कोई बार-बार हमारा बुरा करें तो क्या हमें सहन करना चाहिए या पलट के जवाब देना चाहिए(Koi Bar Bar Aapka Bura Kare To Sehen Kare Ya Jawab De) ekantik Vartalap & Darshan: एकांतिक वार्तालाप & दर्शन By Shri Premanand Ji Maharaj

Koi Bar Bar Aapka Bura Kare To Sehen Kare Ya Jawab De: मोना जी पटियाला से जय श्री राधे महाराज जी आपके चरणों में कोटि कोटि प्रणाम गुरुदेव मैं आपसे पूछना चाहती हूं कि बहुत बार ऐसा होता है कि हमें कोई बार-बार चोट पहुंचा रहा है आप यही कहते हैं कि वह हमें चोट नहीं पहुंचा रहा यह हमारे ही कर्म है हमें चोट जो पचा रहे हैं तो हमें यही सोचकर चुप रहना चाहिए कि यह हमारे कर्म है या अगर बार-बार ज्यादा गलत करे तो?

Pujya Shri Premanand Ji Maharaj: उसकी एक सीमा है हमें गाली दे रहा है हम सह जाएंगे चोट पहुंचाने का तात्पर्य का भाव लेकिन कोई हमारे धर्म पर फिर हम नहीं सहेंगे हमारा कानून है भारतीय कानून संविधान है और भगवतकर हम समर्थ है तो हम पहले धर्म की रक्षा उस समय तत्काल करेंगे अब ऐसा नहीं कि कोई हमारे ऊपर गंदी नजर कर रहा है

और व हम पर आक्रमण करना चाहता है और हम हाथ जोड़े खड़े हैं ऐसा नहीं उस समय यदि सामर्थ्य तो पहले बचाओ पक्ष में हम अपने को अगर हमें अवसर मिलता है तो हम फिर कानून को अब उस समय अवसर नहीं पहले हमारा बचाव पक्ष होगा

जैसे बड़े आनंद से कंस अपनी बहन देवकी जी को रथ में बैठा लकर स्वयं हाक रहा है विदा करने जा रहे है ना भाई है आकाशवाणी होती है कंश जिस देवकी को तू इतने प्यार से ले जा रहा इसी के आठवें गर्भ से प्रकट हुआ पुत्र तेरा नाश करेगा

तेरी मृत्यु का कारण बनेगा और राक्षसी स्वभाव एकदम उसने कहा देवकी को ही नहीं रखूंगा तो पुत्र कैसे पैदा हो बाल पकड़ा घसीटा रस से नीचे तलवार वसुदेव जी तुरंत क्योंकि जान रहे हैं ये महान बलशाली है

इस समय बल काम नहीं करेगा इस समय बुद्धि से काम लेना तो कहीं कहीं उन्होंने कहा आपको देवकी से तो कोई भय नहीं हा उसने देवकी से तो वचन मैं देता हूं वसुदेव सदैव सत्य बोलते वचन मैं देता हूं

इसके जो पुत्र होंगे व मैं आपके सामने लाऊंगा चाहे प्रथम हो चाहे आठवा आपकी जो इच्छा उसको करना आप देवकी को छोड़ दीजिए बछ ले कहीं बुद्धि बल से और कहीं शारीरिक बल से और कहीं कानून बल से अवसर देखना है

अब कोई अपने ही निज जनों में हमारे धर्म का नाश कर रहा है हमें पता चल रहा है कि हमारे धर्म इस समय संकट में है अब नहीं अब हम नहीं बेंगे हम उसको कानून में शिकायत करेंगे

और अपनी सुरक्षा करेंगे हमारा कहने का तात्पर्य छोटी मोटी जो सहनशीलता जैसे पति पत्नी में थोड़ा मनमठ सहन करो थोड़ी उसकी गलती सहन कर जा थोड़ी तुम उसकी गलती सन य ऐसे प्रेम संबंधों को थोड़ी-थोड़ी गलतियों में नहीं अब पता चला कि यह हमारे को नाश भी कर सकता है या कर सकती है अब वहां सावधान हो जाओ अब प्रियता से बात नहीं होगी

अब बात वो मलिन होता में पहुंच चुकी है अब उसके लिए बहुत सावधानी की जरूरत है फिर वो संबंध निर्वाह नहीं अब अपने प्राण और जीवन को बचाकर जीने की भगवत प्राप्ति की भगवत मार्ग की बात रहे अब वहां अगर संबंध विच्छेद करना पड़े वहां हमें कानून का सहारा लेना पड़े वहां हमें समाज का सहारा लेना पड़े लेना चाहिए वहां क्षमा काम नहीं कर पाएगा

