Guru Arjan Dev Ji Ka Bhakt Charitra: परम पूज्य प्रात स्मरणीय श्री गुरु अर्जुन देव जी महाराज का जन्म 15 अप्रैल 1563 को गुरु रामदास जी के घर में इनका जन्म हुआ इनकी माता का नाम बीवी भानी था वह गुरु रामदास जी के तीन पुत्रों में सबसे छोटे पुत्र थे गुरु रामदास जी ने अपने सबसे छोटे बेटे अर्जन में भागवत गुणों की कल्पना की बचपन से ही गुरु ने उन्हें नाम से ओत प्रोत और शांति में डूबा हुआ पाया|
इनके जन्म के बाद से ही ऐसा लगने लगा कि अर्जुन(Arjan Dev Ji) को गुरु पद मिलना तय है एक दिन शिशु अर्जन घुटन चलते हुए अपने नाना गुरु अमरदास जी के दिव्य सिंहासन पर चढ़ गए और आराम से बैठ गए यह देखकर गुरु मुस्कुराए और भविष्यवाणी की दोहिता वाणी का बोहिरागोतो 1589 को माता गंगा जी से हुआ दोनों के एक पुत्र हुए जिनका नाम हरगोविंद साहब था|
जो बाद में सिखों के छठवें गुरु हुए गुरु अर्जुन देव जी(Arjan Dev Ji) ने बड़ी मजबूती से गुरुजनों की आज्ञा का आधार स्थापित किया जैसा कि उनके पूर्व वृति हों गुरु नानक देव जी ने गुरु रामदास जी के माध्यम से आदेश दिया था उन्होंने उस स्थान को पूरा करने का कार्य संभाला जहां उनके पिता ने अमृत का एक पवित्र तालाब बनाया था|
मैं ना तो हिंदू हूं ना ही मुस्लिम हूं इस सच्ची भावना में गुरु अर्जुन देव जी ने लाहौर के एक मुस्लिम संत मिया मीर को हरमंदर वर्तमान स्वर्ण मंदिर की नीव की आधार शरा रखने के लिए आमंत्रित किया इमारत के चारों तरफ के दरवाजे चारों जातियों और हर धर्म को स्वीकार करने का संकेत देते मंडली के अनुरोध के विपरीत हरमंदर साहब का फर्श आसपास के क्षेत्र से निचला रखा गया जैसे पानी नीचे की ओर बहता है वैसे भगवान के आशीर्वाद के चाहने वाले भी नीचे की ओर बहते हैं|
भगवान के घर के साथ-साथ अमृत शहर का अपनी सारी श्रद्धा सुविधाओं और उल्लास के साथ अस्तित्व में आया दिव्य स्वर्ण मंदिर बनकर तैयार हुआ पांचवें गुरु के गुरुत्व के दौरान बाबा नानक के घर ने गुरु अर्जुन देव(Arjan Dev Ji) के प्रकाशमान और मार्गदर्शक प्रकाश में भारी लोकप्रियता हासिल करना प्रारंभ कर दिया ऐसा दुखद समय जब मुगल जनता पर बर्बरता पूर्ण कार्यवाही कर रहे थे|
उस विपरीत समय में गुरु अर्जुन देव जी(Arjan Dev Ji) के शांति और सद्भाव के संदेश ने लोकप्रिय आबादी को प्रभावित किया हिंदू और मुस्लिम दोनों ही आबादी समान तीव्रता से गुरु के घर पर उन्हें नमन करने के लिए उमड़ पड़े सिखों के पांचवें गुरु गुरु अर्जुन देव जी ईश्वरीय भक्ति निस्वार्थ सेवा और सार्वभौमिक प्रेम के अद्भुत खजाने थे|
वे दिव्य ज्ञान और आध्यात्मिक उत्कृष्टता के भंडार थे उन्होंने समाज के कल्याण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया वे जिन सिद्धांतों पर विश्वास करते थे उनके लिए दृढ़ता से खड़े रहे अपने जीवन को झोक दिया और मानव जाति के इतिहास में एक अद्वितीय स्थान की प्राप्ति की रूढ़ीवादी मुसलमानों को निराशा हुई गुरु अर्जुन देव जी(Arjan Dev Ji) की लोकप्रियता से और उनके प्रति उनकी नफ बढ़ गई परम पूज्य हृदयारा श्री गुरु अर्जन देव जी महाराज य ऐसे महापुरुष हैं जिनका आगे चरित्र गान करने की हृदय में बड़ा उल्लास है हदय द्रवित भी है|
