परम पूज्य प्रात स्मरणीय गुरु रामदास जी(Guru Ram Das Ji) महाराज का जन्म 24 सितंबर 1534 को लाहौर के चूना मंडी बाजार में वर्तमान मंदिर के स्थान पर हुआ था जहा उन्होंने अपने जीवन के पहले सात साल बिताए जन्म के तुरंत बाद उन्हें जेठा नाम दिया गया|
जेठा जी के सरल हृदय माता पिता श्री हरिदास जी और माता अनूप देवी थी जब वे बहुत छो थे तभी उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया और दुखद बात यह है कि उनके रिश्तेदारों ने उनके साथ रहना बंद कर दिया और उन्होने अपनाया नहीं|
एक दिन उनकी दादी उनसे मिलने उनके घर आई और उन्होंने जेठा जी को फटे हुए कपड़े और बहुत कम खाने के साथ देखा फिर वह उन्हें अमृतसर के पास बासर के ले गई यहां अपनी आजीविका चलाने के लिए जेठा जी उबले हुए काले चने बेचते जैसे जैसे वे बड़े रहे थे और किशोरावस्था में आ रहे थे वैसे-वैसे उनकी आध्यात्मिक रुचि बढ़ती जा रही थी|
धार्मिक लोगों की संगति उन्हें अत्यंत प्रिय लगती एक दिन जेठा जी की मुलाकात सिखों के एक दल से हुई जो गुरु अमर दस जी के दर्शन करने के लिए गोइंदवाल जा रहे थे जेठा जी ने उनके साथ शामिल होने और गोइंदवाल की यात्रा करने का फैसला किया जेठा जी ने गुरुदेव के दर्शन कर अपने मन को उनके चरणों में समर्पित करने की ठ गुरु अमरदास जी(Guru Ram Das Ji) ने भी युवा जेठा जी को उनके सुखद व्यवहार और भक्ति की भावना से देखा जब उनके साथी यात्री लाहौर लौट आए तो जेठा जी ने गुरु अमरदास जी का शिष्य ग्रहण करने का उनके चरणों में रहने का निश्चय किया|
भाई जेटा जी ने गोइंदवाल में चल रही विभिन्न निर्माण परियोजनाओं में कड़ी मेहनत की गुरु अमरदास जी भाई जेठा जी द्वारा की गई सेवा से बड़े प्रभा हुए जब बीवी भानी शादी की उम्र में पहुंची तो गुरु जी ने अपनी अर्धांगिनी जी से पूछा कि वह किस तरह के व्यक्तित्व से अपनी बेटी की शादी करना चाहती हैं तो उनकी अर्धांगिनी ने कहा कि भाई झे जी को भाई जेठा जी की ओर देखा और कहा कि उनकी बेटी का पति जेठा जी जैसा होना चाहिए|
तब गुरु जी ने कहा कि जेठा जी जैसे व्यक्ति को खोजने की कोई आवश्यकता नहीं है बल्कि की उन्हें अपनी बेटी बीवी भानी की शादी अपने समर्पित और मेहनती भक्त भाई जेठा जी के साथ कर दी इनका विवाह हुआ इनके तीन पुत्र हुए श्री पृथ्वी चंद जी श्री महादेव जी श्री अर्जुन देव जी यह सपरिवार गोइंदवाल में रहे और उन्होंने बाबली साहिब जो पवित्र कुआ वो बाबली साहिब के निर्माण में स्वक्ष सेवा की एवं हृदय से समर्पित होकर गुरु की और गुरु संगत की सेवा करी परिणाम स्वरूप भाई जेठा जी को गुरु अमरदास जी के उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया और उनका नाम गुरु रामदास जी(Guru Ram Das Ji) रखा गया|
