Vaishnav ke Lakshan | वैष्णव के लक्षण | वैष्णव किसे कहते हैं | Characteristics of Vaishnav | Premanand Ji Maharaj Ke Pravachan

बहुत सुंदर देवर्षि नारद मुनि जी परम वैष्णव आचार्य हैं वो वर्णन करते हैं :-(Vaishnav ke Lakshan)

प्रशांत चित्ता सर्वेश सौम्या काम जितेंद्रिय कर्मणा मनसा वाचा पर द्रोह मनि छव दयार मनुष नित्यम ते हिंसा परा मुखा गुणेश परकाश पक्षपात मुदा विता सदाचार वदा तस परोस निज उत् सवा पसंत सर्व भूत स्तम देव मम सराहा प्रशांत चित्ता जो हर समय शांत चित्त रहते हैं कैसी भी परिस्थिति हो चाहे दुखद हो चाहे विषम हो चाहे जैसी परिस्थिति संतुष्ट एन केन ये परम गुरु मंत्र है|

इसे पकड़ लो कल हम उ पासकों से कह रहे थे शरीर का रोगी होना कोई खास बात नहीं शरीर व्याधि मंदिर है | विचार रोगी ना होने पावे तुम्हारा दिमाग रोगी ना होने पावे एक कला है कला परमार्थ की कला है युक्ति से मुक्ति हमारी प्रार्थना मान लीजिए शरीर आज स्वस्थ है तो आप अपने दिमाग में एक कला पैदा कर लो कि तुम्हारा दिमाग कभी रोगी ना होने पावे |

Vaishnav ke Lakshan


शरीर भोगी है रोगी है बड़ा नीच है लेकिन दिमाग उत्तम विचार है विवेक उत्तम गाड़ी पार हो जाएगी हे दिमाग रोगी नहीं है तो श्री जी की कृपा से गुरु जी की कृपा से ड़ रहे हैं दिमाग रोगी हो जाए तो शरीर स्वस्थ होने पर भी डिप्रेशन में पहुंच जाओगे घोर अस्वस्थ शरीर और दिमाग रोगी नहीं है तो मस्ती ही मस्ती है दिमाग रोगी ना होने पावे |

प्रशांत चित्ता सर्वेशम सौम्या शम में शांत संतुष्ट यन केनवा ये वैष्णव का परम धर्म है कैसी भी परिस्थिति हो अशांति नहीं आनी चाहिए और यह तभी होगी जब पाप कर्म नहीं होंगे |

अगर पाप कर्म होंगे तो प्रशांत चित्ता सौम्या आप नहीं हो सकते सौम्य नहीं हो सकते प्रशांत चित्त नहीं हो सकते आगे लिखा है काम जितेंद्रिय वैष्णव(Vaishnav ke Lakshan) काम पर विजय प्राप्त कि होता क्योंकि हरि का दास होता है जहां काम तहां राम नहीं जहां राम नहीं काम वह काम का गुलाम नहीं होता वैष्णव कभी वह हरि का गुलाम होता ,हरि का दास होता है इसलिए सारे विकारों पर विजय प्राप्त करता है |

काम जितेंद्रिय काम पर विजय काम विजय होता है भगवान का भक्त प्रशांत चित्त सबसे सौम्य कोमल बरताव और इंद्री विजय कर्मणा मनुष वाचा पर द्रोह मनि छवा शरीर से मन से वाणी से कभी किसी से दुश्मनी स्थापित नहीं करता वैष्णव वैष्णव(Vaishnav ke Lakshan) अजात शत्रु होता है |