Koi Bar Bar Aapka Bura Kare To Sehen Kare Ya Jawab De

क्योंकि आप गृहस्थ में है वहां धर्म रक्षा के लिए जीवन रक्षा के लिए प्राण रहेंगे तब तो भजन होगा ना प्राण रहेंगे तभी तो तो इस परिस्थिति में जैसे पीछे हमने चर्चा में कहा कि हम बार-बार कहते हैं माता-पिता की सेवा करो माता-पिता को भगवान मानो क्योंकि ऐसा है

अब जैसे किसी के हृदय में प्रश्न हो जाए कि अगर पिता ही शोषण कर रहा है अब आपका य वचन कैसे लग होहुआ कि भगवान उसकी सेवा करो तो ध्यान से सुनना उसी में है यदि वह धर्म विरुद्ध आचरण में उतर चुका है

तो अब वहां क्षमा नहीं काम करेगा वहां पिता भाव नहीं करेगा वो राक्षसी पशु आचरण वाले को जैसे पशु अगर बिगड़ जाए तो उसे फिर बंधन में डाला जाता है कानून हमारा बंधन उसे प्रदान करेगा हम न्याय विभाग को अपने हाथ में ना ले और हम अपने कानून को समर्पित करें वो बात करें हम जो कह रहे हैं उसको समझना है हमें कहां क्षमा करना है और कहां विरोध करना है

यह बात भी है अब जैसे अपने लोग हैं सर्व तो भाविन क्षमा का ही आश्रय ले आप चाहो तो प्राण ले लो अगर मेरे प्रभु की इच्छा है कि तो व हो जाए अगर नहीं है तो तुम्हारी ताकत नहीं कि तुम एक कदम भी आगे बढ़ सको अब आप लोग गृहस्थ में बहुत सी ऐसी विरोध वृत्तियां है जिनको आपको अपने को बचाना है

जहां तक हम सहन कर सकते हैं धर्म रक्षा के लिए वहां तक तो और जहां सहन नहीं है तो विनय साम नीति के द्वारा प्रलोभन के द्वारा नहीं तो फिर आखिरी दंड भय के द्वारा भगवान गए दुर्योधन आदि से संधि का प्रस्ताव रखा बहुत पांच गांव दे दो

जब नहीं तो फिर गला काटने का हुकुम दे दिया समझ रहे ना किसका प्रश्न था तो आप समझ रहे हमारा तात्पर्य है हां जहां तक सहन कर सको पहला कर सहन करना उन्होंने शर्त रखी थी

कि अगर एक बार में हार गए तो 12 वर्ष का बनवास एक वर्ष का ईमानदारी से पूरा किया लेकिन उन अधर्म हों ने इस बात को ना स्वीकार करके पांच गांव भी नहीं देने की बात कह दी कि करेंगे तो युद्ध से ही नहीं तो सुई की नोक भर नहीं देंगे तब फिर युद्ध आखिरी तक हम प्रार्थना और लेकिन यदि कहीं हमारे धर्म पर बात आ रही हो फिर हम स नहीं करेंगे

क्योंकि धर्म के लिए ही जीवन है चाहे स्त्री शरीर हो चाहे पुरुष शरीर हो अब जैसे हमारे राष्ट्र में संकट हो तो हम संत वेश में तो हम चैन से रह लेंगे अब विचार करो हमारा राष्ट्र संकट में हो तो हम चैन से रह लेंगे नहीं आग लग जाएगी

क्योंकि हम भी संत वेष में है लेकिन हम एक भारतीय हैं हम एक नागरिक हैं अगर हमारे पूरे राष्ट्र को संकट हो गया तो हमारे धर्म को अभी धर्म संकट में फस जाए तो हमारा भजन क्या होगा तो यहां देखना है फिर तप और भजन जो जो बल काम करेगा उससे अपने राष्ट्र की रक्षा अपने धर्म की रक्षा के लिए प्राया संतों ने किया है इतिहास साक्षी विवेक के द्वारा देखना है