नाम के प्रति धर्म के प्रति इष्ट के प्रति इतना बड़ा बलिहार हो जाना यह महा गुरुओं की ही सामर्थ्य है और किसी और की सामर्थ्य नहीं है संसार को माया ठग है लेकिन भजन करने वालों ने माया को ठग लिया पूज्य श्री अर्जुन देव जी(Arjan Dev Ji) की वाणी जाकी राम नाम लव लागी सज्जन सरद सुहेला सहजे सो कहिए बड़ भागी जा की राम नाम लव लागी रहित विकार अलीप माया अहम बुद्धि बख त्यागी दरस प्यास आस एकही की टे हिए प्रिय पागी जाकी राम नाम लव लागी अंचित सोई जागन उठ बैसन अंचित हसत बैरागी कहो नानक जिन जगत ठगा ना सो माया हरि जन ठगी आहा|
श्री परम पूज्य गुरु अर्जुन देव जी की वाणी में कह रहे हैं जिसके हृदय में नाम की लव लग गई भगवन नाम की लव लग गई हे सज्जन हे सहद हे बंधु जन वही बड़ भागी है जिसके हृदय में नाम की लव लग गई समस्त विकारों से रहित हो जाता है|
जिसके हृदय में नाम की निरंतर आवृति चलती है माया का प्रभाव क्या होता है जीव को देहा अभिमान में फसाकर नष्ट कर देती है रहित विकार अलीप माया अलीप माया स्पर्श भी नहीं कर सकती जो नाम जापक है रहित विकार अलीप माया अहम विद बुद्धि विष त्यागी विष अहंकार देहा भिमान रूपी का त्याग हो जाता है|
यह माया तनिक भी विकार नहीं पैदा कर सकती जो नाम जापक भगवान का जन है क्यों उसके अंदर एक प्यास जग जाती है दरस प्यास आस एकही की टेक हिए प्रिय पागी अपने प्रीतम के दर्शन के एक आशा इस समस्त दुरा साओं का नाश कर देती समस्त विषयों की आशाओं का नाश कर देती है अब वो उठते बैठते चलते फ फिरते कभी हंसता है कभी गाता है कभी रोता है हर समय अपने प्रीतम के चिंतन में
गुरु अर्जुन देव जी महाराज कह रहे कहु नानक जिन जगत ठगा सो माया हरि जन ठागम ने उसे ठग लिया उसे ठग लिया कि वो एक भी नाम नहीं चुरा पाए एक भी विकार नहीं पैदा कर पाए और निर्विकार होकर अजित होकर वो निरंजन परम परमेश्वर परमात्मा को प्राप्त हो गया नाम जापक इसलिए निरंतर नाम में जो रत है उनको कोई भी विकार परास्त नहीं कर सकता |
पूज्य श्री गुरु अर्जुन देव(Arjan Dev Ji) के गुरुत्व के दौरान हजारों मूल लोगों ने इनकी आज्ञा हों का पालन करते हुए धर्म का आश्रय लिया महापुरुषों का प्रताप ऐसा होता है आपकी बहुत सरल ढंग से शिक्षा होती है जो सुनता वो इन्हीं का हो जाता किसी भी धर्म में हो सबके हृदय में परमात्मा तत्व विराजमान हो सब उसी आनंद की पिपासा में है|
जब कोई महापुरुष सुष आनंद का वर्षण करता है तो किसी भी धर्मावलंबी हो जाते हैं क्योंकि वहां अमृत की वर्षा होती है शब्द रूपी अमृत की वर्षा होती है तो बहुत से अन्य धर्मावलंबी भी पूज्य श्री अर्जुन देव जी का आश्रय लेकर उनके शबद रूपी अमृत का पान कर रहे थे प्राया अमृतसर में भीड़ लगी रहती लाखों अन्य धर्मावलंबी भी गुरु अर्जुन देव जी(Arjan Dev Ji) की शरण में रहकर उस परम अमृत शब्द का पान करते जो उपदेश करते गुरुवाणी का मुकुल के जो काजी इनको बहुत जलन होती|