हरिवंश नाम लीन जे अजात शत्रु ते सदा प्रपंच दंभ आदि दे तहा कछु न पखे हरिवंश नाम लीन जो नाम जप करने वाले हैं जो आचार्य शरणागत है जो वैष्णव है((Vaishnav ke Lakshan)) व आजाद शत्रु है याद रखो अगर आप किसी से द्रोह रखते हैं दुश्मनी रखते हैं तो आप वैष्णव नहीं भगवान के प्रिय नहीं है अद्व सर्व भूता नाम मैत्र करुण ए वच निर्मम निरंकारा सम दुखा सुखा क्मी क्षमावाणी किसी से भी ममता और अहंकार ना करने वाला सबसे मित्रता करुणा का व्यवहार करने वाला कभी किसी से द्रोह ना करने वाला भक्त मुझे प्राण प्रिय है |

मन वचन कर्म से किसी से भी द्रोह ना हो तुमसे कोई दुश्मनी रखे रखे तुम्हारे हृदय में उसके प्रति दुश्मनी ना हो यह वैष्णव का लक्षण है काम विजय प्रशांत चित्त और सौम्य सरल स्वभाव मन वाणी कर्म के द्वारा किसी को भी दुख ना दे द्रोह ना करना दयार मनसो नित्यम जिसका चित्त भगवत भजन से द्रवी भूत है सब पर करुणा करने के लिए उतावला रहता है वैष्णव(Vaishnav ke Lakshan) का हृदय कैसा रहता है सब पर करुणा करने के क्या करूं कि इनको सुख पहुंच जाए क्या दे दूं कैसे इनको प्रसन्न कर लू कैसे इनका हृदय आदित हो जाए य वैष्णव का हृदय होता है |(Vaishnav ke Lakshan)

दयार मनसो नित्यम क्यों दया समुद्र भग का भजन करते तो उनके हृदय में दया की हिलोरे करुणा की हिलोरे उठती है तेम हिंसा परा मुखा वैष्णव(Vaishnav ke Lakshan) कभी चोरी नहीं कर सकता वैष्णव कभी किसी की हिंसा नहीं कर सकता गुणेश प्रका सु पक्षपात मु दन विता वो सदैव भगवत पक्षपाती होता है| वैष्णव जो भगवान का नाम भगवान का गुणगान करते उन्हीं से हमारा संबंध रहता है |

और जो भगवत विमुख है जो भगवान की निंदा करते हैं तो जाके प्रिय ना राम बैदेही तजय ताहि कोटि बैरी समम कोटि बैर समम तजय ताहि कोटि बैरी समम जदपि परम सनेही जाके प्रियन राम देही बोले पक्षपात मदान विता भक्ष का भक्त का हृदय पक्षपाती होता है |

श्री आचार्य चरण वल्लभाचार्य जी के एक बड़े पदाधिकारी शिष्य थे तो एक गरीब शिष्य कर नहीं चुका पाया था तो उसको बंदी बना कर के जेल में डाल दिया और फिर बड़ी भेंट लेकर के आचार्य चरणों में आए |

पूज्य श्री वल्लभाचार्य जी ने कहा तुम जानते हो जिसको जेल में डाला है वह कौन है उ कहा हां भगवान कौन है तो नाम पता बताया नहीं कौन है उनका दिमाग पहुंचा उनका भगवान हमारा गुरु भाई है हां तो तुम्हारे भाई का अगर ऋण होता कर ना चुका पाता तो तुम जेल में डालते या कर चुकाते उनका कर चुकाते तो गुरु भाई के प्रति तुम्हारा बर्ताव क्या रहा उसे जेल में डाल दिया उठाओ भेंट अपनी बात से जाओ मैं तुम्हारा त्याग करता हूं |

चरणों में गिर गए प्रभु क्षमा करो मैं तो नष्ट हो जाऊंगा यदि आप त्याग कर मेरा जीवन आप मेरे से त्रुटी हो गई तो बोले कर भरो जाकर और उसे मुक्त करो वो गरीब है|

भाई की तरह बर्ताव करो कह रहे पक्षपात मुदा बताहा वैष्णो(Vaishnav ke Lakshan) पक्षपाती होना चाहिए जो हरिवंश को नाम सुनावे तन मन प्राण तास बलिहारी जो हरिवंश उपासक सेव सदा सेता के चरण विचारी सेवक जी महाराज क जो हरिवंश बोले तो तन मन प्राण ने उ छावर कर दू