रामदास का अर्थ है भगवान का सेवक उस समय इनकी आयु 40 वर्ष थी गुरु रामदास जी(Guru Ram Das Ji) ने अब उत्सुकता से दूसरे पवित्र तालाब की खुदाई करके रामदासपुर शहर का निर्माण जारी रखा जैसा कि उन्हें गुरु अमरदास जी ने निर्देश दिए थे गुरु को सुनने और तालाब की खुदाई के काम में मदद करने के लिए खूब तीर्थ यात्री वहां पर बड़ी संख्या में आने लगे पवित्र तालाब को अमृतसर कहा जाएगा जिसका अर्थ है अमृत का तालाब|
आज रामदासपुर शहर जो अब सिख धर्म का सबसे पवित्र केंद्र है अमृतसर के नाम से जाने जाने लगा गुरु रामदास जी(Guru Ram Das Ji) ने अपने सिखों से आग्रह किया कि कोई भी अपने जीवन को केवल ध्यान से नहीं बल्कि दूसरों को सुखी करके और दुख में सक्रिय रूप से भाग लेकर भी आनंदित कर सकता है इस प्रकार व्यक्ति स्वयं को जो भागवत मार्ग में मुख्य रोग जो अहंकार है उस रोग से मुक्त हो सकता है और अपने आध्यात्मिक अड़चनों को समाप्त कर सकता है|
एक बार जब गुरु नानक देव जी के वृद्ध पुत्र बाबा श्रीचंद्र जी गुरु रामदास जी से मिलने आए तो उन्होंने उनसे पूछा य लंबी दाढ़ी क्यों रखी हुई है तो गुरु रामदास जी(Guru Ram Das Ji) ने हाथ जोड़ा और बड़ी विनम्रता से उत्तर दिया कि आपके जैसे पवित्र महापुरुषों के पैरों की धूल पहुंचने के लिए और फिर वह विनम्रता के इस सर्वोच्च कार्य को करने के लिए आगे बढ़े यह देखकर श्री चंद्र जी ने उनका हाथ पकड़ लिया और गुरु रामदास जी को गले लगाते हुए कहा आप पर गुरुओं की बड़ी कृपा है|
अब मेरे पास और क्या बचा है जो मैं आपकी धर्म परायणता और हृदय की भलाई के लिए आपको समर्पित कर सकूं इसके पश्चात अंततः अपने सबसे छोटे पुत्र श्री अर्जुन देव जी को सिद्धांत में पक्का जान समझकर श्री गुरु रामदास जी(Guru Ram Das Ji) ने अपना उत्तराधिकारी चुना सात वर्षों तक गुरु गादी में विराजमान होने के पश्चात 1581 में गुरु रामदास जी अंतर्ध्यान हो गए उनके जीवन का सार उनकी दिव्य वाणी में स्पष्ट झलकता है|
पूज्य श्री पूज्य श्री गुरु रामदास जी(Guru Ram Das Ji) की अमृतम शब्द आव हो संत जन हो गुण गाव गोविंद केरे राम गुरु मुख मिली रहिए घर बाज शब्द घनेरे राम आओ भाई जन संत जनों की संगत करो और गोविंद के गुण गाओ देखो गुरुमुख हो जाओगे तो तुम्हारे हृदय में ही महान सुख प्रदान करने वाले घनेरे दिव्य शब्द विराजमान है जो जागृत हो जाएंगे शब्द घनेरे हरि प्रभु तेरे तू करता सत थाई अनिस जपी सदा सलाही साच शबद लिव लाई तेरे हृदय में प्रभु विराजमान है|
करता सत थाई वह तुम्हारे साथ ही विराजमान है तू केवल जो गुरु प्रदत शब्द है उसका जाप कर तो देख घनेरा आनंद हृदय में प्रकाशित हो जाएगा अनिस जपी सदा सलाही रात दिन तू उनके गुणों का गान कर उनका नाम जप कर सात शब्द लिव लाई जो गुरुदेव ने शब्द दिया है उसी में प्यार कर उसी में लिव लाई तन्मय हो जा अनुदिना सहि जय रहे रंगी राता राम नाम रिद पूजा नानक गुरुमुख एक पछाड़ और न जाने दूजा अनुदिना जो रात दिन अनुराग रंग में रंगा हुआ है|