अकबर को कई बार शिकायत की पर सहनशीलता स्वीकार करके वो कुछ नहीं किए बार-बार उनको उकसाया अकबर को सिख गुरुओं की लोकप्रियता उनके अनुयायियों की वृद्धि पर तेजी से क्रोध बढ़ रहा था काजी हों का 1605 में अकबर की मृत्यु हो गई जीही मृत्यु हुई तो सबसे बड़े बेटे ने आप समझा कि मेरा साम्राज्य हो जाएगा और मैं इस संस्था को नष्ट कर दूंगा जो बढ़ रही है सबसे अच्छा मौका है|
इस सिख समुदाय का रास करने का उसका नाम जहांगीर था बहुत कट्टर पंथी इस्लाम धर्मावलंबी संपूर्ण हिंदुस्तान उत्तर पश्चिमी भारत में मुगल साम्राज्य का बोल बाला था उसका मन था कि संपूर्ण इस्लाम धर्म ही से युक्त हो जाए संपूर्ण भारत मुगल दरबार से जुड़े हुए शक्तिशाली हिंदू जो गुरु अर्जुन देव(Arjan Dev Ji) के प्रभाव से अपने स्वयं के शक्ति आधार को तेजी से गायब होते देख उनको गिरफ्तार कर करने के लिए उनको प्रभावित करते प्रेरित करते गुरु अर्जुन देव जी को गिरफ्तार करने के लिए मुस्लिम उलेमा में शामिल हो गए|
उन्हें सिख धर्म के दिल में खंजर गोपने की उम्मीद की जहांगीर तो पहले से ही चाहता था मेरा अगर चले पर अकबर जब तक था तो चला नहीं अकबर जब चला गया तो यही शासन सत्ता पर आया उसने चाह की कि गुरु ग्रंथ साहब में इस्लाम की स्तुति लिख दी जाए और य लिखा जाए कि इस्लाम सबसे बड़ा है ऐसा लिखि तो गुरु साहब इसके लिए राजी नहीं हुए और उन्होंने कहा हम कर्मों को उत्तम मानते हैं धर्म को नहीं जो उत्तम कर्म करता है वही धर्मात्मा है|
उत्तम बात यही है जहांगीर दूसरी बात य रखी थी कि कि आपके यहां जो दान आता है पैसा आता है उसको आप कर रूप में दें तो गुरु अर्जुन देव ने इंकार कर दिया कि य संगत के द्वारा दिया गया धन संत सेवा के लिए आता है संगत सेवा के लिए आता है इस पर किसी और का अधिकार नहीं है|
जहांगीर ने अपनी ईर्ष्या से गुरु के शत्रुओं को तुरंत खवा पिला के कुछ पद देकर कुछ भेट देकर अपनी तरफ किया सिख धर्म और गुरु अर्जुन देव जी के खिलाफ कई निराधार आरोप लगाए कहीं अर्जुन देव जी(Arjan Dev Ji) है कहीं अर्जुन देव जी ऐसा लिखा पाया गया सिख ग्रंथ पर हिंदू और मुस्लिम धर्मों को बदनाम करने का आरोप लगाया और दावा किया कि जहांगीर के बेटे और प्रतिद्वंदी विद्रोही खुशरू को गुरु अर्जन देव द्वारा सहायता प्राप्त थी|
अकबर और दरबार के कई अन्य अमीरों द्वारा खुसरो को भारत के एक बहुत उपयुक्त सम्राट के रूप में देखा जाता था हालांकि उत्तराधिकार के युद्ध में जहांगीर ने पूरे हिंदुस्तान पर अपना अधिकार कर लिया खुसरो ने केवल पंजाब को सुरक्षित रखा|
एक था दीवान चंदू शाह जो गुरु अर्जुन देव जी(Arjan Dev Ji) के पुत्र हरगोविंद जी से अपनी पुत्री का विवाह करना चाहता था लेकिन अर्जुन देव जी ने मना कर दिया तो गुरु साहब इस संबंध के लिए सहमत नहीं हुए तो जहांगीर के पास गया और उसने जहांगीर से गुरु अर्जुन देव जी के खिलाफ कई बातें जहर भरी कान भरे तदनुसार मई 1606 के अंत में गुरु अर्जन देव जी को गिरफ्तार करने का हुक्म दिया|