गोस्वामी तुलसी दास जी क तुलसी जा के मुख से धोखे निक्त राम ताके पक की पकतली मोरे तनु की चाम ये वैष्णव(Vaishnav ke Lakshan) धर्म है राम कृष्ण हरि कोई बोले उसके चरणों में झुकना आना चाहिए |

अगर ऐसा नहीं तो आप वैष्णव नहीं है आप भगवान के निज जन नहीं है पक्षपात मुदा बताहा किसी वैष्णव को कष्ट है तो ऐसा समझो जैसे अपने ऊपर कष्ट है अपने सगे भाई पर कष्ट है सदाचार वदाता परोस निजो सवाह सदैव सदाचार परायण सदाचार सद महापुरुष जिन आचरण को किए हैं उन्हें सदाचार कहते हैं जिनको मना किया जाता है|

ऐसे आचरण ना करो ये ना खाओ ना ये पियो ऐसे मत बोलो ऐसे मत चलो ऐसा मत करो वो असद आचरण है जिन्हें सद आचरण करने वाले महापुरुषों ने प्रमाणित किया वही सदाचरण करने चाहिए वैष्णव(Vaishnav ke Lakshan) कैसा होता है बोले सदाचार वदा तस उसकी वाणी में उसके जीवन में उसके चरित्र में सदाचरण होंगे और परोस निजो सवा उस जब कोई उत्सव मना रहा है |

आनंदित सुखी है तो इस बात को देखकर वो सुखी हो जलन नहीं होगी कि अरे इसका बड़ा यश हो रहा है इसकी बड़ी कीर्ति हो रही यह वैष्णव में नहीं हो वो भले कंठी तिलक बांधे यदि ईर्ष्या करता है तो वो वैष्णव नहीं है देख कर के ही मुस्कुराहट आ जाए और प्रणाम की मुद्रा हो जाए यह वैष्णव का स्वरूप है

किसी भी संप्रदाय के संत नाम जापक वैष्णव आपको बताएं पूरे विश्व के महात्मा हमारे बाप हैं हम आपको हृदय की बात कह रहे हैं आज के 35 वर्ष पहले गुरु नानक साहब जी ने दर्शन दिए थे गंगा के किनारे निज जनों को हित धाम में भी बताया था और यहां भी बताया था|

एक ऐसे पट्टी पड़ी हुई थी जो शब्द लिखे थे मुझे पंजाबी आती नहीं पंजाबी अक्षरों में लिखे हुए थे और गंगा के किनारे रेती में बैठे हुए थे तो देखा ऐसे नानक साहब विराजमान गंभीर शांत मुद्रा बार-बार हम कोशिश करते थे उन शब्दों को पर हमको उस ज्ञान नहीं उसका तो केवल एक ऐसे जैसे दुपट्टा ऐसे हो ऐसे दुपट्टा उसमें कुछ अक्षर लिखे हुए थे|

बस अपार श्रद्धा इन महापुरुषों का वही होता है जो इनकी आज्ञा के अनुसार चले ध्यान रखना ये जितने सिद्ध महापुरुष भगवत प्राप्त है तुम लाखों कोष दूर से अगर इनकी आज्ञा का पालन करोगे तो तुम जानते भी नहीं तुम पर अपार कृपा उड़ेल देंगे और जो निज जन कहलाते अगर उनकी आज्ञा के विरुद्ध है तो पाई भर कृपा नहीं प्राप्त कर सकते|

महापुरुषों का पक्षपात होता है उनकी आज्ञा का पालन जो गुरुवाणी के अनुसार चले उस पर कृपा बरसेगी गुरुवाणी के विरुद्ध चले तो कहलाए उनका तो उनको वो कृपा की रेख भी नहीं पा सकता है यह देखा गया हम तो जानते भी नहीं थे तब कृपा हुई थी तब कृपा हुई थी|