जो गुरुदेव ने नाम दिया उसी का निरंतर जप करता है गुरुमुख वही हमारी बात को जान पाएगा कि हृदय में परमानंद स्वरूप प्रभु विराजमान वो एक क्षण के लिए तेरा नाथ संग नहीं छोड़ते वह नाथ हर समय आपके हृदय में नानक गुरुमुख एक पछाड़ और न जाने दूजा एक गुरुमुख ही पहचान सकता है कि हृदय में प्रभु विराजमान है काम करोध नगर बहु भरिया मिल साधु खंडल खंडा है पूर्व लिखत लिखे गुरु पाइया मन हरल मंडल मंडा है|
काम क्रोध सब अंदर भरे हुए हैं अगर साधु संग हो जाए तो इनका खंड खंड हो जाए अन्यथा नहीं पूर्व में गुरु कृपा से संतो का संग कोई पूण्य प्रकट हुए पूर्व के कि संतों का संग मिला गुरु कृपा मिली तो उस गुरु कृपा में जो सामर्थ्य है उससे इन काम क्रोध का निवारण हो जाए क्या करो साधु अंजुली पुन बड्डा है करि दंडवत पुन बड्डा है साधु महात्मा साक्षात भगवान का स्वरूप है|
अंजुली बांधकर उनको प्रणाम करो उनको दंडवत प्रणाम करो तभी तुम उस बड़े को पहचान पाओगे जो तुम्हारे हृदय में विराजमान है कितनी सुंदर अद्भुत वाणी सा कत हरि रस स्वाद न जानिया तिन अंतर हो में कड़ा है साक कहते हैं जो गुरुमुख नहीं है जो गुरुमुख नहीं व हरिरस का स्वाद नहीं जान सकता उसका हृदय कूड़ा से भरा हुआ है जीव जीव चले चुभे दुख पावे जम सहस सिर डंडा है वो जिधर भी जिधर भी जाएगा दुख ही दुख उसे मिलेगा जो गुरु से विमुख है|
यमराज उसके सिर पर डंडा पीट बोले जीव जीव चल चुभे दुख पाव जम काल सहस सिर डंडा है यमराज का काल दंड उसके सिर पर बजेगा हरि जन हरि हरि नाम समाने दुख जन्म मरण भव खंडा हे अविनाशी पुरखो पाइया परमेश्वर बहु शोभा खंड ब्रह्मांडा है जो हरिजन है भगवान के नित्य दास है वह निरंतर हरि हरि ऐसा नाम सुमिरन करते रहते हैं|
जिससे दुख प्रदान करने वाला जन्म मरण का ये भव खंड नष्ट हो जाता है अविनाशी पुरख पाई परमेश्वर बहु शोभा खंड ब्रह्मांडा है अनंत ब्रह्मांड का स्वामी जो परमेश्वर परम पुरुष है वह उसको प्राप्त कर लेता है जो हर समय हरि हरि हरि ऐसा स्मरण करता है हम गरीब मस्कीन प्रभु तेरे हरि राखु राखु बड बड्डा है हे नाथ हम बड़े दीन है हे प्रभु हम बड़े गरीब हैं आपकी शरण में आप राख लो आप राख लो आप सबसे बड़े हो जन नानक नाम आधार टेक है|
हरि नामे ही सुख मंडा है जो नाम का निरंतर जप करते हैं समस्त सुखों को प्राप्त हो जाते हैं नानक साहब कहते हैं नाम ही आधार है जो नाम जापक संत है उनके चरणों में प्रणाम करें माथा रखे उनकी आज्ञा का पालन करें निरंतर नाम जप करे तो काल भी उसे दुख नहीं दे सकता निर्गुण कथा कथा है हरि की भजु मिली साधु संगति जन की तरु भवजल अकथ कथा सुनि हरि की निर्गुण सतोगुण रजोगुण तमोगुण से परे प्रभु की कथा है त्रिगुणा तीत हरि जू की कथा है भज मिली साधु संगति जन की संत जनों से मिलकर खूब भजन करो|