Koi Bar Bar Aapka Bura Kare To Sehen Kare Ya Jawab De

जितना हम सह सकते हैं उतना सह सकते हैं और जब सहन की सीमा खत्म और हमारे धर्म नाश या शरीर नाश की बात आ गई अब हम नहीं सहन करेंगे अब उसके बाद क्योंकि आप गृहस्थ है अलग-अलग विधान है हमारा निवृत्ति मार्ग है आपका प्रवृत्ति मार्ग है

जहां तक सहन करना है वहां तक एक सीमा है इसके बाद नहीं सीमा है हमें सब में भगवत भाव करना है पर वो राक्षसी भाव में आ गया है भगवत भाव करते हुए भी उसके राक्षसी भाव का उत्तर राक्षसी भाव से दिया जा सकता है

जहां तक है तहां तक है फिर जब समझाने की भाषा आए तो वो जैसा समझना चाहता है बहुत विधान है हमारे पर ये ध्यान रखें कि कानून को अपने हाथ में ना ले नहीं तो हमारा जो बचाव पक्ष था वो खत्म हो जाएगा

जैसे मान लो हम अपने शरीर और धर्म की रक्षा के लिए अगर हम अपने कानून के विरुद्ध आचरण कर देंगे तो कानून का अपराध तो हमने कर दिया ना तो हमारा जीवन जेल में होगा तो क्या धर्म बचा क्या हमारा प्राण रक्षा बची बहुत सुलझ भी है

ना जैसे मान लो हमें अपने आप को बचाना है हर तरह से बचाना है हम अपनी रक्षा के लिए कानून के विरुद्ध आचरण कर दिए तो कानून मुझे बख सेगा नहीं हां तो इसलिए हमको हमारा जीवन सुरक्षित बहुत बुद्धि के इसीलिए हम कहते भगवान की प्राप्ति जीवन मुक्त होने के लिए चलो कोई बिरला ऐसा चाहता है

अरे जीने के लिए भजन कर लो कम से कम हमारी बुद्धि इतनी शिद्ध हो कि हम अपने को बचा ले अपने परिवार को बचा ले अपने समाज को बचा ले अपने देश को जितना आपका विवेक है आप बचा पाओ यह माया का काम देखो कैसे-कैसे लीलाएं कर र है हम बचाव पक्ष की बात करते हैं जहां तक है

सहन कीजिए जो बात है कानून का सहारा लीजिए भगवान का बल लीजिए आपको अपने ऐसी कोई क्रिया नहीं कर देना कि आप फस जाओ बचाओ पक्ष में आप फस जाओ आपका जीवन व्यर्थ चला जाए इसलिए बहुत कष्ट में जीवन होता है

झेल का हम एक बार मिले थे गंगा किनारे जो बहुत से क्राइम करके गए थे काफी वर्ष रहे वहां तो वो कह रहे थे महाराज हम अपना अनुभव कह रहे हैं कि अगर गांव का एक साधारण व्यक्ति पांच जूता मार दे ना तो उसको सह लेना चाहिए

लेकिन जेल जाने वाला कर्म नहीं करना चाहिए वो बढ़िया अनुभव तुमने बताया कि मतलब अगर ऐसा अपमान भी हो तो सह जाए जेल ना जाए आने वाला तो हम कहीं क्रोधा वेश में ऐसा ना कर ले कि हमको फिर वो जो हम धर्म कर्म भजन साधन जो जीवन उन्नति का है

जो जीवन आनंदमय वो हम जेल में क्योंकि आप मनमानी करोगे तो हमारी सरकार बख सेगी क्या अगर पता चल गया तो फिर आप फस जाएंगे अपराध कानून का भी ना होने पावे ऐसा बहुत विवेक की जरूरत है जीने के लिए बहुत विवेक की जरूरत है

जरा सी गलती हंसी मजाक हंसी मजाक जरा सी और वो जरा सी बात दूसरे रूप में पहुंच गई कि ये हमको इस तरह से और वह जेल पहुंच गया बहुत सावधान और वो सावधानी भजन देता है इसलिए सबसे कहते हैं राधा राधा राधा राधा रटो अगर शराब पियोगे मांस खाओगे जुआ खेलोगे बे विचार करोगे तो बुद्धि तुम्हारे ऐसे कर्म करवा देगी जो तुम्हें चैन नहीं मिलेगा

देखो जितनी जेलें भरी हैं सब बुद्धि का चमत्कार है है कि नहीं अच्छा जितने बड़े रोग हैं ये सब इसी बुद्धि के कर्म का फल है इसने कहा कि यह करो वो पाप कर्म बन गया और किस जन्म का कब लागू हुआ यह पता नहीं है कि कब का लागू होगा