और एक महापुरुष नहीं एक से एक बड़े महापुरुषों का सानिध्य गुरु कृपा से प्रकट अप्रगत होता ही रहता है पक्षपात उदान बताहा यह हृदय में पक्का समझ लो विश्व के जितने संत हैं इन सबकी एक साथ कृपा उदय होती तब जाकर के भगवता की ऊंचाई पर पहुंचता|

कोई साधक सबकी कृपा सब हमारे हैं कभी हमको ऐसा नहीं लगा कि कोई गैर है कोई और है ऐसा लगा ही नहीं कोई और है ऐसा लगा ही नहीं सच्ची तुम्ह कहते जिधर देखो उधर अपना ही स्वामी नजर आ रहा है सर्वा वत तया निरीक्षण स्वरा बुद्धि मेरे आराध्य देव नजर और इतना प्यारे महापुरुष कर रहे हैं |

तो हम कैसे बताए तु लगता है ऐसा नहीं ये सब हमारे हैं ऐसा प्यार इनका उदय हो रहा है रोते ही बनता है बस और कुछ नहीं बनता यह सब है जिनकी समझ में आता हो कि अंतरध्यान हो गए उनकी समझ में आता है वो है अभी है इसी क्षण है य सर्वव्यापी दत्व हो चुके हैं है यही है जहां पुकारो वही विराजमान है |

पक्षपात मुदा विता यह पक्षपाती है किस बात के जो इनकी आज्ञा का पालन करे जो इनके उपदेश के अनुसार चले उसके पक्षपाती है परोस निजो सवाह वैष्णव दूसरों को सुखी देख कर के सुखी होता है दूसरो को देखकर जलता है ऐसा वैष्णो नहीं होता पसता सर्व भूत स्तम वासुदेव मम सराहा वो सर्वत्र अपने आराध्य देव को देखता है |

मेरे वासुदेव भगवान सर्वत्र विराजमान है और दीनान कंपन नित्यम भसम परहित व सदैव दैन्य स्वयं होता है और दिनों पर अनुकंपा करता है भसम परते दूसरे के हित के लिए अगर प्राण देना पड़े तो दे देंगे यही है यही है संतों का धर्म परहित लागी तज जो देही आज आप सुनेंगे आज सुनेंगे कि संत में कितनी बलिदान की सामर्थ्य होती है|

परहित लागी त ज जो देही संतत संत प्रस सते ही परहित दूसरे के हित के लिए मंगल के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी महापुरुषों ने राज उपचार पूजाया लालन स्व कुमार वत वैष्णव(Vaishnav ke Lakshan) अपने आराध्य देव को अपने पुत्र की तरह दुलार करता है राज उपचार अच्छी अच्छी सामग्रियों से यह वैष्णव धर्म नहीं कि तुम हलुआ और चाय गटक रहे हो प्रभु को चिरौरी रखे आए पाल जी के सामने रख दो चिरौरी सुबह से शाम तक एक गिलास में पानी चिरौरी और तुम विविध पकवान पा रहे हो ये वैष्णव धर्म वैष्णव(Vaishnav ke Lakshan) का स्वभाव नहीं होता विषय पुरुष है वो वैष्णव का नाटक कर रहा है|

वैष्णव(Vaishnav ke Lakshan) कैसा राजो उपचार पूजा याम लालना स्वा कुमार वत जो कुछ हमारे पास है तो जैसे हम अच्छे से अच्छे पदार्थ अपने पुत्र को पवा हैं ऐसे लिखा है स्कुमार वत स्कुमार वत अपने पुत्रवती जो विषय पुरुष है पापी पुरुष है अविवेकी पुरुष है जो भगवान से द्रोह करने वाला उनसे ऐसे डरो