जहांगीर उनको बंदी बना लिया गया लाहौर लाया गया जहां उन्हें गंभीर यातनाएं दी गई यातना का पहला दिन गुरु अर्जुन देव जी को कुछ भी खाने पीने को नहीं दिया गया और हुक्म हो गया कि रात भर इनको सोने ना दिया जाए नींद नहीं भोजन नहीं पानी नहीं बार-बार उनको पीड़ा दे दी जाती|
वो सब शांति पूर्वक रहते और अपने सुमिरन में डूबे रहते ओठों से बार-बार वाहेगुरु वाहेगुरु वाहेगुरु और गुरुवाणी के शब्द गाते यातना का दूसरा दिन गुरु अर्जुन देव जी(Arjan Dev Ji) को एक बड़े ताे के कड़ा में बिठाया गया और उसमें पानी भरा गया और उस कड़ा के नीचे आग जला दी गई|
यहां तक पानी भर दिया गया कड़ा में बड़ी कड़ा में बैठा दिया गया आग जला दी गई बराबर आग प्रज्वलित जल खोलने लगा गुरु अर्जुन देव जी(Arjan Dev Ji) का शरीर जल रहा है पानी की खोलन के साथ लेकिन वह शांत बैठे हैं वाहेगुरु वाहेगुरु वाहेगुरु ना चिल्लाना ना कोई कष्ट भरी पुकार ना उन लोगों पर क्रोध जो उन पर अत्याचार कर रहे थे बस वह बार-बार यही कहते वाह वाहेगुरु वाह वाहेगुरु हे वाहेगुरु सब कुछ आपकी इच्छा के अनुसार हो रहा है|
आपकी इच्छा मेरे लिए सदैव मधुर है उबलते पानी ने गुरु अर्जुन देव जी(Arjan Dev Ji) का जो बड़ा ही सुकोमल शरीर था उबाल दिया भयानक पीड़ा वाला विषय लेकिन आपके मुख में किंचन मात्र कहीं कोई कष्ट की सिकन भी नहीं यातना का तीसरा दिन लोहे की कढ़ाई में बैठा दिया गया नीचे से आग जला दी गई खाली कढ़ाई और ऊपर से लाल पकी हुई तपती बालू रेत ऐसे जो चना डाल देते एक क्षण में भुन जाए ऐसी बालू और नीचे से आग जलाकर कड़ा में बैठा दिया गया|
गुरु अर्जुन देव जी(Arjan Dev Ji) को लाल लाल गरम रेत उनके सिर पर डाली गई नीचे से मांस जल रहा है ऊपर से रेत डाली जा रही पानी में उबालना रेतना य कितना सब यहां तक कि जो आग झोक रहे थे जो रेत डाल रहे थे वो पसीना पसीना और परेशान थे लेकिन गुरुदेव अर्जुन देव जी(Arjan Dev Ji) शांत मुद्रा में क्या असीम सामर्थ्य प्रभु की अर्जुन देव जी शांत रहे कोई दर्द की आह नहीं ना चिल्लाए ना आ भरी ना गुस्सा किया बस सुमिरन करते और दोहराते तेरा किया मीठा लागे हर नाम पदार्थ नानक मांगे बस निरंतर नाम चलता रहे प्रभु आपका किया बड़ा मधुर है|
आपका विधान बड़ा मधुर क्या गुरुजनों की सामर्थ्य क्या कैसी अद्भुत सामर्थ्य की शिकायत भी नहीं है प्रभु से नहीं तेरा किया मीठा लागे हर नाम पदार्थ नानक को मांगे बस नाम निरंतर चलता रहे तेरा हर विधान बड़ा मीठा है वह स्थान जहां गुरु अर्जुन देव जी की गर्म लोहे की प्लेट पर बैठाला गया था|
ऐसे भयानक कष्ट को देखकर उनके एक मित्र फकीर जिनको मिया मीर कहते थे ये बड़े पहुंचे हुए संत थे वह वहां प्रकट हुए और मिया मीर ने जब देखा य भयानक दृश्य तो चिल्लाकर कहा गुरु आप पर ढाए गए इन भयावह यातना को देख कर के अब मुझे सैन नहीं होता मुझे आज्ञा कीजिए अनुमति दीजिए मैं इन अत्याचारों को अपने शक्ति से ध्वंस करता हूं|
