavan Bhakt Charitra

श्री गुरु अंगद देव साहिब जी के प्रभाव और गुरुओं की शिक्षाओं के तहत भाई अमरदास जी(Guru Amar Das Ji)एक धर्म सिख बन गए उन्होंने गुरु जी को अपने आध्यात्मिक मार्गदर्शक गुरु के रूप में अपनाया भाई अमरदास जी खडू साहिब में रहने लगे वह सुबह जल्दी उठते गुरु जी के स्नान के लिए व्यास नदी से पानी लाते व गुरु जी के वस्त्र धोते और गुरु के लंगर के लिए जंगल से लकड़ी लाते वह सेवा और गुरु के प्रति इतना समर्पित थे|

एवं उनका अभिमान पूरी तरह से खत्म हो चुका था और वह इस प्रतिबद्धता में पूरी तरह खो गए थे कि उन्हें एक बूढ़ा व्यक्ति माना जाता था जिसे जीवन में कोई दिलचस्पी नहीं थी उसे अमरू कहा जाता है हालांकि भाई अमरदास जी(Guru Amar Das Ji) की सिी सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता समर्पित सेवा और सिख हित के प्रति समर्पण के परिणाम स्वरूप श्री गुरु अंगद देव साहिब जी ने मार्च 1552 में 73 वर्ष की आयु में श्री गुरु अमरदास साहिब जी(Guru Amar Das Ji) को तीसरे श्री गुरु नानक साहिब के रूप में नियुक्त किया|

उन्होंने अपना डेरा नवनिर्मित शहर गोइंदवाल साहिब में स्थापित किया जिसे श्री गुरु अंगद देव साहिब जी ने स्थापित किया था गुरु गु अमरदास जी ने सिखों के लिए निम्नलिखित दिनचर्या निर्धारित की वह जो खुद को सच्चे गुरु का सिख कहता है उसे सुबह उठना चाहिए और प्रार्थना करनी चाहिए उसे सुबह उठकर पवित्र तालाब में स्नान करना चाहिए|

उसे गुरु की सलाह के अनुसार ही भगवान का ध्यान करना चाहिए और जैसे ही दिन उगता है उसे पापों और बुराइयों के लिए उस उन कष्टों से छुटकारा पाना चाहिए और हर गतिविधि में भगवान का नाम दोहराना चाहिए जिसे गुरु साहब मानते हैं मैं उसके चरणों की धूल मांगता हूं गुरु का सिख व है जो खुद भगवान को याद करता है और दूसरों को भगवान की याद दिलाता है|

गुरु जी ने गुरु का लंगर की परंपरा को मजबूत किया और गुरु के पास आने वाले के लिए यह अनिवार्य कर दिया कि पहले पंगत फिर संगत पहले लंगर का दर्शन करें फिर गुरु के पास जाएं एक बार बादशाह अकबर गुरु साहिब से मिलने आए और गुरु साहिब से साक्षात्कार करने से पहले उन्हें लंगर में मोटे चावल खाने पड़े वह इस व्यवस्था से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने गुरु का लंगर के लिए कुछ शाही संपत्ति देने की इच्छा व्यक्त की लेकिन गुरु साहिब ने इसे अस्वीकार कर दिया|

गुरु अमरदास साहिब ने अकबर को यमुना और गंगा पार करते समय तीर्थ यात्रियों का जो कर होता था उसे माफ करने के लिए आज्ञा की अकबर ने ऐसा ही किया गुरु अमरदास साहिब(Guru Amar Das Ji) ने सम्राट अकबर के साथ सुहाग पूर्ण व्यवहार किया जब गुरु अमरदास जी(Guru Amar Das Ji) के लिए अपनी छोटी बेटी बीवी भानी की शादी करने का समय आया तो उन्होंने लाहौर से जेठा नामक अपने एक धर्म निष्ठ और मेहनती युवा अनुयाई को चुना जेठा लाहौर से तीर्थ यात्रियों के एक जत्थे के साथ गुरु के दर्शन करने आए थे और गुरु की शिक्षाओं से इतने मंत्रमुग्ध हो गए थे कि उन्होंने गोइंदवाल में बसने का फैसला किया था|