जैसे काले सर्प से डरा जाता है कृष्ण सर्पा दि उ भयम बाहे परिचर दूर से भाग जाओ उनका संग मत करो ऐसे लोगों का संग ना करे जो विषय है वह सर्पों से भी ज्यादा भयावन हैं य तुम्हारे दिमाग में विष चढ़ा देंगे बोले विशेष विवेका नाम या प्रीति रूप जायते जो भगवान के चरणों में प्रीति प्रकट करने वाले नाम गुण लीला चिंतन की चर्चा करते हैं |

ऐसो का तो संग ठीक है लेकिन जो भगवत विमुख है विषय है नाना प्रकार के कामा दोषों से युक्त उसी की चर्चा उसी को देखना उसी को बोलना ऐसे लोगों से दूर रह तन मनते ताम प्रीति सति कोटि गुनाम हर भगवान से भी बढ़कर करोड़ों गुना भगवान के भक्तों में प्रीति होनी चाहिए |

यह सिद्धांत है वैष्णव(Vaishnav ke Lakshan) का मोरे मन प्रभु अस विश्वासा राम अधिक राम कर दासा भगवान स्वयं श्री राम जी सबरी माता के सामने कह रहे सातो सम मुहि में जग देखा मोते अधिक संत कर लेखा मोते अधिक संत कर ले भगवान से भी कई गुना बढ़कर भक्तों में प्रीति अपने यहां वर्णन है|

यदि आप श्री जी का स्नान करा रहे उसी समय कोई रसिक वैष्णव पधारा तो श्री जी को वैसे ही पधरा दीजिए पहले खड़े हो जाइए प्रणाम कीजिए महाराज आइए बिराज अरे नहीं नहीं आप श्री जी की सेवा करो आप करो करो वो वैष्णव है तो व्याकुल हो जाएगा कि मेरे से त्रुटि कैसे हो गई श्री जी की सेवा के समय में क्यों आ गया

लेकिन आपका कर्तव्य आप श्री जी की सेवा छोड़कर पहले अर्चना करें ऐसा हमारे रसियो ने आद किया श्री जी से बढ़कर श्री जी के जनों को आदर देना प्रभु से बढ़कर के प्रभु के जनों को आदर देना य वैष्णो(Vaishnav ke Lakshan) धर्म है नित्य कर्तव्य ता बुधय जंता शकरा दि कान विष्णु स्वरूपा अध्याय भक्ता पित गणे स्वप जितने पितर है जितने भी गण है सब भगवान श्री हरि की पूजा से तृप्त हो जाते हैं वैष्णव को अलग कोई अनुष्ठान करने की आवश्यकता नहीं हरि तुते तो सब तुते पर कभी ऐसा ना करें कि किसी की निंदा करें नहीं निंदा वैष्णव के जबान पर किसी की भी नहीं हो सकती है |

विष्णु स्वरूपा धय भक्ता पितृ गणेश य सब भगवत स्वरूप है इसलिए हरि की आराधना से सबकी आराधना हो जाती है पार्थ क्यम नच पार्थ क्यम सम दृष्टि वष्टि रूपना व्यर्थ की वार्ता नहीं होनी चाहिए भगवान से बिलग कुछ नहीं है इसलिए किसी की निंदा नहीं किसी से व्यर्थ वार्ता नहीं सब में भगवान जिसको भगवान जैसा चला रहे सब ठीक है हम किसी को सुधारने के लिए पैदा नहीं हुए हम अपने हृदय में भगवत प्रेम प्रकाशित करने के लिए आए हैं|

तो पार्थ क्यम नच पार्थ क्यम सम दृष्टि रूपना सम दृष्टि देखो कोई अलग नहीं है यह शरीर शरीर अलग है लेकिन इनमें बैठा हुआ परमात्मा एक ही है इसलिए जगन्नाथ तवा स्मती दास त्वम चा स्मिनो प्रथक सेव सेवक भावो ही भेद नाथ प्रवर्तते बहुत सिद्धांत की बात कह रहे कि हे प्रभु हे जगन्नाथ हे स्वामी वैसे तो आप सबके हृदय में विराजमान हो मुझे पक्का पता है सबके हृदय में विराजमान हो तो इसलिए मैं आपको कहता हूं कि मैं आपका का सेवक हूं |