मीर मिया के पास अलौकिक दिव्य शक्तियां थी ऐसा प्रचलित भी था व चमत्कारी महात्मा थे गुरु अर्जुन देव जी(Arjan Dev Ji) मुस्कुराए और मिया मीर को आसमान की ओर देखने को कहा उधर देखो तो वहां से देखा मिया मीर ने कि स्वर्ग के बड़े दिव्य जो गुरु अर्जुन देव जी(Arjan Dev Ji) से इन दुष्ट और अहंकार हों को नष्ट करने के लिए दिव्य देवता अनुमति मांग रहे कि आप आदेश कीजिए नहीं तेरा किया मीठा लागे मिया मीर जी ने कहा साहब आप क्यों हुक्म नहीं देते इन देवी शक्तियों को इन दुष्टों को सबक सिखाना ही चाहिए|
तब गुरु अर्जुन देव जी ने कहा यह सब वाहेगुरु की इच्छा के अनुसार हो रहा है क्या अद्भुत क्या अद्भुत बात है यह है जोई जोई प्यारो करे सोई मोहि भावे जो श्रीमत चतुरा जी हरिवंश वाणी जी कह र जोई जोई प्यारो करे सोई मोही भावे संत उपासक गुरुजन महापुरुष वही जो तेरा किया मीठा लगेय बहुत बड़ी बात है अच्छे अच्छे पदार्थ पाना अनुकूलता प्राप्त होना उस समय बोले कि जोई जोई प्यारो करे सोई पर ऐसी भारी यातना और प्यारे से कोई शिकायत फिर य हो तेरा किया मीठा लगे यह बहुत ऊंची बात जो लोग सत्य के लिए खड़े हैं उन्हें मैं उपदेश देना चाहता हूं कि उनको कष्ट सहना पड़ेगा|
कष्ट के सहने से सत्य को ताकत मिलती है जाओ भाई मीर मिया से कहा बस मेरे लिए प्रार्थना करो तो यही करो मैं सत्य को कभी ना छोड़ मेरी सफलता के लिए प्रार्थना करो कि मैं सत्य में विजय को प्राप्त करूं मिया मीर ने पूछा जब तुम्हारे पास महा शक्तियां है तो इन दुष्ट पापियों के हाथ क्यों निर्बल की तरह कष्ट पा रहे हो इनको दंड क्यों नहीं देते हो गुरुदेव ने उत्तर दिया मैं सच्चे नाम के शिक्षकों के लिए एक उदाहरण स्थापित करने के लिए सारी यातना सह रहा हूं|
ताकि वे भयानक दुख में धैर्य ना खोए कभी वह भगवान के खिलाफ ना हो विश्वास की सच्ची परीक्षा उपासना की सच्ची परीक्षा दुख की घड़ियों में होती है उदाहरण के बिना मार्गदर्शन कैसे संभव हो सकता है सामान्य लोगों का मन जहां पीड़ा पड़ी त काप उठता है और छोड़ देता है|
भक्ति भगवत मार्ग अपनी निष्ठा नहीं ऐसे में धैर्य पूर्वक अपने धर्म अपनी निष्ठा अपने नाम अपने सत्य को स्वीकार करना चाहिए यह सुनकर मिया मीर गुरु के धैर्य की सराहना करते हुए उनकी प्रशंसा करते हुए चले गए यातना का चौथा दिन चौथे दिन गुरु को लोहे कि फिर प्लेट पर बैठाया गया नीचे से फिर वही आग और वही लाल शरीर पर बार-बार रेत गर्म करके डाली गई गुरु अर्जुन देव जी शांत बैठे रहे बिना चिल्लाए बिना आ भरे पूरा शरीर जला हुआ फफोला भारी कष्ट कोई दर्द नहीं उनके चेहरे पर बलिहार है ऐसे महापुरुषों को|
वह अपने मन को बस एकमात्र सत्य परमात्मा में वाहेगुरु में केंद्रित किए हुए थे गुरुवाणी के शब्द गाए जा रहे थे और वाहेगुरु की इच्छा को मधुरता से स्वीकार कर रहे थे यातना का पांचवा दिन पांचवे दिन सोचा कि गुरु को ताजी गाय की खाल में क्योंकि धर्म से पूज्य माना गया है तो जब उसकी वहां दम निकलेगी गाय की खाल के अंदर व बड़ी विरुद्ध सोच कि वही दम घुट जाए और वह पधार जाए तो उनसे पूछा गया कि तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या है पांचवे दिन की यात्रा में सोचा गया था|