या उन्होंने गेहूं बेचकर जीव को पार्जन किया और अपने खाली समय में नियमित रूप से गुरु अमरदास जी की सेवाओं में शामिल होते गुरु अमरदास साहिब ने अपने पुत्रों में से किसी को भी गुरुपद के लिए उपयुक्त नहीं माना और उनके उत्तराधिकारी के रूप में अपने दामाद जेठा जी को जो कि बाद में गुरु रामदास जी(Guru Amar Das Ji) कहे गए इन्हीं को चुना क्योंकि बीवी भानी जी और गुरु रामदास जी(Guru Amar Das Ji) की सेवा में बड़ी सच्ची भावना थी और सिख सिद्धांतों के बारे में उनकी गहरी समझ इसके योग्य थी|

गुरु अमरदास साहिब का 95 वर्ष की आयु में चौथे नानक का पद दिया गुरु रामदास जी को गुरुपद की जिम्मेदारी देकर फिर भादव सुधी चौदस को संवत 1631 को जिला अमृतसर के पास गोइंदवाल साहिब में श्री गुरु अमरदास जी(Guru Amar Das Ji) अंतरध्यान हो गए उनकी वाणी का प्रभाव आज भी अनंत जीवों को प्रभु से जोड़ रहा है |

मन पयारिया तू सदा सच समाले ए मन प्यारिया तू सदा सच समाले एहु कुटुंब तूज देखदा चल नाही तेरे नाले साथ तेरे चलना ति सुनाली की उ चित लाइए ऐसा कम मूले ना कीचे जितु अंती पछताई सतगुरु का उपदेश सुनी तू होवे तेरे नाले कहे नानक मन पियारे तू सदा सच समाले राम राम सबको कहे कहिए राम न होई गुरु प्रसादी राम मन बसे ता फल पावे कोई परम पूज्य श्री गुरु अमरदास जी(Guru Amar Das Ji) महाराज कह रहे हैं |

हे मन प्यारे तू सदा सत्य का चिंतन संभाल यह जो परिवार कुटुंब जो देख रहा है यह तेरे साथ नहीं जाने वाला हु कुटुंब तू जी देखदा चले नाही तेरे नाले ये तेरे साथ जाने वाला नहीं साथ तेरे चल नाही ति सुनाली के उ चित लाइए ऐसा कम मूले न कीचे जितु अं पछताई इनमें चि मत लगा ऐसा मन तेरा मैला हो जाएगा कि अंत में तुझे पछताना पड़ेगा|

इसलिए हे भाई सतगुरु का उपदेश सुनि तू होवे तेरे नाले कहे नानक मन पियारे तू सदा सच समाले तू सदगुरु का उपदेश सुन वही तेरे साथ जाएगा नानक साहब जी ने कहा ऐ प्यारे मन तू सच को संभाल ले सत्य को संभाल ले अर्थात सत्य के स्मरण में लग राम राम तो सबको ही कहता है राम राम सबको कहे कहिए राम न होई लेकिन कोई राम का नहीं बनता है कैसी सूक्ष्म बात कही राम राम तो सबको ई कहता है|

लेकिन राम का होकर कोई राम राम कहे वो गुरु प्रसादी राम मनि बस ता फल पावे कोई जो गुरु कृपा पात्र है वही प्रभु का हो गया जो प्रभु का होकर प्रभु का भजन करता है वही कृपा प्रसाद प्राप्त करता है अंतर गोविंद जिसला गए प्रीति हर तिशु कदे न बसरे हरि हरि करे सदा गति चीति जिसका अंदर से गोविंद से प्रेम होता है|

वह कभी एक क्षण के लिए भी गोविंद को भूल नहीं सकता उसकी गति सदैव हृदय में हरि हरि हरि हरि ऐसा स्मरण करती रहती अंतर गोविंद जि सुला गए प्रीति हरि ति सु कदे न बसरे हरि हरि करे सदा गति चीति उसका चित्त सदैव हरि हरि चिंतन में लगा रहता है हृदय जिनके कपट बसे बाहर संत कहाई तृष्णा मूल न चू कई अंत गए पछताई जिनके हृदय में कपट है बाहर से भेष संत का है वो तृष्णा के चक्कर में ऐसे फस जाते हैं कि अंत में उनको पछताना पड़ता है|

अनेक तीर्थ जे जतन करे ता अंतर को ह में कदे न जाई जिस नर की दुविधा न जाई धर्म राई तुस देही सजाई बहुत तीरथ करे पर हृदय का छल कपट नहीं गया हृदय की दुविधा नहीं गई तो कहते जिसको संशय है भगवत भजन नहीं करता नाना प्रकार के भोगों में फंसा है उसको धर्मराज खूब दंड देते हैं|