आप मेरे स्वामी हैं फिर भी मैं आपसे भिन्न नहीं हूं बहुत सूक्ष्म बड़ा आनंद आया जब यह विषय कह रहे आप जगन्नाथ तवा स्मिति दासत चाम नो प्रथक हे जगन्नाथ सबके हृदयं में विराजमान हो मैं आपका सेवक हूं आप मेरे स्वामी हो पर आप इतना समझ लीजिए प्रभु चास में नौ पथक मैं से अलग नहीं हूं |

सेव्य सेवक भावो ही भेद नाथ प्रवर्तते य से सेव्य और सेवक भाव रहते हुए भी मैं आपसे अभिन्न हूं यह बहुत जोर की बात आई सेव्य और सेवक भाव है 50 भीनो प्रथक मैं आपसे अलग नहीं हूं अभिन्न हूं अंतर्यामी था देवा सर्वे साम संस्थिता सेववा सेवको वापी ततो नानत कसन बहुत उच्च कोटि की स्थिति यहां वैष्णव की बताई प्रभु सावधान होकर के मैं बोल रहा हूं कि आप सदैव अंतर्यामी रूप से सबके हृदय में विराजमान रहते हैं तो फिर यहां भी विराजमान है |

और जब यहां विराजमान है तो और दूसरा कोई है नहीं तो फिर बचा कौन तो सेव सेवक भाव आपकी सेवा के लिए हू तो अभिन्न नहीं ना क्योंकि आप ही तो यहां विराजमान हो आपके सिवा यहां कोई है ही नहीं मैं है ही नहीं जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाही खोजने वाला खो गया जब मिला तो खोजने वाला खो गया |

ये यह बात ये बात समझ ली है ये बहुत ऊंची स्थिति है वैष्णव की भिन्न होते हुए भी अभिन्न अभिन्न होते हुए भी किसी की दिमाग की नहीं य स्थिति है सेववा सेवको वाप त् नान कश्चन सेवक सेव भाव होते हुए भी आपके सिवा किंचन मात्र कुछ नहीं है कैसे कह सकते हो श्री कृष्ण चंद्र जी बोल रहे मता पर तरम नान्य किं दस् धनंजय मेरे सिवा कुछ नहीं है तो फिर मैं कहां मैं खो गया अब कौन बोले हरि ति भावन तया कृता वधान प्रण मंता सततम च कीर्त अंतः हरिम जन वद्य पाद पदम प्रवजन स्वत जगत जनेश जो हर समय आपको प्रणाम करता रहता है|

आपका नाम कीर्तन करता है आपके भजन में तत्पर है लोगों के समीप बैठकर आपकी चर्चा करता है उसके अंदर आप ऐसी स्थिति प्रकट कर देते हैं पूरे त्रिभुवन को त्रण के समान समझकर त्याग देता है जगत के लोगों का बड़ा उपकार हो उपकृत कुशला जगत स्वज श्रम ऐसे वैष्णव(Vaishnav ke Lakshan) के द्वारा जगत मंगल होता है जो हर समय आपका नाम गुण कीर्तन निस्वार्थ भाव से उप कृति कुशला जगत स्वज श्रम पर कुशला निजनी मन्य माना व दूस कुशल क्षेम का बहुत अच्छी तरह से व्यवहार जानता कैसे इनका मंगल होगा |

इसलिए अपि परि भावन दयार द सबके लिए हृदय में अपार दया होती है शिव मनसा खल [संगीत] वैष्णवास्त्र वैष्णो(Vaishnav ke Lakshan) कभी दूसरे के धन पर लोभ दृष्टि नहीं डालता जैसे सोने का थपिया ऐसे माटी का डेला ऐसे पत्थर का टुकड़ा बराबर है उसकी दृष्टि में परिवन सु चक्र साल मली शु जैसे कूट साल मली नरक बहुत भयावन है बड़े-बड़े भाले जैसे कांटे हैं उसके ऊपर छोड़ा जाता है