गाय की नई बध करके गाय की नई खाल में उनको सिल दिया जाए अंदर पैक कर दिया जाए दम घुट करर उनके प्राण निकल जाए ऐसा पूछा तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या है उन्होने कहा कि एक बार रावी नदी में स्नान करने के लिए आदेश दे दिया जाए|
रावी नदी में स्नान करने के लिए कहा जो लाहौर शहर की दीवारों के साथ बहती थी उन आता ताई को सोचकर खुशी हुई कि जिस समय ठंडे पानी में शरीर य गर्म तो भारी फफोला भारी इनको दुख होगा अच्छा है अं इच्छा अच्छी है इसलिए उन्होंने अनुमति दे दी भारी सैनिकों की सुरक्षा के बीच गुरु अर्जुन देव जी को रावी नदी में स्नान करने के लिए जे भी अनुयाई शिष्यों ने देखा भीड़ लग गई|
गुरु अर्जुन देव जी(Arjan Dev Ji) भी समस्त शिष्य परिकर को देखकर शांतना देते हु बड़ी गंभीरता पूर्वक कहा मेरे ईश्वर की यह इच्छा है री इच्छा के प्रति समर्पण करो हिलो मत सभी संकटों के खिलाफ शांत खड़े रहो सबने देखा गुरु अर्जुन देव जी(Arjan Dev Ji) डुबकी लगाने के लिए रावी नदी में बड़ी भीड़ आसपास सब सैनिकों की भी और निज जनों की भी जेही डुबकी लगाने कोए तो एक दिव्य प्रकाश प्रकाश ऐसा प्रकाश अंतर्ध्यान हुआ ना शरीर मिला ना गुरु अर्जुन देव जी|
सब शिष्य गुरु की जय हो आप अद्भुत शहीद है महानतम है आप सबसे महान है अंतर्ध्यान स शरीर अंतर्ध्यान ना शरीर मिला ना गुरु अर्जुन दे अंतर एक तेज प्रकट हुआ और व अंतरध्यान हो गए यद्यपि सामर्थ्य इतनी थी कि तख्त पलट देते उसी समय नष्ट कर देते पर यह दिखाया कि नाम प्रेमी ईश्वर प्रेमी कह रहे ना तेरा किया मीठा लगे वाहेगुरु का किया सब मधुर है|
कैसा गुरु अर्जुन देव जी ने शहादत का बीज बोया जो सिखों की विरासत बन गया इस प्रकार गुरु अर्जुन देव जी(Arjan Dev Ji) ने जेठ सुधी चार संवत 1663 अर्थात 16 मई 1600 छह को शहादत स्वीकार कर ली गुरु अर्जुन देव जी की शहादत ने सिख धर्म के पूरे चरित्र को निष्क्रिय लोगों से सायसी संत सैनिकों में बदल दिया कुछ ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार ये कहा जाता है|
कि गुरु अर्जुन देव जी की छह दिनों की यातना दीवान चंदू शाह के आवास पर हुई थी तदनुसार 1606 से हर साल 16 जून को सिख पांचवें गुरु और पहले सिख शहीद गुरु अर्जुन देव जी की शहादत का जश्न मनाते हैं गुरु अर्जुन देव(Arjan Dev Ji) की गिरफ् दारी यातना और शहादत से पहले सिखों का हथियारों या हिंसा से कोई ले देना लेना देना नहीं था|
क्योंकि सभी सिख गुरुओं ने करुणा प्रेम समर्पण कड़ी मेहनत एक ईश्वर की पूजा और इसी का संदेश दिया दुनिया के सभी लोगों के लिए शांति और सद्भाव के प्रति प्रतिबद्धता गुरु श्री अर्जुन देव जी की वाणी गाव हो राम के गुण गीता नाम जपत परम सुख पए आवागमन मिटे मेरे मित गाव हो राम के गुण गीत हे भाई राम के गुणों का गायन करो जितना नाम जप करोगे परम सुख पा संसार चक्र के आवागमन से तुम मुक्त हो जाओगे मिट जाएगा|