पुराना हिसाब जमा कब कहां लागू हो जाए 202 वर्ष मुकदमा चलता है नहीं चलता यहां तो यहां कई जन्म का हिसाब होता है बोले इस जन्म में तो हमने कोई पाप नहीं किया हां ठीक हो सकता है 10 पाच जन्म पीछे ना कोई पाप कि हो ऐसा लेकिन बहुत बड़ा रजिस्टर है

इसलिए वही बात हम सिखाते हैं कि नाम जप करो पर थ का आश्रय लो सहनशील बनो उस समय भगवान आपको आवेश दे देंगे अगर हम संकल्प पूर्वक कोई पाप कोई अपराध करेंगे तो अलग बात हो जाएगी और जब भगवान का आवेश होगा व एक अलग होता है फिर फिर नहीं भगवान के ऊपर आश्रित हो जाओ वह आपको बचाएंगे वह तुम्हारे ऊपर आवेश दे

देंगे या किसी के ऊपर आवेश दे देंगे करो सदा तिन के रख भगवान रक्षा करते हैं सब पर हर उत लागू नहीं होता यह भी बात समझ जैसे सामने हमसे कहा कि हमारे माता-पिता वृद्ध है उनकी सेवा हम कर रहे हैं वो हमें गाली देते हैं अब हमारा क्या कर्तव्य है

गाली स और उनकी सेवा करो चाहे जैसी परिस्थिति हो उनको कष्ट मत देना उनको निकाल मत देना अब यह सब माता-पिता के ऊपर नहीं लागू होता बात समझना अब वो चार पाई पे हैं और तुम सेवा करो तुम्हें गाली दे रहे हैं अब तुम्हें सुनना है सेवा करना है

अगर कर ले गए तो भगवान प्रसन्न हो जाएंगे ये बात समझो अब पिता खूब हष्ट पुष्ट और वो मनमानी आकर के घर में तांडव मचा रहे हैं हम वहा नहीं कहेंगे आपको हर प्रश्न का उत्तर अवस्था स्थिति प्रश्न करता इसके अनुसार है अब वो मतलब जैसे लोग तर्क करने लगते हैं

ना कि आपने कहा बस माता-पिता की सेवा करनी ऐसे हमारे माता-पिता करते अब वो प्रश्न का उत्तर अलग हो गया एकने प्रश्न किया हम मर के माता-पिता से मिल लेंगे क्या हम कहा नहीं अ ने कहा क्यों हम पित्र दान करते हैं प पछता है अगर प्रश्न आप यह करो कि पित्रों को जो हम दान करते हो कहां पहुंचता है उसका उत्तर अलग होगा वो कह रहा जिस रूप में माता-पिता थे उस रूप में मिलेंगे वो रूप तो तुमने जला दिया है

अच्छा वो अपने कर्म के अनुसार कहां गए किस लोक में आपका कर्म कहां किस लोक में ले जाएगा कैसे मिलान करेगा या तो आप आराधना करो तपस्या करो भगवान से प्रार्थना करो कि मुझे पिता के रूप में मिलो तो वह जो रूप है

वो भगवान रेंगे व आपसे मिल जाएंगे आके चाहे जहां चाहे यहां चाहो चाहे जिस लोक में चाहो पर पहले इतनी साधना कर कि भगवान को प्रसन्न कर लो अब हर प्रश्न को घसीट करके तर्क और प्रपंच में ले जाना वो नहीं होता है यहां उत्तर उसको अवस्था स्थिति धर्म के अनुसार उसका उत्तर होता है हो सकता है वही प्रश्न का उत्तर दूसरा प्रश्न करें तो वो दूसरा हो जाए बुखार एक ही नहीं होता है

बहुत तरह के बुखार होते हैं और सबको एक ही बुखार की दवा ले दी जाती है अलग-अलग इसलिए धर्म का सूक्ष्म स्वरूप है और शास्त्र ज्ञान का बड़ा सूक्ष्म निर्णय है अलग-अलग अवस्था के अनुसार तो जिस को जो उत्तर मिले अगर वह अपनी अवस्था और प्रश्न से मिलता है तो ठीक है नहीं उसका उत्तर ठीक आपके लिए अलग हो सकता है उसके लिए अलग हो सकता है|

If someone does bad to you again and again, tolerate it or retaliate.

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