किसको जो परस्त्री गमन कर करता है कूट शल मली शु परिवन परिवन होता माने दूसरे की पत्नी के साथ जो संभोग करता है उसे कूट सालम नरक में डाला जाता है कैसा होता है जैसे खजूर का जैसा लंबा पेड़ भाले जैसे कांटे उसके ऊपर से छोड़ दिया गया मरना वहां है नहीं भारी कष्ट ले लो मनमानी बोले जीवन मौज मस्ती का ले लो मौज मस्ती की जब हिसाब किताब होगा तब तुम्हें चाहे स्त्री हो चाहे पुरुष हो पति बंच पर पति रति कर रो रो नरक कल्प सत परई जो अपने पति की वंचना करके दूसरे पुरुष के साथ गंदा चरण करती र र नर्क उसको प्राप्त होता है |

जो पुरुष अपनी पत्नी की वंचना करके दूसरे पराई स्त्री के साथ संभोग करता है तो बोले परिवन सु कूट साल मली शु कूट साल मली शु नामक नरक की उसको प्राप्ति होती इसलिए वैष्णव(Vaishnav ke Lakshan) में कभी यह दोष होता ही नहीं वह दूर से ही कभी किसी भाई बहन की तरफ काम दृष्टि नहीं क्योंकि पहला लक्षण आया था

प्रशांत चित्ता सर्वे साम सौम्या काम जितेंद्रिय य वैष्णव का लक्षण(Vaishnav ke Lakshan) है तो बोले सखी रिप सहजे सु बंधु वर्ग सम मतया खल वैष्णवास्त्र दुरा वा वंदनीय जही जग जसु पावा मुद मंगलम संत समाज जो जग जंगम तीर्थ राजु चलते फिरते तीर्थराज प्रयाग है संगम य यह दूसरे के गुणों को प्रकाशित करते दोषों को छुपा लेते ढक लेते हैं और दुष्ट क्या करता है दूसरे के गुणों को छुपाकर दोषों का वर्णन करता है |

गु सुम परस मरम अच्छा दन परा परिणाम सौख्य दही ये वैष्णव धर्म(Vaishnav ke Lakshan) है कि दूसरे की गलती देख लो तो छुपा लो अगर उससे प्यार करते हो तो उससे खुद कहो भाई तुम गलत हो अब मत करना अगर उसके पीछे की तो उसकी निंदा मानी जाएगी और आपका भजन रुक जाएगा बहुत सूक्ष्म विषय है |

बहुत सूक्ष्म परमार्थ का स्वरूप है बोले गुण गणा सुमुखा परस मरम छन परिणाम सौख्य दही सबसे दोस्ती का व्यवहार दूसरों के दोषों को ढककर गुणों को प्रकाशित करना जो सही दुख पर छिद्र दुरावा बंदनी ज जग जस पावा दूसरों के दोषों को ढक कर उनके गुणों को प्रकाशित करना यह वैष्णव(Vaishnav ke Lakshan) धर्म है भगवान संतत प्रदत चित्ता प्रिय वचना खलु वैष्णवास्त्र सदैव भगवन नाम जिव्या में उच्चारण करते हुए ही बात हो राधा राधा राधा |(Vaishnav ke Lakshan)

अच्छा भाई कैसे हो आप राधा राधा सततम प्रदत चित्ता भगवत चित्त अर्पित करके ही प्रिय वचना सुंदर वचन वैष्णवास्त्र म अनंत धीरे-धीरे भगवान की लीलाओं से भरे हुए पदों को गाना चाहिए जो महान पापों का नाश करने वाले भगवान के नाम है उनका उच्चारण करते रहना चाहिए और थोड़ी-थोड़ी देर में जय जय परि घोषणा रटता कि वि भवा खल वैष्णवास्त्र चाहिए |