तुम्हारा जन्म मरण गुण गावत होवत परगा सु चरण कमल महि होई निवास जब तुम प्रभु के गुण गाओगे नाम जप करोगे नाम गुण कीर्तन करोगे तो प्रभु के चरणों में ही तुम्हारा निवास होगा गुण गावत होवत परगा असु व चर अरविंद तुम्हारे हृदय में प्रकट हो जाएंगे चरण कमल मही होई निवास सत्संगति म होई उधार नानक भवजल उतर स पारु सत्संग से ही उद्धार होगा साधु संग से उद्धार होगा गुरु अर्जुन देव जी कह रहे भवजल से वही उतर पाता है जिसे सत्संगति प्राप्त होती है|
बड़ भागी ते जन जग माही सदा सदा हरि के गुण गाई वही बड़भागी संसार में जो सदा हरि के गुणों का गायन करता है राम नाम जो कर विचार से धनवंत गनी संसार इस संसार में सबसे बड़ा धनी वही है जो निरंतर नाम जप करता रहता है मन तन मुख बोल हरि मुखी सदा सदा जानते सुखी जो मन से तन से और मुख से सदैव भगवत आचरण भगवत लीला गायन भगवत सेवा करते हैं सदा सदा जान होते सुखी वही संसार में सुखी है|
एक पछा न इत उत की हो सोझी जाने नाम संग जिसका मनु मानियो नानक तिन निरंजन जानी जो एक भगवत प्रेमी महात्मा का संग मिल जाए तो एक शब्द एक नाम को पहचान जाए जो उसको पहचान जाए वही समझदार है जो नाम का संगी है जिसका मन नाम में लगा हुआ है वही निरंजन माया तीत परमेश्वर को प्राप्त होता है|
इसलिए हरि हरि नाम जो जन जपे सो आइया परमाणु जिस जन के बलिहार जिन भजिया प्रभु निर्वाण सतगुरु से विए दुखा का होई नास नानक नाम आराध कारज आवे रास जो निरंतर हरि हरि नाम जप करते हैं वही संसार से पार होते हैं जन का बल क्या है हरि का चिंतन हरि का नाम हरि के गुण इसलिए भज लो निर्वाण पद प्राप्त होगा पूरे सदगुरु का सेवन करो दुख का नाश हो जाएगा|
नाम का आराधन करो यही तुम्हें सुख पहुंचाएगा सोरट सोरस पीजिए कबन फीका होए नानक राम नाम गुण गाई दरग निर्मल होई सोरज यही रटो यही रस पियो खूब नाम जप करो सत्संगत करो इसी से समस्त सुख प्राप्त हो जाएंगे ऐसा स्वाद है ये कभी फीका नहीं होता हृदय सदैव रस में मत रहता है कि दैहिक दैविक भौतिक कोई भी ताप विचलित नहीं कर सकता|
जो नाम का रस पीते हैं फूटा अंडा भरम का मन भया प्रगाश काटी बेड़ी पग हते गुरु कीता बंध खलास जो नाम जप करता है जो सत्संग करता है समस्त बंधनों से मुक्त हो जाता है क्योंकि उसके हृदय में सच्चे ज्ञान का प्रकाश होता है बड़ी अपार श्रद्धा इन महापुरुषों के चरणों में है जिन्होंने अपने शरीर के भयानक कष्टों को भी कुछ नहीं समझा|
धर्म के आगे नाम के आगे वाहेगुरु के आगे कुछ नहीं सम शरीर को भारी यातना दी गई पर अपने धर्म में स्थित रहे हम सबको शिक्षा मिलती है कि इष्ट के प्रति प्रेम धर्म के प्रति समर्पण कैसा होना चाहिए|
यह गुरुजन आचरण करके सिखाते हैं हम परम पूज्य प्रात स्मरण श्री पंचम गुरु अर्जुन देव जी(Arjan Dev Ji) के चरणों में कोटि कोटि वंदना करके यही याचना करते हैं कि इष्ट के नाम में इष्ट के चरणारविंद में और इष्ट के प्रति धर्म में ऐसी किंचन मात्र थोड़ी भी निष्ठा हम सबके अंदर जागृत हो जाए तो हम भव समुद्र से पार हो जाए गुरुजन हमें ऐसी सामर्थ्य दे कि भारी से भारी कष्ट में भी हम अपने धर्म से कभी विचलित ना हो परम पूज्य प्रात स्मरणीय श्री गुरु अर्जुन देव जी(Arjan Dev Ji) की जय जय श्री राधे श्याम|