तरु भौ जल अकथ कथा सुनि हर की इस संसार रूपी भव समुद्र से पार होने के लिए श्री हरि की कथा सुनो गोविंद सत संगति मिलाई हरि रस रसना राम गुण गाई जो जन ध्यावे हरि हरि नामा तिन दासन दास करो हम रामा जन की सेवा उत्तम कामा जो सत्संगति करते हैं गोविंद के गुण गाते हैं|
हरि से अपनापन करके अपनी जिव्या से हरि हरि ऐसा गुण गाते हैं वह जन धन्य हो जाते हैं जिनको सत्संगत मिली गोविंद की कृपा से सत्संगत की कृपा से हरि हरि जपे उनको गोविंद से अपनापन हुआ जो जन ध्यावे हरि हरि नामा तिन दासन दास करो हम रामा हे प्रभु ऐसे भक्तों के दसों का दास हमें बना दीजिए गुरु रामदास जी कहते हैं मुझे ऐसे भक्तों का दास बना दीजिए जो जन ध्यावे हरि हरि नामा तिन दासन दास करो हम रामा जन की सेवा उत्तम कामा भगवत भक्तों की सेवा सबसे बड़ा कार्य है|
जो हरि की हरि कथा सुनावे जो जन हमरे मन चित भावे जन पग रेणु बड़ भागी पावे संत जना शिव प्रीति बनि आवे जो हमें की चर्चा सुनावे वही जन हमारे चित्त को भाता है और मैं उसके चरणों की रज लेकर बड़भागी बनता हूं अपने माथे पर धारण करता हूं और ऐसे संत जनों से मेरी प्रीति है जो मुझे हरि की कथा सुनाते हैं जिनको लिखत लिखिया धुरी पाई ते जन नानक नाम समाई जिन्होंने नाम जप किया सत्संगत किया हरि कथा सुनी उसके सब के कु भाग्य मिट गए और वह नाम के बल से परम पद को प्राप्त हुए|
ते साधु हरि मेलो स्वामी जिन जपिया गति ई हमारी तिनका दरस देखि मन बिगस खिन खिन तिन को ह बलिहारी हरि हृदय जाप मुरारी हरि हृदय जाप नाम मुरारी हे प्रभु ते साधु हर मेलो स्वामी हे स्वामी हमको ऐसे संतों से मिला दो जिन जपिया गति हुई हमारी जिनके संग से जिनकी सेवा से आपका नाम जप करें और हमारी गति आप हो तिनका दरश देख मन बिगस ऐसे संतों के दर्शन से हमारा मन खिल जाता है खिन खिन तिनको हो बलिहारी क्षण क्ण ऐसे संतो में बलिहारी जा रहा हूं हरि हृदय जाप नाम मुरारी जिनके हृदय में हर मुरारी के नाम का जप है|
कृपा कृपा करि जगतपति स्वामी हम दास नि दास की जय पनिहारी कैसी दनता है कृपा करो कृपा करो हे जगतपति हे स्वामी कृपा करो अपने दासो के चरण दासी बना दो चरण सेवक बना दो पनिहारी आहा उनकी चरण सेवा का मुझे सौभाग्य मिले तिन मति उत्तम तिन पति उत्तम जिन हृदय बसिया बनवारी उनकी बुद्धि बड़ी उत्तम है वह महान स्वामी है|
जिनके हृदय में बनवारी बसे है आहा तिनकी सेवा लाई हरि स्वामी तिन सिमरत गति हुई हमारी हे मेरे स्वामी ऐसे संतों की मुझे सेवा दो ऐसे संतों की संगति में ऐसे संतों के सुमिरन से हमारी उत्तम गति होगी जिन ऐसा सतगुरु साधु न पाई जाते हरि दरग काढे मारी जिनको ऐसा संत नहीं मिला ऐसा सदगुरु नहीं मिला वो भगवान के सन्मुख कभी नहीं हो सकते ते नर निंदक शोभन पाव तिन नक काटे सिर्जन हारी वो क्या करते हैं|