यह ध्यान रखो यह बहुत बड़ी बात मिली है और यह स्वभाव में राधा किशोरी की जय प्यारी जी की जय जय हो महारानी जी की जय थोड़ी थोड़ी देर में अपने आप हा यह नहीं कि एकांत में चर्चा हो रही तो नहीं बहुत प्रवीण होता है वैष्णव (Vaishnav ke Lakshan) अगर आप जय बोलोगे तो सबका चित् आकर्षित हो जाएगा |

इस सत्संग से ऐसा जब आप एकांत हो अकेले में तो आह भर के जय बोल सीखो और कीर्तन में तो जय जय बोला ही जाता है जय जय परि घोषणा रटता यह बहुत बड़ा लाभ है हा जय हो राधा वल्लभ लाल की प्यारी ज की जय हो बहुत आनंद आता है एकांत में जब अपने इष्ट को सामने मुस्कुराते रहते जय हो लाड़ले आप ये कई दूर रहे तुमसे सच्ची कहते बहुतों से आशिक करके देख ली एक बार इनसे आशिक करके वैसे प्यार कर जैसे संसार में प्यार करते हो |

पक्की मान लो जैसे बेटे से प्यार करते हो दोस्त से प्यार करते हो परिवार से प्यार करते हो थोड़ा सा प्यार का इधर राई भर कर लो प्रिया प्रीतम से तो बहुत रिवार है युगल सरकार बहुत ही प्यारे बहुत ही लाड़ले बहुत ही कृपालु कैसे तुम्हें बताए बिल्कुल जैसे र्ष होती है ना भिजा देते हैं आसपास ऐसी कृपा की वर्ष करते जय जय परि घोषणा जय हो युगल सरकार की तो मुस्कुराते हुए देखते कौन बोला जय हमारी और जिसकी तरफ देखा उसकी जय हो गई यह नियम बना लो हमने कई संतों को देखा है |

पूज्य बक्सर वाले मामा जी हरे नमः बोलते हरे नमः थोड़ी थोड़ी देर सरका हरि शरणम ऐसे जय लाडली की जय हो प्रिया जी की जय हो हमारी स्वामिनी की जय राधा राधा हरि चरण सरोज युग्म चित्ता जड़म धिया सुख दुख साम्य रूपा जो भगवान के चरणों का ध्यान करते रहते हैं |

सुख दुख में समान भाव रहते हैं ऐसे वैष्णव(Vaishnav ke Lakshan) के परम धर्म है निरंतर नाम जप करो अंदर के दोषों की चिंता मत करो भगवन नाम चिंतन से हर दोष पर विजय प्राप्त कर ली जाती है बस अगर आपको निर्दोष होना है तो मेरी प्रार्थना मान लीजिए किसी के दोष मत देखिए देख लीजिए तो चिंतन मत कीजिए चिंतन हो जाए तो बोलना मत तो तुम निर्दोष हो जाओगे अगर दूसरों के दोषों को देखा दूसरों के दोख दोषों का वर्णन किया तो त्रिकाल में तुम निर्दोष नहीं हो पाओगे

अपने को निर्दोष होने के लिए दूसरों के गुणों को भले प्रकाशित कर दो उत्तम तो एक कि गुण दोष दोनों से दूर रहो पर ना बने तो संत हंस गुण गाहे प परि हरि वार विकार दूसरों के दोषों का त्याग कर गुणों का वर्णन करो नाम जप करो बहुत बढ़िया जीवन है |

लाडली लाल कहीं दूर नहीं हम में तुम में सब में भरे हैं और सबसे परे हैं जो सबसे परे हैं वो सब में भरे हैं बस खोज लो उनको एक बार ढूंढ लो ये छुपा छुपी का खेल बंद हो जाए ये माया अपने आप अंतरध्यान हो जाएगी जित देखो तित श्याम मई सच्ची मानना केवल वही मुस्कुरा रहे हैं खड़े-खड़े दूसरा कोई है ही नहीं श्री राधा वल्लभ लाल की|

Vaishnav ke Lakshan

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