नरक में कम होवे सोई जन पाए गुरुमुख बुझे कोई नानक बिचर ह में मारे ता हरि भेटे सोई कह रहे हैं जो कोई गुरु की शरण में गया गुरु के शब्द को समझा उसने अहंकार को मारा जो अहंकार को मारा वही हरि से भेट पा गया हरि से मिल गया ए मन चंचला चतुराई किने ना पाइया चतुराई ना पाइया किने तू सुनी मन मेरिया ए माइया मोहिनी जिने तू भरम भुलाया माईया ता मोहिनी तिने कीती जिन ठगली पाइला ए मन तू चाहे जितनी चतुराई कर ले चंचलता कर ले तू प्रभु को नहीं पा सकता ऐसे चंचलता चतुराई कर प्रभु को नहीं तू प्राप्त कर सकता हे|

माइया मोहिनी यह माया बहुत मोहिनी है जिने तू भ्रम भुलाया यह भ्रम में फसाकर प्रभु को भुला देती है माईया ता मोहिनी तिने केती जिन ठगली पाइया माया जिनको मोहित कर लेती है उसको ठग लेती है पूरा जीवन व्यर्थ चला जाता है|

भजन नहीं बनता कुर्बान कीता ति से बिटो जिन मोह मीठा ला कहे नानक मन चंचल चतुराई किन न पाइया नानक साहब कहते मन चतुराई छल कपट के द्वारा तू प्रभु को कभी नहीं प्राप्त कर सकता तू अपने मन को अचं चल छल कपट रहित करके गुरु वाणी जी के अनुसार भजन में लगा तो तुझे प्रभु की प्राप्ति हो जाएगी|

भगता की चाल निराली भगता की चाल निराली भक्तो की चाल तो निराली ही होती है चाल निराली भक्ता केरी बिखम मारगी चालना यह भक्तों की बड़ी कठिन मार्ग की यात्रा होती विषम माने बहुत कठिन बोले चाल निराली भागता केरी बिखम मारग चालना एक कठिन मार्ग चलना है|

भक्ति का लभ लोभ अहंकार तज तृष्णा ना बोलना लोभ छोड़ दो संसार के लाभ का महत्व मत रखो अहंकार मत करो तृष्णा का त्याग कर दो और मौन का आश्रय लो ज्यादा वाणी से व्यर्थ मत बोलो भक्ता की चाल निराली चाल निराली भक्ता केरी बिखम मर्ग चालना खनी तिखी बालनी कीति मार्ग जानिया गुर प्रसादी जिनि पुत जिया हरि वासना समाना कहे नानक चाल भगता जुग हो जुग निरा लिया कह रहे कि जैसा तुम करोगे वैसा ही तुम्हें भोगना पड़ेगा|

यदि बचना चाहते हो तो गुरु प्रसादी से बच सकते हो गुरु प्रसाद से जिन्होंने अपने अहंकार का त्याग कर गुरु चरणों का आश्रय लिया तो हरि चरणों में प्रीति हो गई अगर गुरु चरणों का आश्रय छूटा तो वासना समाना वासना उसके हृदय में समा गई इसीलिए भक्तों की चाल बड़ी निराली है बड़ी विषम है जीव मेले बारह निर्मल जीव तू हृदय में स्वक्ष है|

वास्तविक तेरा स्वरूप बड़ा निर्मल है बाहरा निर्मल जीवता मले तिन जन्म जए हारिया जो बाहर से तो बहुत स्वक्ष और बहुत सुंदर दि दिखाई देती है हृदय से मलिन है उन्होंने जीवन को नष्ट कर दिया ए तिस ना बड़ा रोग लगा मरण मन बिसारिया जीव मैले बाहर निर्मल जीव तो आत्म स्वरूप से बड़ा सुंदर स्वस्थ और परमानंद में है पर वो शरीर का राग करके इतना गंदा आचरण कर लिया है कि मलिन हो गया है|

उसकी तृष्णा बढ़ गई उसका रोग जो तृष्णा का इतना बड़ा हुआ भोग भोगने का कि वो मरण विसर गया कि मैं मुझे मरना है ऐसे पाप ना करूं ए तसना बड़ा रोग लगा मरण मनो बिसारिया बेदा माही नाम उत्तम सो सुनही नाही फिर जीव बेता लिया बैताल बना भूत बना घूम रहा है धन आदि भोगों के लोभ में वेद और शास्त्र संत जन कह रहे हैं|

नाम की महिमा स समझ ही नहीं पा ला वेदा मही नाम उत्तम सो सुनही नाही फिर जीव बिता लिया कहे नानक जिन सच तजिया कूड़े लागे तिनी जन्म जुए हारिया कह रहे नानक साहब जिसने सत्य नाम नहीं जपा उसने अपना जीवन कूड़ा कर दिया अपना जीवन व्यर्थ हार गया|