फिर संतों की निंदा करते हैं वो कभी सुख शोभा को प्राप्त नहीं होते हो नक कटे है सिरजनहार भगवान के जनों की जो निंदा करते हो नक कटे हैं हरि आप बुलावे आपे बोले हरि आप निरंजन निरंकार निराहार ऐसे संतो में हरि आप बैठकर बोलते हैं हरि आप बुलावे हरि बुलाते हैं हरि ही बोलते हैं आप माया रहित निरंकार निराहार आप माया रहित है त्रिगुण गुणों से गुनातीत है हे हरि हरि जिस तू मेल सो तु मिल जन नानक कीवा जंत विचारी जिसे हरि जस सुनाने वाले संत मिल गए पक्का उसे हरि मिल जाते हैं|
हरि जस त मेल सो तुध मिल स जन नानक कि आय जंतु विचारी यही विचार पक्का है कि जिसे भगवत प्रेमी महात्मा मिल गए निश्चित उसे भगवत प्राप्ति होती है हरि प्रभु मेरे बाबुला हरि देवो दानुम दाजो हरि कपड़ो हरि शोभा देवो जित सब मेरो काजो हरि मेरा प्यारा बाबुल है मेरा स्वामी है वह मुझे बहुत प्रकार से सुख प्रदान करता है कपड़ा लता भोजन दे सब कुछ उसी के द्वारा हो रहा है हरि हरि भगत काज सुहेला गुरु सतगुरु दान दिवाया हरि जू हरि जू कैसी कृपा करी कैसी भक्ति दी कैसे सदगुरु प्रदान करें खंडी व भंड हरि शोभा हुई इ दन न रले रला या इस भरत खंड में जो हमको भक्ति प्राप्त हुई|
जो संतों का समागम प्राप्त हुआ यह हरि ने दान किया है हरि ने कृपा करके दिया है री मनमुक दाज जी राखी दिखा ले कु अहंकार कछु पा जो जो मनम है वो अहंकारी है उनका अहंकार उनको नष्ट कर देता है हरि प्रभु मेरे बाबुला हरि देव दानुम दाजो हे मेरे बाबुल हे मेरे प्रीतम हरि तुमने मुझे सब दान किया क्या सतगुरु दिया शब्द दिया हमको संत संगति दी हरि राम राम मेरे बाबला फिर मिली धन बेल बंधी हे|
मेरे बाबुल हे मेरे प्रीतम मेरा सारा काज आपने बना दिया हरि जुग जुगो जुग जुग गो सद पीढ़ी गुरु चल दी हे हरि हे करुणामय प्रभु तेरा नाम जो मिला हे बाबुल हे मेरे प्रीतम जुग जुग सदा जियो सदा ही यह मेरे गुरुदेव का यश छाया रहे ये गुरु परंपरा सदा ही चलती रहे जुग जुग जिए बाबुल मेरे प्रीतम मेरे प्रभु मेरे मिलने की बेला निश्चित कर दी जुग जुग पीढ़ी चले सदगुरु की जिन गुरुमुख नाम धया इला हरि पुरख नो क वही बिनसे जावे नित देवे चढ़े सवाईयां जिए जिसने हमें नाम प्रदान किया हरि परखू न कही बिन सय जावे नित देवे चढ़े सवाया सभाव स्वाव रंग चढ़े अर्थात रोज दुगना नाम में प्रीति हो नानक संत संत हरि एक को जप हरि हरि नाम सुह हरि राम राम मेरे बाबुला पर मिल धन बेल बंद धी|