जीव हु निर्मल बाह रहु निर्मल बाहर उता निर्मल जी वहु निर्मल सतगुरु ते करणी कमानी उसका बाहर भी निर्मल शरीर और हृदय भी निर्मल जिसने सदगुरु के अनुसार कर्म किया जो सदगुरु बोले वैसे ही जो चला व अंदर बाहर से निर्मल हो गया कड़ की सोई पहुंचे नाही मनसा सच समानी जीव निर्मल बाहर निर्मल बाहर ता निर्मल जीव निर्मल सतगुरु ते करणी कमानी जन्म रतन जिन खटिया भले से बन जरे कहे नानक निज मन निर्मल सदा रा गुरु नाले सतगुरु ने जो करणी बताई वो जो करणी करे उनके बताए मार्ग पर चले|

वो तो बहुत सत्य वस्तु को एकत्रित कर पाया नहीं तो सब कूड़ा इकट्ठा किया मरने के बाद कुछ तेरे साथ नहीं जाएगा कड़ की सोई पहुंचे नाई मनसा साच समानी ये कूड़ा करकट भोग तृष्णा ये भगवान तक नहीं पहुंचाती मन की सच्चाई से यह बहुत बढ़िया जीवन मिला है बहुत बढ़िया मन मिला है|

इसे नाम में लगा दो जन्म रतन जिन खटिया भले वे से बन जा रे कह नानक जिन मन निर्मल सदा रा गुरु नाले जो गुरु के समीप रहते गुरु की आज्ञा का पालन करते उनका मन निर्मल हो जाता है और जीवन सब बर्बाद हरि रासी मेरी मनु बन जारा हरि रासी मेरी मनु बन जारा सतगुरु तेरा सी जानी हरि हरि नित जप जीव लाहा खट दिहानी हु धनु तिना मिलिया जिन हरि आपे भाणा कह नानक हरि रास मेरी मन होऊ बनजारा ऐ मन बहुत बढ़िया तुझे अवसर मिला है तू व्यापारी है|

बढ़िया व्यापार कमा हरि हरि हरि हरि रास मेरी मन बनजारा नाम रूपी धन इकट्ठा करले मन रूपी व्यापारी ये सतगुरु तुझे बताएंगे कैसे तू नाम बढ़ाएगा नाम बचाएगा नाम को बचाएगा हरि रास मेरी मन बनजारा सतगुरु ते रासी जानी हरि हरि लित जप जी वहु लाहा खाट दिहानी हे जीव तुझे रात दिन कमाई करनी हरि हरि हरि ऐसा जपो कह नानक हरि रास मेरी मन हुआ बन जारा ए मनत अच्छा व्यापारी बन जाओ हरि नाम रूपी धन कमा पंखी रख सु हावड़ा सच चु गए गुर भाई हरि रस पीवे सहज रहे उड़े ना आवे जाई निज घरी बासा पाइया हरि हरि नाम समाई मन मेरे तू गुरु की कार कमाई गुरु के भड़े ज चलता अनु दिन राच हरि नाई|

ऐ संत पुरुष तू पक्षी के समान है प रख सु हावड़ा ये सुंदर वृक्ष है साधु शरीर अंदर बैठा हुआ जीवात्मा पंछी है यदि तू सतत हरि नाम का इसे चुग्गा देगा तो आवागमन मिट जाएगा पंखी रग सुहावल सच चुगे गुरु भाई हरि रस पीवे सहज रहे उड़े ना आवे जाई निज घरि बासा पाइया हरि हरि नाम समाई निज घरी भगवत धाम में ते बास हो जाएगा|

यदि हरि हर हर समय जपेगा मन मेरे तू गुरु की कार कमाई गुरु के भाण जे चले ता अनुदिना राच हरि नाई जो गुरु को बताए हुए मार्ग पर चलते हैं वह सच्ची कमाई एकत्रित कर लेते हैं पंखी रग सुहावना जेता उड़ी दुख घने नित दाते बिल लाई बिन गुरु महल न जा पई ना अमृत फल पाई गुरु मुख ब्रह्म हो हरि अभला साचे सहज सुवाई हे पंखी जीवात्मा यह तुझे जो शरीर रूपी वृक्ष मिला है यदि सेे गुरु की आज्ञा में नहीं लगाओ तो उड़ ले चाहे जितना उड़ ले चाहे जितना कर्म कर ले जेता उड़ दुख घड़े नित दाते बिल लाई तू रोज दुख में जलेगा रोज चिंता शोक में जलेगा बिन गुरु महल न जाप ना मृत फल पाई बिना गुरु का आश्रय लिए बिना गुरु कृपा के त उस अमृत फल को नहीं पा सकता|

गुरु मुख ब्रह्म हरि अवला साचे सहज सुभाई यदि गुरु मुख हो गए तो अब तुम्हारे हृदय में परमानंद की बाढ़ आ जाएगी सहज स्वभाव में शाखा तीनी निवारिया एक शब्द लिलाई अमृत फल हरि एक है आपे देवाई जो गुरु देव का आश्रय लेकर हरि नाम में लवलीन हो गया गुरु सेवा में लवलीन हो गया|

गुरु के बताए मार्ग पर चढ़ा वो सदैव सदैव के लिए सुखी हो गया बिना गुरु दरबार के बिना गुरु आदेश के बिना गुरु बताए कर्म के चाहे तू जितना कर्म कर ले चाहे जितना उड़ ले दुखी पाएगा चिंता ही पाएगा जलेगा तीना पासन बैस ओना घर न निगार ये तीन गुण जो सतोगुण रजोगुण तमोगुण य उजाड़ ही रहते हैं जीव को इनको त्याग दे एक शब्द गुरु ने जो दिया है नाम उसको रट अगर हरि नाम रूपी ये अमृत फल नहीं चखा तो ये तीनों गुण तुझसे फसा लेंगे दुर्गति में पहुंचा देंगे |

तिना पासन बसना घरना गिराव कीट ते नित जालि ओना शब्द ननाऊ हुक्मे कर्म कमाव पायरे कीरति फिरा हुक्म दर्शन देखना जा भेजे ता जाओ गुरु के हुकुम में रहो व जा भेजे वहां जाओ जो बोले वही करो जो दर्शन दिखावे वही देखो हुक्म हरि हरि मन बसे हुक्म साच समाओ गुरु के हुकम पर जो चलता है वही हरि हरि उसके मन में बस जाता है|

जो गुरु के हुकम में चलता है वही सत्य को प्राप्त होता है हुकम न जाड़ पपड़े फूले फिर गवार मन हट कर्म कमाव दे नित नित होई खुवा जो गुरु के हुकुम की अवहेलना करते वो गवार है हट कर के कर्म करते हैं फिर खुद अपने खोदे हुए गड्ढे में गिर जाते हैं अंतर सात न आ वई ना सच लगे प्यार गुरु मुखिया मोह सोहने गुरु के हेत पियार अंतर उसको शांति नहीं आ सकती कभी सत्य का परिचय नहीं जान सकता जो गुरुमुख नहीं जो गुरुमुख है वही सुहावना है वही भगवान का प्यारा होता है|

सच्ची भक्ति सच रते दरी सच्चे सचियार आए से परमाणु है सब कुल का करी उधार जो गुरुमुख होता है उसके हृदय में सच्ची भक्ति जागृत होती सच्चा भक्त ही अपने पूरे परिवार का उद्धार कर देता है आ ऐसे परमाणु है सब कुल का करई उधार सब नजरी कर्म कमाव दे नजरी बाहर न कोई जैसी नदर करे देखे सच्चा तैसा ही का होई नानक नाम बढाया कर्म परा पति होई जो जैसे कर्म करता है उसका फल प्राप्त करता है ये संसार भव नदी इसमें सबको डूबना पड़ेगा|

अगर इससे पार होना है तो नानक नाम बढ़ाया कर्म परा पति होई जो परम पति है परम प्रीतम है उसका नाम जप करो वही भव नदी से पार कर देगा श्री गुरु अमरदास जी(Guru Amar Das Ji) अपनी वाणी में गुरु का आश्रय और उनकी आज्ञा के अनुसार कर्म और नाम जप ये तीन बात बहुत जोर की कई हम इन महापुरुषों की वाणि हों का अपने हृदय में मनन करके आचरण में उतारे और इन गुरुजनों के चरणों में प्रणाम करके आशा करें कि हमें भी ऐसी गुरु भक्ति और ऐसा नाम प्रेम प्राप्त हो जैसा गुरुवाणी जी कह रही जैसा य बड़े-बड़े महापुरुष कह रहे हैं इसलिए निरंतर नाम जप करते हुए सत आचरण करें महापुरुषों के आश्रित रहे परम पूज्य प्रात स्मरणीय श्री गुरु अमरदास जी(Guru Amar Das Ji) की जय जय श्री राधे श्याम|

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