नानक साहब कहते संत संत हरि है साक्षात हरि है जपो हरि हरि संदेह मत करो अपना प्रीतम अपना बाबुल राम राम मेरे बाबुला पिर मिल धन बेल बदंबा मेरे प्रीतम प्रभु से मिलकर पवित्र बेला आती है मिलन की हरि ने युग युग से सदा ही अपने जनों को सुख प्रदान किया इसलिए हरि का ध्यान तभी हो सकता है जब हरि दसों का ध्यान हो भगवान के भक्तों की सेवा हो हरिदासन से प्रीति है हरिदासन को मिंत हरिदासन के बस ही जीव जंती के बस जंतु आहा जो हरि दसों से प्रीति करते हैं हरिदास को मित्र बनाते हैं|
जो हरिदास के अधीन रहते हैं तो चराचर जगत उनके अधीन हो जाता है ईश्वर की बात क्या हरि के दास हरि ध्या करि प्रीतम सेव नेह कृपा करके सुनो प्रभु सब जगम बरसे मेहु जो हरि दसों का ध्यान करते हैं हरि दसों के बताए हुए नाम और ध्यान में चित्त को लगाते हैं प्रीतम उनको सहज में मिल जाते हैं कृपा करके सुनो प्रभु सब जग में विराजमान घट घट में अमृत वर्षा कर रहे हैं पर जो गुरु के सन्मुख हुआ जो हरि दसों से प्रीत करता है उसी के हृदय में अनुभव होता है जो हरिदासन की उत है|
सो हरि की बढ़ आई हरे अपनी बढ़िया भाव दी जन का जयकार कराई जो हरि दसों से प्रीत करता है हरि दसों की जय जयकार करता है इससे हरि को बहुत सुख मिलता है हरि भी चाहते हैं कि हमारी बड़ाई से बढ़कर हमारे दासो की बड़ाई हो हरि अपनी बढ आई भाव दी जन की जयकार कराई हरि का सदा स्वभाव है व गुप्त रूप से कार्य वो करते हैं|
जय जयकार अपने भक्ति की करवाते हैं सो हरि जन नाम यदा हरि हरि जन एक समान जन नानक करि का दास है हरि पैज राख भगवान श्री गुरु सो हरि जन नाम ध्या द हरि हरि जन इ सामान एक समान है हरि और हरि के जन भेद मत मानो जो हरिजन संत जन उपदेश करते हैं उसी से हरि के चरणों में प्रीत होती है जनु नानक हरि का दास है ये जन रामदास जी के ये जन नानक साहब की कृपा से यही समझ पाया कि हरि के दासो का दास होना महान सौभाग्य का विषय है|
जनना नक हरि का दास है हरि पैज राखो भगवान हे भगवान हे करुणा निधान आपकी सदा स्तुति होती रहती है और वह भक्त जन आपकी महिमा का गान करते हैं और आप गुप्त रूप से उन भक्तों की जय जयकार कराते हैं इसलिए आप लाज रखो सदैव मुझे भक्त संग मिलता रहे क्या मांगा गुरु रामदास जी(Guru Ram Das Ji) ने सदैव मुझे भगवत प्रेमी महात्माओं का संग मिलता रहे जिनके संग से सेवा से हरि नाम में प्रीति होती है घट घट में व्यापी जो अमृत बरसा रहा है|
परमात्मा परमेश्वर परम पुरुष उसका साक्षात्कार होता है इन गुरु वाणी की कृपा से गुरुजनों की चरण रज कृपा से हम संत सेवा गुरु आज्ञा और नाम जप में अपने जीवन को लगाएं ऐसी इन महापुरुषों की कृपा हो कि हमारा अहंकार नष्ट हो जाए और निरंतर संत सेवा गुरु आज्ञा और भजन यही वाणी जी में सर्व सार निकल रहा है संत सेवा गुरु आज्ञा और निरंतर नाम जप इसी से सब कुछ प्राप्त हो जाता है प्रात स्मरणीय परम पूज्य गुरु श्री रामदास जी(Guru Ram Das Ji) महाराज की जय जय श्री राधे श्याम|